शशकासन की सही विधि से होते कोन से रोग ठीक ओर कैसे चन्द्र शक्ति पर अधिकार और चन्द्र की छटा के आज्ञाचक्र में दर्शन जाने,, बता रहें हैं,महायोगी स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी,,

शशकासन की सही विधि से होते कोन से रोग ठीक ओर कैसे चन्द्र शक्ति पर अधिकार और चन्द्र की छटा के आज्ञाचक्र में दर्शन जाने,,

बता रहें हैं,महायोगी स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी,,


अब आप देखेंगे कि, एक शश नाम के कितने अर्थ होते है,ऐसे ही योग भाषा में शश का अर्थ बनता है-छटा चक्र ओर चंद्रमा की छटा जो सुंदर सौम्य शीतल प्रकाश से प्रकाशित हो।यो योग शास्त्र में छटा चक्र है-आज्ञाचक्र ओर यही मन जो चंद्रमा का ब्रह्मांड में स्वरूप है वो अपने शीतल स्वरूप में दिव्य छटा से प्रकाशित है।वैसे भी मन की दो शक्तियों में एक शक्ति धारा है-1-सूर्य शक्ति जो पिंगला नाड़ी से सम्पूर्ण शरीर मे प्रवाहित होता है और-2-चन्द्र शक्ति जो इंगला नाड़ी से सम्पूर्ण शरीर मे प्रवाहित होता है।यो मन की ये दूसरी शक्ति चन्द्र शक्ति इंगला नाड़ी के माध्यम से सुषम्ना से आज्ञाचक्र में पहुँचती है,तब ये चन्द्र की दिव्य छटा के दर्शन होते है।और इसी इंगला नाड़ी से कैसे चन्द्र शक्ति सुषम्ना में प्रवेश करें और साधक में चन्द्र शक्ति की प्राप्त कैसे हो आदि आदि के लिए सभी आसनों में सीधे ओर उलटी दोनों साइड से आसन किये जाते है।
ओर शशकासन भी इसी चन्द्र शक्ति की प्राप्ति का एक सहज आसन है।यो इस शशकासन के अभ्यास से जगाओ,अपने इंगला नाड़ी में बहने वाली चन्द्र शक्ति को ओर देखो अपने ध्यान में चन्द्र की अद्धभुत छटा।

शशकासन करने की सही विधि जाने:-
सबसे पहले अपने स्वर को जांच ले, चन्द्र स्वर चले तो सबसे उत्तम है।तब अपने योग मेट या आसन या योगा चटाई के ऊपर वज्रासन में बैठ जाएं और फिर एक गहरी सांस लेते हुए साथ मे अपने दोनों हाथ को आकाश की ओर ऊपर की ओर कंधे कान के साथ सटकर के ऊपर की ओर ले जाये, अब धीरे धीरे अपने सामने की ओर झुकते हुए अपने हाथों को जमीन पर स्पर्श करेंगे ओर दोनों हाथ सामने जमीन पर समानांतर स्थित में रहेंगे,अब वापस पीछे को उठते जाये और हाथों को वापस नीचे लाते हुए विश्राम करें।यह एक क्रिया हुई, बस यही शशकासन क्रिया पूर्ण होती है।
अब इसे ही अपने दोनों हाथों को पीठ के पीछे ले जाते हुए अपनी दोनों हाथों से अपनी एडियों को पकड़े ओर सामने को झुकते अपना सिर धरती पर लगाये।ऐसे ही पद्धमासन में भी सामने की ओर हाथ लाते हुए अपना सिर जमीन पर लगाते है।इस शशकासन में गहरे सांस लेते हुए मूलबंध भी लगाए और मन की शक्ति से अपनी प्राण शक्ति को मूलाधार चक्र से ऊपर को चढ़ाने की सोच करें और सांस छोड़ते हुए मूलबंध को ढीला कर दें,यही बस उल्टे ओर सीधी साइड से एक एक बार ही करें और आगे चलकर समय बढ़ाएं।एक मिनट तक अभ्यास बढ़ाये।

शशक आसन करने के क्या क्या लाभ है:-

यह शशकासन जितना करने में आसान है उतना ही स्वास्थ को सभी प्रकार से बहुत लाभकारी है।इस आसन के नियमित अभ्यास से हृदय रोग,कमर का दर्द,कंधों ओर गर्दनका दर्द, पेट की चर्बी,अग्नाशय,यकृत पर बल लगता है जिसके कारण इन सब में बहुत लाभ होता है।इसके साथ ही तनाव,चिड़चिड़ापन,मानसिक रोग में पूर्ण लाभदायक है।सबसे बड़ा है आध्यात्मिक लाभ।

!!यो करें रोज शशकासन!!
!!बने स्वस्थ मिटाकर रोग नाशन!!

शशक आसन करने में क्या सावधानियां बरती चाहिए:-

शशकासन उनके लिए नहीं है जिनके कंधों में दर्द है
शशकासन वह नहीं करेंगे जिनके रीड के हड्डी में समस्या है।

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
महायोगी स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
Www.satyasmeemission.org

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