भगवान विश्वामित्र जयंती,,, अक्षय तृतीया व गुरु पूर्णिमाँ पर श्री सत्यनारायण के अवतार,श्री विष्णु अवतार के छठे अवतार स्वयँभू गुरु भगवान ब्रह्मवेत्ता विश्वामित्र जन्मोउत्सव दिवस मनाया जायेगा इस दिवस पर “सत्यास्मि मिशन की ओर से स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी की कवित्त्व विश्व गुरु विश्वामित्र जी की महाकथा महिमा भेंट:-

भगवान विश्वामित्र अवतरण कथा:-

चैत्र पूर्णिमा ब्रह्म सृष्टि हुयी
बैशाख पूर्णिमा प्रथम घोष एकोहम् बहुस्याम।
आषाढ़ पूर्णिमा विश्वामित्र जन्म
गायत्री मंत्र उद्धघोषित किया विश्वकल्याण।।
चल रहा धरा वेद विरूद्ध आचरण
और बढ़ी परम्परा जातिवादी।
ब्रह्मज्ञान त्याग ब्रह्म अहंयुक्त हो
सप्तऋषि बन गए स्वं अतिवादी।।
यही देख मूल परमेश्वर ने
श्रीयुक्त किया स्वयं विचार।
त्रिदेव से भी अज्ञात रख
स्वयं हुए अवतरित जग उद्धार।।
सत्य आचरण हेतु जगत
सत्यनारायण ने लिया विश्व अवतार।
सत्य आत्मा ॐ आत्मशक्ति मिला
किया सत्य ॐ जप महामंत्र स्वयं उच्चार।।
ब्रह्मा पुत्र गाधि के जन्में
सत्यवती विश्वरथ ब्रह्मपोत्र।
यूँ चला इन्हीं से ब्रह्म छत्रिय वंश
और अनंत छत्रिय वंशीय गोत्र।।
सत्यनारायण अवतारी ब्रह्मविद्याधारी
ब्रह्मसाकर विश्व के चित्र।
आत्मसाक्षात्कारी पूर्णिमाँ महासिद्ध
सत्यास्मि गाये अमर गाथा विश्वामित्र।।
नहीं कोई तपि यति विश्वभर
और नहीं कोई मति प्रथम श्री गुरु ईश्वर।
अनादि वेद पराविद्या सम्पूर्णम् कर्ता
क्षत्रिय विश्वरथ से विश्वामित्र नरता।।
माधवी पत्नी शनुःशेप पुत्र
सत्यनारायण पूर्णिमाँ अधिष्ठा देवी देव।
नर नारी ही इश्वत प्रत्यक्ष प्रेम ब्रह्म
इस जगत नित्य अवतरित स्वमेव।।

*वशिष्ठ विश्वामित्र विवाद कारण:-

विश्वामित्र की इच्छा थी
धरा पर बने जीवंत स्वर्ग।
व्यर्थ कपोलकल्पित स्वर्ग मिथक
यही विवाद बना धर्म वर्ग।।
कथित ब्राह्मण इस स्वर्ग कथा
करते रहते सदा कपट।
उत्तम वस्तु जीव स्वयं रख
यज्ञ नाम जन से करते झपट।।
राजन बनते इसी नियम को
विश्वरथ ने किया नियम प्रतिबंध।
इसी विरोध में वशिष्ठ युद्ध हुआ
यूँ ब्राह्मणत्त्व हुआ विरोधी स्वछंद।।
वेद विरोधी नियम देख
वेद नियम किया देश चालन।
छत्रबल विफलता देख कर
तब किया वेद नियम स्वंपालन।।
तब अधूरे अलुप्त वेदों का
किया पुर्न जीणोउद्धार।
यूँ गायत्री मंत्र प्रकट किया
दिया जन को दिव्य उपहार।।

*धर्म युद्ध प्रकरण कथा:-

विश्वधरा कर विजय श्रीयश
अतिथ्य पाया महर्षि वशिष्ठ।
देख ब्रह्मत्त्व अतुलित एश्वर्य
मांगी कामधेनु माँ गोधिष्ठ।।
त्रिष्कृत हुए मना इस मांग
अपमानित हुआ छत्रीयत्व स्वाभिमान।
मनवांछित वरदान ब्रह्मणात्त्व शोभा
ये तो है यहाँ ब्रह्मत्त्व अभिमान।।
तभी किया क्षत्रबल सभी प्रयोग
गो नंदनी समक्ष विफल अयोग्य।
इस भीषण युद्ध हुए पराजय
एक छोड़ मरे सभी पुत्र सुयोग्य।।
चले थके पराजित तब कौशिक
ब्रह्मबल आगे छत्रिय बल क्षीण।
करी उग्र तपस्या शिव आराधन
पायी दिव्य धनुर्विद्या तप उत्तीण।।
पुनः लोट वशिष्ठ युद्ध ललकारें
सभी दिव्य अस्त्र चलाये संहारे।
सभी विफल हुए ब्रह्मास्त्र
दिव्य छत्रिय पराक्रम हारे।।

