हमारे मष्तिष्क मंडल के 84 लाख योनियों यानी न्यूरॉन्स का ध्रुव तारा ओर इस ध्रुव तारे नामक ग्रंथि की रेहीक्रियोग से सहज साधना कर सदा युवा बने रहने,सदा निरोगी बन स्वस्थ व महाबलवान बनने से लेकर सदा अमरता कैसे प्राप्त करे,,

आखिर हमारी कठिन साधना के बाद भी,क्यों नही जाग्रत हो रही,सच्ची कुंडलिनी शक्ति,ओर वो कोन सा असली चक्र है,जो हमारी कुंडलिनी शक्ति की जागृति में सबसे ज्यादा सहायक है?वो ग्रन्थि कौन व कहां है,जिसमें हम ध्यान लगाएं,,
इसके बारे मे बता रहे है,स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी,,,

पिछले सत्संग में अपने जाना कि,हमारे शरीर रूपी ब्रह्मांड में सप्तऋषि के दो ब्रह्ममण्डल है,उनका अंत ध्रुव तारे पर होता है,तो वो ध्रुव तारे को आज के शारारिक वैज्ञानिक भाषा मे क्या कहते है,उसे पीयूष ग्रन्थि कहते है,,तो जाने इस ध्रुव तारे यानी पीयूष ग्रंथि भेदन का रेहीक्रियायोग से साधना का रहस्य,,
इसी ध्रुव तारे यानी पीयूष ग्रन्थि के भेदन को ही सारे योग का सिरमौर आसन शीर्षासन बना है,की हमे अपने मष्तिष्क में स्थित इस ध्रुव तारे यानी पीयूष ग्रन्थि तक जाने का जो सप्तऋषि का उत्तर मार्ग से रास्ता है,उसमे कैसे प्रवेश किया जाए,यदि इस रहस्य को जाने बिना शीर्षासन करते हो,तो अंधेरे में जबरदस्ती तीर चला रहे है,जो कभी सफलता नही देता है।और यदि जबरदस्ती इस पीयूष ग्रन्थि में अपने प्राणों का ओर मन का या अपने रक्त का अधिकता दबाब दे दिया गया,तो आप लाभ के स्थान पर जल्दी ही पाएंगे,भयंकर रोग।तो पहले जाने,ये ध्रुव तारा यानी पीयूष ग्रन्थि क्या है,,तो,,

पहले कुछ उदाहरण जान ले कि,जो मनोविज्ञान के लिए बड़े रहस्य बने रहे कि,बहुत पहले,अचानक आये भूकम्प से गिरे,मकान के बड़े भारी शहरीर के नीचे,एक स्त्री का का बच्चा दब गया,वो सहायता को चिल्लाई रोई,इतने लोग आ नही पाए कि,अचानक उस स्त्री में जाकर उस भारी बड़े शहरीर को दोनों हाथों से ऊपर को उठा लिया,पर उससे बच्चे को कैसे निकाले, तो इतने ही लोग आ गए,उन्होंने उस बच्चे को निकाला,ओर उस शहरीर को पकड़ते हुए,उसस्त्री को छोड़ देने के लिए कहा,की तुम अपने बच्चे को ले लो,हम सम्भसल लेंगे,ओर जैसे ही उस स्त्री ने वो शहतीर छोड़ा,सबके सब मजबूत व्यक्तियों के हाथों से वो भारी शहतीर छूट गया,अब ये सब देख सबके सब व्यक्ति भयंकर आश्चर्य में आ गए,की वो भारी शहतीर हजार किलो से अधिक का था,तो कैसे उस स्त्री ने उसे उठा लिया?किसी की समझ नही आया।
अब ऐसे ही बहुत पहले छपे मानो न मानो रिकॉर्ड पत्रिका में,एक महान ताकतवर व्यक्ति के विषय मे छपा था कि,एक लकड़हारे परिवार में एक लड़का बहुत सुस्त था,सदा सोता रहता था,वो उसे आलसी ही मानते थे,की एक दिन सब एक बड़ी गाड़ी को भारी पेड़ो के बड़े लककड़ो से भर रहे थे,फिर उसे अधूरा छोड़कर खाने चले गए कि,आकर देखा कि वो सारी की सारी गाड़ी बहुत भारी लककड़ो से भरी पड़ी थी,किसने किया ऐसा,वे आपस मे आश्चर्य से देखने लगे,तब उन्होंने देखा कि,वही आलसी लड़का,बड़ा वजनी लक्कड़ अपने कंधे पर लाधे आ रहा,उसने ये किया?तब उसने आकर बताया कि,आज मुझे अचानक सोते में मेरे अंदर बड़ी भारी शक्ति जागी,उसी से मेरे अंदर अचानक बड़ी स्फूर्ति व महाशक्ति बढ़ती गयी है,,वो सदा भोजन करता था,बाद में उसने बड़े भारी बलप्रदर्शन किये,इसने इंग्लैंड सम्राट के दरबार मे एक अद्धभुत बल प्रदर्शन किया कि,अपने एक पैर को वहां के संगमरमर के फर्श पर दबाब देकर अपने पंजे की छाप बना दी थी,सब हैरत में डाल दिये थे,ओर ओर भी बलवर्द्धक करतबों में, उसने पानी के जहाज के 22 सो किलों का लंगर को कंधे से ऊपर उठाने आदि के करतब दिखाए,ओर इसी लंगर के कंधे में गिर कर चोट लगने से म्रत्यु को पाया,पर ये बल बिन किस कसरत साधना के उसने आया कैसे,ये रहस्य ही बना रहा है।
ऐसे ही अचानक रूस के ओर इस सदी के महान भविष्यद्रष्टा पीटर हरकोस के विषय मे भी है कि,वो एक ऊंची बिल्डिंग पर पेंट कर रहा था कि,वो अचानक वहां से गिर गया,ओर अस्पताल पहुँच गया और जब आंखे खुली तो,उसमें भविष्य को किसी को छू लेने से देखने की रहस्यमयी शक्ति आ गयी।जो उसे न ओरो को पता चला कि ये कैसे जगी?
आखिर ये रहस्य क्या है?,,

