श्री राम पर क्या शाप है,जो अनादि काल से चला आ रहा है? ओर क्या है,तथा ये कीटाणुओं रूपी राक्षसों को ईश्वर क्यों नहीं पूरी तरहां मार पाता है,ओर क्या है,ये राक्षस कोरोना रूपी रक्तबीज के लॉक डाउन का दुर्गासप्तशती में काली देवी यानी काल की शक्ति का खप्पर में भरकर पीने ओर पीकर अपने पेट मे मारने के रहस्य का महान अर्थ,,
[भाग-3]….
बता रहे है,अपने संछिप्त लेख में स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी,,,
सब जानते है कि,श्री राम भी विष्णु जी के अवतार है और विष्णु जी सदा से त्रिदेवों में महादेव व ब्रह्मा और देवताओं में रक्षा के कार्यों में लगे,अपने लगभग 24 अवतारों में अवतरण लेते रह कर, द्धेत्यों का सर्वनाश ही किया है,यो विष्णु और उनके सभी अवतार राक्षस जाति के ब्रह्मा और शिव से पाएं सभी वरदानों का तोड़ रहें है,यो राक्षसों के लिए वे सबसे बड़े विपक्षी शत्रु रहे है,यो ही विष्णु जी को अनेक अपने मूल अवतार सहित अनेक अवतार जन्मों में अनगिनत शाप मिले है,वैसे विष्णु जी के लिए ये सभी मिले शाप हो उनके अनेक अवतार पृथ्वी पर लेने के कारण भी रहें है,यो हर अवतारवाद में वे अपने भक्तो का तो कल्याण कर पाएं,पर स्वयं के लिए सदा दुखों को उन शापों के चलते पाया और नए शाप फिर ग्रहण किये,कहने को हम कह सकते है कि,उन पर शाप का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है,वो शाप उनकी लोक लीला में कठिनाइयाँ बन जन साधारण को जीवन ज्ञान व प्रेरणा देने में सहभागी रहें है,पर ये अवतारवादी लेखन की साकारात्मक प्रस्तुति ही कही जाएगी,की जिसमें असल तथ्यों को दबा ओर उलझा कर समाज को दिया जाता है,गहराई के चिन्तन ओर तर्क की कसौटी पर जांचने पर अनगिनत प्रश्न खड़े हो जाते है,जिनके शास्त्रों में कोई सटीक उत्तर नहीं मिलते है,पूछने पर कह टरका दिया जाता है कि हरि की लीला हरि जाने आदि आदि कथनों से दमन कर दिया जाता है,ओर तप ध्यान को अपनाने को कह पिंड छुड़ा लेते है।
अब छल तो छल ही है,कहने को छल को छल से ही मारा या दबाया जाता है,यही राजनीति या लोक कल्याण नीति है।पर ये सत्य नहीं है।
ये कश्यप ऋषि की दो पत्नियों दिति अदिति की देव दैत्य संतानों के परस्पर विश्व व स्वर्ग पृथ्वी नामक राज्य लालसा के लिए वर्चस्व की लड़ाई है,जिसमे देवताओं ने अपने उपासना रूपी दक्षिणा के बल से त्रिदेवों को अपने पक्ष में रखा है,जिनमे विशेषकर विष्णु ही उनके मुख्य पक्षधर रहें है और ब्रह्मा की देव और दैत्य दोनों सृष्टि होने से जप तप सेवा के बल पुरुषकार से समांतर वरदान अधिकारी रहे है ओर ऐसे ही शिव के भी देव भी ओर दैत्य भी समांतर वरदान के अधिकारी रहें है।पर विष्णु ही एक मात्र ऐसे देव है,जो केवल देवताओं के ही पक्ष में रहे है और दैत्यों के पक्ष में नहीं रहे ओर उनके विनाश को ही सामने बने रहे।
जैसे-महाराजा बलि को वामनावतार से छल कर पृथ्वी आदि सब छीनकर ब्राह्मणों व देवताओं को दान कर दी।
जैसे रामावतार में बाली को छल से मारकर शाप पाया और उसकी पत्नी आदि को भी सुग्रीव को सौप दिया,वैसे रावण को मारकर उसकी महासती पत्नी मंदोदरी को विभीषण से विवाह करा दिया या ऐसा अनुचित बलात विवाह करने पर भी स्वीकार लिया।कृष्ण अवतार के रूप में भी,कंस को भविष्यवाणी से अपने अवतार को बताकर भयभीत कर,फिर अपने लिए लीला बनाई और मारा, महाभारत में भी अनेको छल है ओर अंत मे विधवा स्त्रियों को भी भीलों को ले जाने दिया,ओर वंशनाश के शाप पाएं है।
वैसे इन अवतारों के अंत मे जो भी युग आये,वे शांति के नाम पर केवल श्री विद्याहीन अंधकार युग ही कहे जाते है।जैसे कलियुग,जबकि विशेष उन्नति के युग होने चाहिए थे,वह नही होकर केवल विनाश ओर विधवा स्त्रियों से भरा अल्प पुरुषों के हिस्से में आई अनगिनत विधवा स्त्रियां ओर अनगिनत कन्याओं ओर विधवा स्त्रियों को अपनी मूर्ति व विग्रहों से विवाह करने की एक सहमति दें,व्यभचारयुक्त ब्रह्मचर्य की देन।जिससे स्त्रियों को कभी कोई भला नहीं हुआ था न होता दिखा है।ये स्त्रियों का भी एक मूक पर प्रबल शाप ही है,तभी कभी विष्णु के अवतारों में दो महावतार राम व कृष्ण की कभी मनचाहे प्रेम की विवाह करने या नहीं कर पाने का शाप जीवन मिला।उनके अनुयायी कथाओं के माध्यम से अंर्गरल तर्क रखे,ओर गहराई से देखने पर सत्य यही शाप ही है।