   *भारत देश नामकरण प्रकरण:-

ब्रह्मबल को ब्रह्मबल ही मारे
यही भीषण संकल्प विश्वरथ।
चले वेद विद्या कर सुमरित
हो कर ब्रह्म ध्यान समाधि रत।।
तपबल बढ़ा त्रिलोक हुए कंपित
देव इंद्र सिंहासन डोला।
भेज काम सुंदरी मेनका को
जा अप्सरा ने काम मंत्र बोला।।
कामनाएं सभी मूलाधार विषय है
और कच्चा अहं स्वाधिष्ठान।
यो दो काम मंत्र टकराये जब
तब विजय काम हो भान।।
त्रिगुण की सभी उपासना
दे राजर्षि तक पद।
मिले सभी ऋद्धि सिद्धि
पर नही पाये ब्रह्मपद।।
टूटा तप तपि हुए कामगत
नर नारी एक हुए मूलाधार।
जगी कुंडलिनी दो योग हो
ब्रह्मत्त्व का बना आधार।।
तपि को तपि नारी झेले
सहज नार नही हो वश।
तप बल हो तपि क्षीण भीण
यहाँ कथा योग रहस्य यश।।
तपि इन्द्रियों का इंद्र बल
वही नियंत्रित करे बढ़े तप।
भेजता दिव्य अप्सरा तपोबली
धर्म इतिहास भरा इस अप।।
तब जनित हुयी शकुंतला
जिसका विवाह हुआ दुष्यंत।
जन्मा भरत इसी मातृ अंश
नवीन नाम भारत धरा अनंत।।
जो कहे ऋषि को योग भृष्ट
वे नही जाने दिव्य भोग जग।
सभी ऋषि अवतार तक
उत्पन्न पुत्रेष्ठी योग यज्ञ।।
सामान्य नारी नही जन्में
ना ऋषि ना कोई अवतार।
नारी तपोबली चाहिए
इस जग तारण को नार।।
स्वयं विश्वरथ कोशिक भी
धरा आये यज्ञ बल फल।
सहज रानी से जन्में मरे
पुत्र वशिष्ठ शाप के जल।।
यो ऋषि और मेनका नार से
जन्मी शकुंतला तप शक्ति।
पली संरक्षण कण्व ऋषि
और पायी तप ज्ञान भक्ति।।
तभी हुए महावीर भरत।
भारत महान पांडव गौरव।।
काम भाव से सहज हुए
और हुए वासना मुक्त।
दिव्यता भरी ऋषि देह में
हुए अपरा ब्रह्म में युक्त।।
ऋग्वेद वर्णित मेनका
ऋषि कश्यप प्राधा पुत्री।
महाराज प्रष्त की नार बन
द्रुपद पुत्र जिसकी द्रोपती पुत्री।।