तो जानो की, हमारे भौतिक शरीर मे जो सात चक्र है,उन्हें ही शरीर विज्ञान भाषा में ग्रन्थि कहते है,उन चक्र या ग्रन्थि में विशेषकर मष्तिष्क में दूसरे नम्बर की ग्रन्थि व अन्य ग्रन्थियों में सबसे मुख्य है-ये पीयूष ग्रंथि।
ये बहुत ही रहस्यमयी ओर अंनत शक्तिशाली ग्रन्थि है,जिस पर सनातन समय से आज तक बहुत खोज हुई और इसका अद्धभुत रहस्य समझ नहीँ आया है।,

इस पीयूष ग्रन्थि के द्धारा हमारे शरीर के सभी मुख्य अंगों के रस यानी हार्मोन्स संचालित होते है।ओर इस पीयूष ग्रंथि में जरा भी गड़बड़ हो गयी तो,अनेको रोग हो जाते है,जो मुख्यतौर पर,,

पियूष ग्रंथि:-

पीयूष ग्रंथि की स्थिति:-यह हमारे मस्तिष्क के नीचे भाग में लटकी हुई होती है ।

इसकी रचना:-

यह सबसे छोटी अस्थि है, तथा यह लाल व भूरे रग की होती है । इसका व्यास 12 mm होता है ।

इसके मुख्य कार्य:-यह शारीरिक शक्ति व मानसिक शक्ति के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना गया है ।
यह दो भागों में बँट जाती है:-

a-आगे का भाग ओर,

b-पीछे का भाग।

(a) आगे का भाग:-

यहां एक छेद से प्रभावी स्राव छोड़ता है,जो हमारे शारीरिक व मानसिक तथा यौनिक अंगों की वृद्धि और विकास पर नियन्त्रण रखता है । इसका अधिक स्राव होने से अंगों की अनुचित रूप में वृद्धि होती है । पैरों का लम्बा होना सिर बढ्‌कर बेडौल लगना तथा शीघ्र प्रौढ़ यानी बुढ़ापे की अवस्था बढ़ने लगती है। इसकी कमी से शरीर में विकास धीमा हो जाता है तथा बच्चे ठिगने रह जाते हैं।ये स्त्री के दूध का स्राव होने में सहायता देता है ।

(b) पीछे का भाग:-

इसके स्राव को पिट्‌यूटशिन कहते हैं । इसमें चार प्रकार के हॉर्मोन्स होते हैं, जिनमें से पिर्डसीन तथा पिटोसिन मुख्य हैं ।

