विश्व कविता दिवस World Poetry Day 21 मार्च पर ज्ञान कविता
विश्व कविता दिवस पर अपनी ज्ञान कविता के माध्यम से कविता का अपने जीवन उपयोगी अर्थ ओर उद्धेश्य को प्रारम्भ मध्य से अन्तिम चरण तक कैसे एक क्रमबद्ध शब्दों से अभिव्यक्त देते सार्थक करें बता रहें है कि
हर वर्ष 21 मार्च को विश्व कविता दिवस मनाया जाता है। यूनेस्को यानी संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन ने प्रत्येक वर्ष 21 मार्च को कवियों और उनकी कविता की स्वयं से लेकर प्रकृति और ईश्वर आदि तक कि प्रत्येक भावों की सृजनात्मक महिमा को सर्वजन्य सम्मान देने के लिए यह दिवस मनाने का निर्णय किया। यूनेस्को ने 21 मार्च को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा वर्ष 1999 में की थी। विश्व कविता दिवस के अवसर पर भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी की ओर से सबद-विश्व कविता उत्सव का आयोजन हर वर्ष बड़े उत्साह से मनाते हुए किया जाता है।
विश्व कविता दिवस का उद्धेश्य क्या है:-
विश्व कविता दिवस मनाने का मुख्य उद्धेश्य केवल यही है कि विश्व में कविताओं के लेखन,कथन, पठन, प्रकाशन और शिक्षण के प्रसार प्रचार उपयोग के लिए नए लेखकों को प्रोत्साहित किया जाए। इसके माध्यम से छोटे प्रकाशकों के उन सभी प्रयासों को भी प्रोत्साहित किया जाता है जिनका प्रकाशन कविता से संबंधित होता है। जब यूनेस्को ने इस दिन की घोषणा की थी तब उसने कहा था कि क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कविता आंदोलन को यह एक तरह की बहुआयामी पहचान मिली है।अपनी हर क्षेत्रीय भाषा में कविता ये दिवस एक अंतर्राष्टीय मंच पाकर अपने उच्चतर स्वर्ण युग की प्राप्ति करें।
यो इसी सबको मध्यनजर रखते हुए स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी की कविता इस प्रकार से है कि
विश्व कविता दिवस पर ज्ञान कविता
कविता मनुष्य जीवन की लय
जहां सर्व नाहम से सोहम अर्थ।
द्धेत अद्धेत शाश्ववत विशिष्ट
जीये यथार्त चरम हर एक पर्त।।
क’ कौन क्या कैसे क्यूं कहाँ
व’ वर वाम वारी वरण।
इ’ इच्छा इन बिन ईश इति
त तत काल अर्पण आत्म चरण।।
जो देखा ओर सुना हमने
वह कैसे हो शब्दों से व्यक्त।
कैसे उसे लय दे सुरीली
जो श्रोता संग खुद न करे विरक्त।।
प्रेम आक्रोश विछोह मिलन
त्याग अपनत्व विरह सोच।
चिंतन दुःखद सुखद अंतमय
अनुभूति प्रकृति ईश्वरत्व हो शब्द लोच।।
तीन पांच नवधा भाव हो
न लगे एक ही अलापा राग।
उदाहरण संग अलंकार वाच्य हो
कर्त कर्म भाव आरोह अवरोध लाग।।
भ्रमण अन्वेषण नए देती अर्थ
धीर वीर रसिक रसमय प्रधान।
गरिमा हो सब ध्यान समाज रख
आलोचना तर्क सहमत पिर ज्ञान।।
पढ़े मन न मष्तिष्क रटन्त
छुवे मीठी चुभन देती अंतरंग।
मैं ओर क्या चाहत या ये मुझसे
वही उकेरती शब्द क्रम चरम अभंग।।
जीवन बन जनता नर नारी मध्य
वह जीये संगत निकट सदुर।
तन मन आत्मा मिले भाव शब्द रस
पी आनन्द भर आत्मीयता से पूर।।
यही तो कल्पना के शब्द मोती पिरो
भावों के एक धागे चढ़ा प्रवाह पथ।
गति जो अच्छी लगे उस चल
रह संग नितांत एकांत निज गत।।
यो अवश्य कहो लिखो मनचाहा
भावों के धनुष चढ़ा अक्षत शब्द बाण।
भेद देता चल गंतव्य इच्छित
ओर सफलता पा विफलता दे त्राण।।
यो हर मानव कविता करें
ओर बने कवि अपने जीवन।
उद्धेश्य लक्ष्य प्राप्ति तृप्ति को
मनाओ कविता दिवस पावन।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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