मोहनी बनकर राक्षसों को अमृत नहीं पीने देने का छलना,राहु केतु के रूप में दो अतिरिक्त दैत्य, सूर्य और चंद्रमा सहित संसार को सदा प्रताड़ित करने को दे दिए।ये राहु केतु कितने ही शुभ व चमत्कारिक हो, पर मूल जीवन में ये शापित जीवन ही देते है।
लक्ष्मी जी को भी समुंद्र मंथन में दैत्यों के प्रति किये छल से अपने लिए प्राप्त किया और उनसे कोई सन्तान भी नहीं है,बस अपने देंनिक कार्य व लोकलीला में सहायक बनाकर ओर योगनिंद्रा समय अपने चरण सेवा को ही रखा,जैसा कि आप इनके चित्रों में देखते हो,या विष्णु जी के अवतरित मूर्तियों में पुरुष की जांघों पर बैठे देखते हो।
ऐसे अनगिनत प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष शापों की प्राप्ति ओर सदा राक्षस जाति जो सदा जीवित रही,वो सदा इनसे युद्ध रत रही व रहेगी,ये न उनका समूल नाश कर पाए और न कर पाएंगे,क्योकि उन्हें अपने नए अवतारों के जन्म को ओर अपनी इनके संहार की कथित लोकलीला करते मनुष्य व देवताओं को ओर विशेषकर स्त्रियों को अपने सेवार्थी बनाये रखने के लिए, शेष छोड़ देते है।
यो राक्षस चाहे वो किसी भी प्रत्यक्ष रूप में घोर तप कर वरदान पाकर इनसे लड़े या अप्रत्यक्ष में विनाश का कोई अब जैसा कोरोना कीटाणु बनकर आये।और अब देख भी रहे हो ही,इन्ही राक्षस कीटाणुओं के रूप में राक्षस ने विष्णु जी के व सभी अन्य अवतारों आदि के सब बड़े मन्दिर मस्जिद चर्च गुरुद्धारे बन्द करा दिए,ओर शुभ अशुभ शक्तियों का ये अनादिकालीन युद्ध चल रहा है,इसमें मरता कोन है,मनुष्य जाति,,,
ये राक्षस का कीटाणु राक्षस भी ब्रह्मा और महर्षि कश्यप की सन्तान होने से ओर मृत्युञ्जयी महाविद्या के एक मात्र इस पृथ्वी पर जानकर महर्षि शुक्राचार्य के शिष्य होने से सदा मृत्युञ्जयी है,ये फिर मर कर जीवित हो जाते है,जैसे रक्तबीज राक्षस का देवी काली ने अपने खप्पर में भरकर जमीन पर नहीं गिरने देकर की,ये जमीन पर गिरते ही फिर अनेक हो जाते है,यो अपने मुहं से पीकर नष्ट कर दिए थे,पर ये नष्ट नहीं होते है,ये फिर मृत्युञ्जयी मन्त्र बल से जीवित होकर पृथ्वी रूपी संसार मे आ जाते है ओर विनाश फैला देवताओं को मिल रहे जपतप बल को खत्म कर मनुष्य पर अपना अधिकार जमाते है,जिन्हें हम शास्त्र भाषा मे शैतान,इबलीस,विषधर,ल्युसिफ़र कहते है।यो शैतान भी ब्रह्म की पैदाइश ओर अमर है,यो उसे कोई नही मार सकता है,,इसका उपाय केवल काली देवी की तरहां अपने खप्पर में भरना ओर अपने मुख में पीने का अर्थ है,अपने को सबल बनाना और अपने को ही लोक डाउन कर इस रक्तबीज कोरोना की चेन को तोड़ना ताकि ये भूमि या किसी मनुष्य के शरीर मे प्रवेश कर जीवित रह अन्य मनुष्य को अपने अधिकार करता जीवित बना रहे,तो अन्य मनुष्य से दूरी बनाकर रखखों,यही शास्त्रों में दी दुर्गासप्तशती के युद्ध कथा का आज के कोरोना वायरस राक्षस से लड़कर हराने का महान अर्थ है,समझे भक्तों,,,
यो ही असल वेदों के महाघोष को अपने जीवन में लाओ अपनाओ की-स्वयं की आत्मा का ध्यान करो और स्वयं के अंदर के देवत्त्व का आत्मसाक्षातकार करो और अपने सत्य और पूर्णिमा के प्रकाश को प्रकट कर इन सभी देव देवी रूपी दासत्त्व से मुक्त करके स्वयं के स्वामी बनो।
यही सत्यास्मि मिशन का मूल उद्देश्य है।
लेख बहुत बड़ा हो जाने से अनेक तथ्यों रह जाते है यो,इन्हीं तथ्यों पर चिंतन करोगे तो अन्य प्रश्नों सहित मूल प्रश्न विष्णु जी के राम आदि अवतारों के मूल जन्म स्थानों पर मन्दिर बनने को लेकर अचानक से पुनः पुनः क्यों विध्न आते है,का उत्तर तुम्हे मिल गया होगा।शेष फिर कभी,,,
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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