सत्येन्द्रासन एक सम्पूर्ण योगासन मुद्रा विधि से पाएं रोगों से मुक्ति और जगाएं कुंडलिनी जाने कैसे,,, बता रहें,सत्यास्मि मिशन के संस्थापक इस परम सिद्धासन “”सत्येन्द्रासन मुद्रा योग”” के खोजी ओर फाउंडर महायोगी स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी,,,

सत्येन्द्रासन एक सम्पूर्ण योगासन मुद्रा विधि से पाएं रोगों से मुक्ति और जगाएं कुंडलिनी जाने कैसे,,,

बता रहें,सत्यास्मि मिशन के संस्थापक इस परम सिद्धासन “”सत्येन्द्रासन मुद्रा योग”” के खोजी ओर फाउंडर महायोगी स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी,,,

सत्येन्द्रासन का अर्थ:-

जैसा कि नाम से ज्ञान होता है कि-सत्य आसन यानी जो सत्य ओर इंद्र यानी सत्य के स्वामी यानी परम सत्य जिसे आत्मसाक्षात्कार कहते है, उस परम सत्य का बोध कर दे वह एक परम मुद्रा की स्थिति ही सत्येन्द्रासन कहलाती है।

सत्येन्द्रासन की सहज सरल विधि को जाने और करें:-

सबसे पहले अपने स्वर की जांच कर लें और अब अपने योग मेट या कपड़े या दरी के आसन पर अपने दोनों पैरों के घुटने मोड़कर नितंब यानी हिप्स के बल उकड़ू से बैठ जाएं और जिस नांक से स्वर चल रहा है उसी साइड के विपरीत पैर के घुटने को अपने सामने की ओर जमीन की ओर झुका कर लगा दें और साथ ही उसी पैर के पंजे को तो जमीन पर रहने देकर ऐड़ी को हिप्स की ओर उठाकर गुदा ओर लिंग के बीच की प्रमेह नाड़ी यानी सीवन नाड़ी पर लगा दें तथा स्वर वाली साइड का पैर पूरे पंजे के साथ जमीन पर ओर घुटने से मुड़ा जांघ से लगा रहेगा,ये एक प्रकार से हनुमान जी के या पहलवानों के बैठने की मुद्रा हो गयी है।अब दोनों हाथों को पैर के उठे घुटने से कुछ ऊपर ओर अपने सीने के सामने को लाते हुए कोहनी से मोड़कर अपने दोनों हाथों की चार चार उंगलियों के नाखून वाले साइड के अंदर की ओर के पौरवों से एक दूसरे पर लगाकर अंदर की ओर को मोड़ते हुए एक दूसरे उंगलियों से दबाते हुए मुठियाँ को कसकर भींच ले और दोनों अंगूठों से मुट्ठियों के बाहर की ओर से दोनों ओर की कंग की उंगलियों की साइड को अंदर की ओर दबाएं।यहां स्मरण रहें कि,जो स्वर चल रहा है,उसी हाथों की उंगलियों को बाहर की साइड से दूसरे हाथ की उंगलियों को अंदर की साइड से आपस मे मिलाते हुए मुठ्ठी को कसकर बन्द करते जाना है।और अब मुठियाँ को कसकर परस्पर बन्द कर पकड़े रखते हुए दोनों हाथों को कोहनियों से मोडे हुये एक दूसरे के विपरीत अपने कंधे की साइड को पीठ के पीछे से बल लगाते हुए खींचना है।पर ध्यान रहें मुठियाँ कसी रहे और बल लगता रहे।यहां एक गहरा सांस भरकर फिर मूलबंध लगाकर ये जोर लगाना है,इस जोर लगाने से उड्डीयानबन्ध ओर जलंधरबन्ध तो खुद लग जायेगा। ओर गर्दन भी खुद टाइट रहेगी और बल बढ़ेगा।
ओर अपने मन मे 5 या 10 बार गुरु या इष्ट मन्त्र जपते हुए इसी अवस्था मे बल लगाये ओर फिर सांस को धीरे से छोड़ते हुए मूलबंध खोलकर हाथों की उंगलियों को धीरे से खोलते जाएं और वापस नीचे की ओर लगे घुटने सहित पैर को ऊपर को उठाकर उकड़ू होकर बैठ जाये और फिर सहजासन में विश्राम करें।
अब दूसरी साइड से यही क्रिया को करें।

