क्या आप जानते है कि, किसान की दरांती,जो देखने में साधारण सा उपयोगी साधन,ओर हैं कितना विध्वंशक अस्त्र है?ओर ये कुछ देशों में प्राचीनकाल से आज तक उनका राष्टीय प्रतीक चिन्ह भी है?
तो आओ बताते है कि,इस साधारण से पर उपयोगी कृषि उपकरण यानी दरांती,इस दरांती को हंसिया भी कहते है,पर हंसिये में कुछ अतिरिक्त लम्बाई के धारदार फल का उपयोग होता है,ओर दरांती का साइज मीडियम तक ही रहता है।
इसे सबसे ज्यादा कृषक लोग उपयोग करते है,घास काटने से लेकर फसल काटने या पताई आदि अनेक कृषि के कार्यो में सर्वाधिक उपयोग होता है।
साथ ही इसका प्राचीन इतिहास में ये सबसे पुराना उपकरण रहा है और देश विदेश के अनगिनत प्रमाणिक ऐतिहासिक ग्रन्थों में इसका उल्लेख के साथ साथ से लेकर सैन्य पुरुषकारो के मध्य में ओर राष्टीय ध्वजों में इसका आज तक प्रतिष्ठित चिन्हों के रूप में प्रयोग होता आया है।
ओर इसका समय समय पर कृषकों ने अपने ऊपर होने वाले सैन्य आक्रमणों में बड़ी सफलता से उपयोग किया था और ये अधिकतर खेतो में काम करते में जंगली जानवरों से रक्षा में सहजता से अपने पास उपलब्ध होने से कारगर सिद्ध हुआ।अनेक बार सामान्य जनसाधरण से लेकर कृषकों पर हथियार रखने पर प्रतिबंध लगाए जाने पर,दरांती ही उनकी रक्षा में काम आयी।विशेषकर स्त्रियों को खेतों में काम करते में अचानक से हुए,कृषकों को दमन व लूटपाट के लिए सैन्य हमलों में इसी दरांती ने उनकी सैनिकों की तलवारों ओर भालों से सहजता से रक्षा की ओर पास से चलाए जाने के कारण ही ये आक्रमणकारी को शीघ्र ही धराशायी करने में सदा सक्षम सिद्ध हुई।जैसे,जापान आदि में भी कृषकों पर हथियार रखने पर प्रतिबंध लगाने पर,उन्होंने धान कूटने में उपयोग होने वाले एक रस्सी या लोहे की चेन से जुड़े दो लकड़ी के डंडे,जिसे नान चाकू कहते है,का युद्धकला में अभ्यास करके आत्मरक्षा में बहुत ही उत्तम प्रकार से उपयोग किया,जो आज भी मार्शल आर्टिस्टों के प्रदर्शन का सबसे ज्यादा सरल हथियार है।ठीक वैसे ही दरांती भी है।यो ये सामान्य तोर पर युद्ध के हथियारों में नहीं दिखती है,ओर नही आपको युद्ध के हथियारो के चित्रों में दिखाई देती है,पर ये उन सब हथियारों के समान सम्पूर्ण युद्ध उपयोगी हथियार रहा है।




आज विदेशी या भारतीय युद्ध कला में ये नहीं दिखती है,इसी को भारतीय व्यायाम की सर्वश्रेष्ठ प्राचीन पद्धति पफ़स्सि के अंतर्गत ही बलवर्द्धक व्यायाम और युद्ध कला के संस्थापक स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी ने इस दरांती यानी हँसिये का कृषक कैसे युद्ध कला में उपयोग करते थे,वो करके बताया है।स्वामी जी का उद्धेश्य आज भारत मे विदेशी मार्शल आर्ट के बढ़ते प्रभाव की छाप को आज की जनरेशन पर पड़ते देख,की विदेशी मार्शल आर्ट ही युद्ध कला श्रेष्ठ है,या फिर दक्षिण भारत की क्लियरपट्टू अति प्राचीन है,इसका खंडन किया है,की हमारे भारत मे विशेषकर उत्तर व पूर्व या पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे ही सर्वाधिक महान योद्धा हुए है,अति प्राचीन काल के आर्य सम्राठों से लेकर प्रथम भगवान महाराजा राम से लेकर हस्तिनापुर के सम्राट पांडव व श्री कृष्ण बलराम आदि ओर यही के महान महर्षि विश्वामित्र जो प्रथम भगवान राम के युद्ध विद्या के गुरु रहे,ओर तब से 18 वीं शताब्दी तक इसी क्षेत्रो में अनगिनत युद्ध व क्रांति युद्धों का प्रारम्भ हुए और इन्हीं पंजाब राजस्थान के क्षेत्रो ने अधिकतर विदेशी युद्धों को झेला।
अब इन्ही युद्धों के चलते इन क्षेत्रों से ये भारतीय युद्धकला लुप्त होती गयी।यहां कहने का अर्थ भारतीयों के अन्य राज्यो को युद्धकला आदि में कम आंकना नहीं है,बल्कि ये बताना है कि,केवल भारत मे दक्षिण की युद्धकला ही प्राचीन व महत्त्वपूर्ण नहीं,बल्कि इस क्षेत्र की युद्धकला का प्रचार हुआ ही नहीं है।बस यही बताना मुख्य विषय है,जिसमें दरांती ओर अन्य सामान्य से लगने वाले देहाती उपकरणों का कैसे युद्धकला में उपयोग होता रहा है,इसे व ऐसे अन्य विषयों को समय समय पर स्वामी जी अपने लेख ओर प्रदर्शन की वीडियो के माध्यम से बताते रहते है।यो आप देखें और अभ्यास कर सीखें।अभी स्वामी जी का ऐसे किसी की ये विषय को सीखने का उद्धेश्य नहीं है,सिखाने आदि के इस विषय पर फिर भविष्य में क्या स्थिति रहेगी,ये आगे कभी बताया जाएगा।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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