1- पिटोसीन द्वारा:-

शक्कर तथा रक्तचाप पर नियन्त्रण रखा जाता है । इसकी कमी से व्यक्ति मोटा व आलसी बन जाता है ।

2-पिटोसिन के कार्य:-

गर्भाशय मूत्राशय आँत तथा पित्ताशय पेशियों को सिकोड़ता है ओर इस प्रभाव के बाद रक्तस्राव को कम करने में सहायता देता है । इसके अधिक स्राव से शरीर की वृद्धि तथा यौन विकास शीघ्र हो जाता है । इसकी कमी से प्रजनन शक्ति ठीक प्रकार से विकसित नहीं हो पाती है ।
मस्तिष्क की पीयूष ग्रंथि में किसी प्रकार के दबाब आदि से यहां कोई रोग होने,जैसे,ट्यूमर होने से इंसान का चेहरा में परिवर्तन होने लगता है,उसमें विकृतियां भी आती व बढ़ती है।
ओर व्यक्ति के इसी ग्रंथि में आये बदलाव को यानी भूत प्रेत का असर होना,आंखे बदलनी,आवाज बदलनी आदि आदि बदलाव,जिसे देख कर अधिकतर लोग इस बदलाव को दैवीय शक्ति का प्रकोप मानकर जादू, टोने-टोटके के चक्कर में पड़ जाते हैं।

व्यक्ति के अचानक से चेहरे व भावों में बदलाव के साथ व साथ ही व्यक्ति की उम्र की अधिकता दिखनी या उम्र को लेकर आये बदलवा आदि, आपके मस्तिष्क की पीयूष ग्रंथि में किसी रोग या किसी ट्यूमर के लक्षण हैं। इस बदलाव को अक्सर लोग दैवीय शक्ति का प्रकोप मानकर टोने-टोटके के चक्कर में पड़ जाते हैं। जबकि, समय रहते डॉक्टर से या सही से योग प्राणायाम करने से इसका इलाज होकर मरीज की जान बचाई जा सकती है। कई रोगी अनजान होने से इस बीमारी के चलते,अपनी आंखों की रोशनी भी गंवा देते हैं।
असल में ऐसे रोगी पहले आंखों की रोशनी कम होने की स्थिति भी बनती है।
पीयूष ग्रंथि मस्तिष्क के मध्य में स्थित यह ग्रंथि मास्टर ग्रंथि भी कहलाती है। छह प्रकार के हार्मोन का कंट्रोल इसी ग्रंथि से हाेता है। यदि इसमें कोई रोग या ट्यूमर है तो संबंधित हार्मोन्स का संतुलन बिगड़ने लगता है। इस ग्रंथि से बनने वाले हार्मोन्स से व्यक्ति की शारीरिक वृद्धि, बीपी-शुगर, जननांग का विकास एवं रति क्रिया यानी सेक्स सबंधित असंतुलन, पानी एवं गुर्दे के लवण, थायराइड या मां के दूध पर असर आता है। इसके रोग या ट्यूमर से या तो हार्मोन्स की अधिकता होती है या कमी। ट्यूमर बड़ा होने पर नेत्रज्योति भी जा सकती है।व्यक्ति का चेहरा खुरदरा व मोटा हो जाता है ओर जबड़ा बड़ा हो जाता है और हाथ-पैरों की अंगुलियां बहुत मोटी व चौड़ी हो जाती है।

डायबटीज यानी शुगर की बीमारी का कारण:-

इस बीमारी के आने में,सबसे पहले किसी भी प्रकार के मानसिक दबाब के चलते यानी चाहे वो गृहस्थी जीवन मे पार्टनर के असहयोग के कारण सेक्स की असंतुष्टि हो,या ऐसे ही किसी ओर कारण से हो या फिर फिर ऑफिस या व्यापारिक आदि कोई भी काम का बहुत दबाब बढ़ता जाए या किसी लंबी बीमारी के चलते ओर उसकी अत्याधिक दवाई के खाते रहने से,या फिर ओर भी ऐसे ही किसी मानसिक तनाव के अचानक बढ़ जाने और बार बार लंबे वर्षों तक बढ़ते रहने से,गृहस्थी जीवन मे अचानक कम आयु और अलगाववाद आदि से आये बड़े अभाव से,पीयूष ग्रंथि पर जोर पड़ना शुरू होता है,तो उससे ये ग्रन्थि में कमी आती जाती है,जिससे यहां से नियंत्रित होने वाली अन्य शारारिक ग्रन्थि,जिनमे लिवर ओर पेनक्रियाज पर भारी असर आता चलता है और इन्ही से हमारे शरीर को मिलने वाला और बनने वाला रस-शुगर अनियंत्रित होने लगता है और फिर व्यक्ति को हो जाती है-डायबटीज यानी शुगर।
तो यो व्यक्ति की केवल अपनी पीयूष ग्रन्थि को सही सन्तुलित करनी चाहिए।तो वो फिर से पहले जैसा ठीक हो जाएगा।