कितनी बार ये सत्येन्द्रासन की योग मुद्रा को करना है:-

केवल दोनों ओर की साइड का अभ्यास मिलाकर केवल दो बार ही करना है,बस इस स्थिति में पैरों की बैठक मुद्रा को बनाकर फिर त्रिबन्धों को लगाकर कुम्भक ओर इस प्रकार का उंगलियों से एक दूसरे को पकड़कर मुट्ठियों को भींचकर पीठ की ओर बल लगाकर खींचने का अभ्यास बढ़ाने में ही समय लगाना है,इसे बार बार रिपीट नहीं करना है।
इससे पैरों के पंजे पर बैठने ओर हमारे शरीर मे पैर से लेकर सिर के सहस्त्रार चक्र स्थित 16 शक्ति चक्रों में से सबसे पहले अंगूठे में स्थिर पहला कालाग्नि शक्ति पॉइंट जाग्रत होता है और साथ में अन्य उंगलियों के पॉइंटों पर लगातार प्रेशर पड़े रहने से वहां की प्राण शक्तियां जाग्रत होती है और वहां के सभी पॉइंटों के दबने से अनेको रोगों का इलाज होता है।और साथ ही एड़ी के उठने से ओर अंगूठे से ऐड़ी के बीच मे होने वाले तनाव से वहां जो रीढ़ की हड्डी के पॉइंट है उनमें खिंचाव होने से रीढ़ की हड्डी के सभी रोग,डिस्क से लेकर पाचनतंत्र आदि अनगिनत रोग ठीक होते है और पेर के अंगूठे से लेकर पंजे तक तीन शक्ति पॉइंट ओर फिर टखने के मध्य ओर आगे पिंडली के बीच ओर बाहर के दोनों शक्ति पॉइंट ओर फिर घुटने के करीब ओर फिर जांघ व हिप्स ओर सीवन नाड़ी तक के 9 शक्तिबिन्दु सब लगातार दबाब से प्राण शक्ति शुद्ध होकर मुलाधचक्र पर पहुँचती है और कुम्भक लगकर मूलबंध उड्डीयानबन्ध व जलंधरबन्ध लगने से जो स्वर चल रहा होता है,उस साइड की नाड़ी यानी सूर्य या चन्द्र नाड़ियों में बहने वाला प्राण शक्ति तप्त होकर उठती हुई आकर, वहाँ के रुके जन्मों के मल को शुद्ध होकर मूलाधार चक्र में प्रवेश करती यानी सुषम्ना में प्रवेश करती है।ऐसे ही दूसरी साइड के पैर के पृथ्वी पर स्थिर होने व दबाब में बने रहने से और पिंडली से हिप्स तक के 9 शक्ति पॉइंट के भींचे रहने से प्राण शक्ति तप्त होकर मूलाधार चक्र में पहुँचती है और दूसरी साइड के प्राणों से मिलकर सुषम्ना में प्रवेश कर कुंडलिनी शक्ति बन ऊपर को चढ़ती है। तथा दोनों हाथों की दसों उंगलियों के पौरवों के शक्तिबिन्दु भी आपस के दबाब से अंदर को एक दूसरे को प्रकार्तिक बल लगाने से भींचते हुए तप्त होते जाग्रत होते है,परिणाम स्वरूप सबसे पहले तो इन पंचतत्वों का शुद्धिकरण होकर जागरण होता है और उंगलियों के पौरवों में बने 5-5 प्राणों के 10 प्राणों की शक्ति पॉइंट जाग्रत होने से शरीर के हर रोगों में पूर्णतया लाभ होना प्रारम्भ होता जाता है।यानी प्रकार्तिक रूप से एक्यूप्रेशर होता है और हथेली में स्थित सारे 9 ग्रहों के पर्वतों ओर जीवन रेखा मस्तिष्क रेखा ह्रदय रेखा भाग्य रेखा और अन्य सभी छोटी बड़ी रेखाओं पर भी दबाब बनने से उनकी कमियां मिटकर शक्तियां जाग्रत होती है और 9 ग्रह शुद्ध और शक्तिवान बनकर जीवन के सभी भौतिक और आध्यात्मिक लाभ देते है। कलाइयों के बैंडो पर जोर पड़ता है तो, वहां स्थित मूलाधार चक्र के पॉइंट में खिंचाव से कलाई की रेखाओं के नीचे छिपे शक्ति बिंदु से सम्बन्धित जनेन्द्रिय स्थित सभी गुप्त ठीक होते है।और पोचे में शुगर के ब्ल्डप्रेशर के पॉइंट है वहां प्राण शक्ति के इकट्ठे होने से वो बलवान बन शरीर का टेम्परेचर आदि अनेक रोगों को ठीक रखते है।ओर कंधे के ओर गर्दर् से जुड़े सभी रोग ओर पीठ के पीछे के अनगिनत समस्याएं इस प्रकार्तिक स्वयं के अपनी सामर्थ्य के अनुसार बलवर्द्धक खिंचाव लगाये रखने से तुरन्त ठीक होनी प्रारम्भ हो जाती है।सिर की ओर को या पीठ की व रीढ़ की ओर से सिर तक जाने और आने वाली सभी नसों में स्वभाविक प्राण शक्ति का सहज संचार होता है,परिणाम सिर के बाहर के पॉइंट व नसें ओर मष्तिष्क के अंदर की पीयूष ग्रन्थि से लेकर सभी न्यूरॉन्स एक्टिव होते है,कान के पास की नसें नॉर्मल होने से मष्तिष्क को मिलने वाले सभी तनाव समाप्त होते है और सिर दर्द आदि मिट जाते है,मन चित्त एकाग्र होता है।
यो कुल मिलाकर इस “”सत्येन्द्रासन योग मुद्रा”” से सम्पूर्ण शरीर का अंदर ओर बाहर की ओर से परम स्वास्थ लाभ प्राप्त होकर भौतिक और आध्यात्मिक चरम लाभ की सहज प्राप्ति होती है।
यही सत्यास्मि मिशन की अद्धभुत खोज है।
आप करें और सम्पूर्ण लाभ पाएं ऐसा आशीर्वाद है।

!!करें सदा सत्येन्द्रासन!!
!!बने बलवान करके रोग नाशन!!

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
महायोगी स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
Www.satyasmeemission.org

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