मुख्य तौर पर योग शास्त्रों में 12 शिवरात्रि व महाशिवरात्रि का अर्थ,अपने शरीर मे पुरुष तत्व का जागरण करना है,क्योकि स्त्री हो या पुरुष दोनों के शरीर मे 24 तत्व है,जिनमे 12 पुरुष तत्व यानी गर्म (-) शक्ति ओर 12 स्त्री तत्व,यानी ठंडी शक्ति या धन(+) शक्ति।ओर ये ऋण ओर धन शक्तियां हमारे शरीर में पिंगला नाड़ी के माध्यम से पुरुष के 12 तत्वों का फैलाव व उपयोग होता है और इंगला नाड़ी के माध्यम से स्त्री के 12 तत्वों का फैलाव ओर उपयोग होता है।और इन्हीं पुरुष के 12 तत्वों ओर स्त्री के 12 तत्वों का आधा आधा मिलन इस प्रकार () मूलाधार चक्र में होता है ओर इसी दो शक्तियों का अर्द्ध मिलन होने पर ही एक वृत बनता है,जिसे हम वृत कहते है,ये प्रत्येक महीने के 30 दिनों के आधे आधे भाग यानी 15 दिन ओर 15 दिन को कृष्ण पक्ष और अमावस ओर शुक्ल पक्ष व पूर्णमासी कहते है।अमावस्या को पुरुष पक्ष शक्ति के दिन ओर पूर्णिमा को स्त्री शक्ति के दिन कहते है,यो पूरे वर्ष के 12 कृष्ण की अमावस्या की 6 ओर 6 महीने में पड़ने वाली दो महा अमावस्या फाल्गुन ओर सावन को महामावस्या कहते है और इन्हीं महामावस्या को पुरुष शक्ति मनुष्य शरीर में नीचे मूलाधार चक्र से सहस्त्रार चक्र तक सम्पूर्ण रूप से अपना फैलाव लेती है ओर ऐसे ही शुक्ल पक्ष की 6 ओर 6 महीने की दो पूर्णिमा चैत्र व कार्तिक की महापुर्णिमा कहलाती है।ऐसे ही इस 12 पूर्णिमा में स्त्री शक्ति का मनुष्य शरीर मे मूलाधार चक्र से सहस्त्रार चक्र तक फैलाव होता है।ओर इसी मूलाधार चक्र यानी अमावस्या से सहस्त्रार चक्र यानी पूर्णिमा तक नीचे से ऊपर ओर ऊपर से नीचे तक एक चक्र बनता है,यही चक्र की वृत कहलाता है,यो इन दो महामावस्या ओर दो महापूर्णिमा को जो मनुष्य अपनी आत्मा का ध्यान करते हुए,इस महाव्रत को अपने शरीर मे साधना करता है,वह सभी प्रकार की अष्ट सिद्धि यानी भौतिक शक्तियों ओर अष्ट रिद्धि यानी आध्यात्मिक शक्तियों की प्राप्ति करता है,यो उसे अपने अंदर छिपी सोलह कलाओं का ज्ञान और सिद्धि होकर सम्पूर्ण आत्मसाक्षातकार की प्राप्ति होती है।ओर ये सब महाव्रत का चक्र को सत्यास्मि मिशन की खोज रहिक्रियोग से सहजता से प्राप्त किया जाता है।
ओर अब आपको प्रचलित पौराणिक कथा,जिसमें शिव पुरुष शक्ति है और पार्वती स्त्री शक्ति है और उसका विवाह रूपी मेल कथा,जो स्त्री ओर पुरुष शक्ति का मूलाधार चक्र से सहस्त्रार चक्र का महाव्रत कथा अर्थ है।जो सामान्य भाषा में इस प्रकार से प्रचलित है।पर सत्य ऊपर बता चुका हूं।तो,,,
फागुन महीने की सबसे महत्त्वपूर्ण बड़ी महाशिवरात्रि 21 तारीख को शाम को 5 बजकर 20 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी कि 22 फरवरी दिन शनिवार को शाम सात बजकर 2 मिनट तक रहेगी।इसमें विशेष रूप से रात्रि प्रहर की पूजा यज्ञानुष्ठान,ध्यान साधना सिद्धि का समय शाम को 6 बजकर 41 मिनट से रात 12 बजकर 52 मिनट तक होगा,ओर अगले दिन सुबह शिव या देव मंदिरों में भगवान शिव ओर उनके परिवार व शिवलिंग की विधि-विधान से पूजा की जाएगी।यहां बता दूं कि, पूरे वर्ष के हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन आने वाली शिवरात्रि को सिर्फ शिवरात्रि कहा जाता है। परंतु फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन आने वाले शिवरात्रि को ही महाशिवरात्रि कहा जाता है। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से ये महाशिवरात्रि ही सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।
इसके पीछे की मान्यता क्या है?..
भारतीय पंचांग के अनुसार,फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। ऐसी माान्यता है कि इस दिन ही देवी पार्वती की तपस्या में पाए शिव जी से विवाह की मनोकामना के वरदान के फलस्वरूप ही भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था।शिव पुराण आदि शास्त्रों की मानें तो,महाशिवरात्रि त्रयोदशी युक्त चतुर्दशी को ही मनाई जानी चाहिए।
इस महाशिवरात्रि के व्रत की महिमा की कथा क्या है:-
महाशिवरात्रि के इस महादिन के बारे में एक कथा प्रचलित है की, एक बार पार्वतीजी ने भगवान शिव से पूछा, ‘ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर मनवांछित वरदान प्राप्त का भौतिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर लेते हैं?’ उत्तर में शिवजी ने पार्वती को बताया कि,किसी भी 12 ‘शिवरात्रि’ में से किसी भी शिवरात्रि से अपना व्रत प्रारम्भ करके,अंत में महाशिवरात्रि को अपना महाव्रत सम्पूर्ण करें,या महाशिवरात्रि से अपना व्रत को प्रारम्भ करके,एक वर्ष के बाद इसी दिन महाशिवरात्रि को अपना व्रत सम्पूर्ण करें,तो उसे समस्त मनोकामनाओ की प्राप्ति होगी।
पंचामृत से शिव जी या शिवलिंग को ॐ नमः शिवाय मन्त्र से जप करते हुए,अभिषेक करते हुए स्नान कराएं ओर वहीं बैठकर शिव ध्यान करें।और मौसमी फलों का दान गरीबों में करें।
विशेष ध्यान योग,रेहीक्रिया योग ध्यान करें:-
वैसे सत्यास्मि भक्तो को केवल अपने गुरु सिद्धासिद्ध महामंत्र सत्य ॐ सिद्धायै नमः ईं फट स्वाहा, से जप और रेहि क्रियायोग से ध्यान करते हुए ये अपने अंदर की पुरुष शक्ति ऋण शक्ति यानी पिंगला नाड़ी की जागृति करने से अपना तेजस्विता बढ़े।वैसे ही स्त्री में भी जो पुरुष शक्ति है,ऋण शक्ति उसका रेहीक्रिया योग से उत्थान करते हुए जागरण करना चाहिए,ये ही सच्चा महाशिवरात्रि व्रत रखना और उसकी साधना है।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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