नेत्र रोग:-
ऐसे ही जो लोग अचानक त्राटक क्रिया करने लगते है तो,उन्हें जो इस क्रिया से होने वाले रोगों का सामना करना पड़ता है,जैसे मन मे भय, शरीर मे कम्पन,बड़ी भारी बेचैनी बनी रहना आदि,जिसका निदान कोई नही कर पाता है,जिसे योग जनित व्याधि कहते है।ये पीयूष ग्रन्थि दोनों कानो के कुछ ऊपर की ओर अंदर होती है,ओर दोनों आंखों के सीधे पीछे होती है,यो त्राटक करने पर इस पर अचानक दबाब बनने से यहां की आंतरिक ग्रन्थियों में सिकुड़न आने से,साधक को कष्ट बन जाता है,,अनेको प्रकार के भ्रम भी दिखाई देने लगते है।यो धीरे धीरे बड़ी सावधानी से त्राटक क्रिया करनी चाहिए।
यो,ऐसे ही त्राटक यानी मानसिक टेंशन से ये पीयूष ग्रन्थि में तनाव आता है और हमारी आंखों पर असर पड़ता है और हमारी नेत्र शक्ति घट जाती है।

सेक्स रोग:-

यही मानसिक तनाव के लगातार चलते रहने से,पीयूष ग्रंथि में आये परिवतर्न या कमी से, हमारे सेक्स ग्रन्थि पर बड़ा भारी नेगेटिवअसर पड़ता है।तो हमारी प्रजनन अंग ओर उसकी शक्ति कमजोर या अधिक होकर असंतुलित हो जाती है,परिणाम,सेक्स क्षमता में कमी से लेकर घोर उदासीनता व निष्क्रियता,नपुसंकता बन जाती है।
या ऐसे ही इस ग्रन्थि में आई गड़बड़ी से,यहां से बनने व सन्तुलित होने वाले रस या हार्मोन्स ओर उसकी ग्रंथियां,यानी मूलाधार चक्र में गड़बड़ होने से, व्यक्ति में सेक्स की प्रवर्ति बढ़ने से व्यभचारी बन जाता है।सेक्स के सम्बन्धित बलात्कारी जैसा अपराधी बन जाता है।

रेहि क्रियायोग ओर तालव्य योग:-
तालव्य योग यानी तालु से ऊपर यही पीयूष ग्रन्थि है,जिसके लिए योगी अपनी जीभ उठाकर लगाते हुए ध्यान व क्रियायोग करते है,ओर जब इसमे प्रवेश की स्थिति प्राप्त होती है,तब साधककी जीभ ऊपर को खुद ही बार बार उठाकर चटकारे लेती आवाज सी करती है,इसी ग्रन्थि से रस टपकता है,जिसके बारे में हठयोग में अमृतपान लिखा है,,
यो ये सब की सब ऊपर कहीं उपलब्धियां, रेहि क्रियायोग करते रहने से खुद ही पैरों से मूलाधार चक्र से लेकर पीयूष ग्रन्थि व सहस्त्रार चक्र तक लगातार सन्तुलित प्राण व मन की ऊर्जाशक्ति के आरोह अवरोही चक्र से हमें समयानुसार सब सामर्थ्य के साथ प्राप्त हो जाती है।यो बस करते रहो रेहीक्रियायोग।

ओर इस पीयूष ग्रन्थि ध्रुव तारे के ओर भी अद्धभुत रहस्यों के बारे में फिर कहूंगा,जो गुप्त है,गुरु से ही प्राप्त होते है,,

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
Www.satyasmeemission

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