*वेद गायत्री उद्धभव व् कीलन- उत्कीलन और आत्मसाक्षात्कार ही सर्वश्रेष्ठ सिद्धि:-

ब्रह्म नाम स्वयं आत्मा
अर्थ आत्मसाक्षात्कारक।
अब नही असमानता इस ब्रह्मजगत
तब स्वयं ब्रह्मर्षिपद धारक।।
ब्रह्मा परे जो ब्रह्म है
वही किया अंतः एक्त्त्व।
उस ब्रह्म के आगे नही शेष कोई
अशेष यही गतत्त्व।।
सब इच्छा सभी इच्छित हुयी
महाइच्छा का महाभाव।
ब्रह्मतेज हुआ प्रकाशित जगत
ब्रह्मत्त्व हुआ स्वभाव।।
देव करें अब स्तुति
और वशिष्ठ पहुँचा समाचार।
मिलने आये स्वयं वशिष्ठ
इस ब्रह्मत्त्व को किया ह्रदय से प्यार।।
इस प्रज्ञा ज्ञान दर्शित हुया
चतुर्थ वेद महामंत्र गायत्री।
मनुष्यता को मिली दिव्यता
अर्थ धर्म काम मोक्ष माँ दात्री।।
त्रिशंकु की इच्छा थी
जीवित जाने की स्वर्ग।
गुरु वशिष्ठ असमर्थता जता गए
प्रकति नियम का देकर तर्क।।
अब विश्वामित्र की शरण ली
ब्रह्मर्षि ने क्या महायज्ञ।
देव लेने नही आये अर्ध्य धरा
तब संकल्पित किया आत्मवतयज्ञ।।
त्रिशंकु मनोरथ पूर्ण को
दिया गायत्री आदेश।
गायत्री प्रकर्ति नियम भंग
करने सामर्थ्य नही विशेष।।
अवज्ञा देख प्रजनित मंत्र
कीलित दिया गायत्री शाप।
पुनः गायत्री विनय पा
उत्कीलन बनाई गायत्री आप।।
तब अपना आत्मबल कर उदय
और आत्मबल किया आवाहन।
उसी आत्मबल संकल्प से
किया त्रिशंकु स्वर्ग समाधान।।
यो विश्वामित्र सीखा गए जगत को
लौकिक सिद्धि वरदाता त्रिदेव।
आत्मसिद्धि उत्पन्न कर आत्मबल
जाग्रत पाओ मनवांछित वर स्वंमेव।।
यूँ तोड़ दिए नियम प्रकर्ति के
त्रिशंकु बढ़ चला उथित हो स्वर्ग।
इंद्र ने रोका बज्र प्रहार कर
गिर चला त्रिशंकु बिन पाये वर्ग।।
त्रिशंकु करें करुण पुकार
गुरु बचाओ इस निराधार।
देख शिष्य की दुर्दशा
जल ले किया महामंत्र उच्चार।।
पहले रोका त्रिशंकु आकाश
और संकल्प किया नव स्वर्ग।
कांप गया ब्रह्म ब्रह्मांड यूँ
अब नवीन सृष्टि होगी स्वर्ग।।
देव इंद्र भय कंपित आये
ब्रह्मर्षि समक्ष सविनय सुनायें।
प्रभु त्रिशंकु ग्रस्त गुरु शाप
यूँ स्वर्ग नही देव धसायें।।
गुरु बोले शिष्य शरण जब आये
गुरु तत्क्षण दुःख हर लेता।
और मनसा करता शिष्य अधूरी
तभी शिष्य गुरु ज्ञान को सेता।।
अब रुके नही ये किया संकल्प
और होगा दूजा स्वर्ग विकल्प।
सदा रहेगा वहाँ निर्भय त्रिशंकु
मनवांछित आयु पाले जन्में अल्प या कल्प।।
नव सप्त ऋषि मंडल होगा
नवीन ऋषि होंगें नव युग।
मनवांछित भोग निज कर्म कर
लौटेगा मानुष धर्म नव युग।।
संकल्प चला सिद्धि करने
नवयुग नव स्वर्ग कर निर्माण।
त्रिशंकु करके नमन गुरु को
हे-महागुरु स्वयं तुम निर्वाण प्रमाण।।

*सत्यवादी हरिश्चंद्र गुरु विश्वामित्र:-

त्रिशंकु वंशज हरिश्चंद्र
उनके पूर्वज गुरु विश्वामित्र वंद।
परीक्षा ले सत्यवचन की
बनाये सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र।।

*छटे अवतार ) परशुराम के गुरु विश्वामित्र:-

विश्वामित्र की सत्यवती बहिन
उसके पौत्र परुषराम।
बाल्य गुरु विश्वामित्र बना
ली अपरा महाविद्या परुषराम।।

*प्रथम भगवान श्री राम के गुरु:-

बीता सत्ययुग त्रेता युग आया
रावण का बढ़ा असुर साम्राज्य।
त्रिलोक विजय श्री कर रावण ने
स्वजन असुरों शासन किया विभाज्य।।
खर दूषण और असुर ताड़का
वनों पर इनका प्रभुत्त्व बढ़ा।
ऋषि तपस्या भंग करते करते
अपना आसुरिय वर्चस्व चढ़ा।।
यज्ञ तप बांधक देख कर अपने
निश्चय किया विनाश असुर।
संधान किया दिव्य अस्त्रों का
नष्ट करूँ समस्त रावण वंश असुर।।
ध्यान लगा दिव्य द्रष्टि ध्यायी
रावण वध भविष्य द्रश्य हुया।
विष्णु लक्ष्मी अवतार राम सीता
वही मारक तारक अभीष्ट हुया।।
नर अवतार लीला में अपना
विद्या गुरु हूँ प्रथम भगवान।
विवाह आदि संस्कार निज हाथों
ये देख विनाशक संकल्प किया अमान।।
महाराज दशरथ भेज संदेश
अपना जनहित उद्धेश्य बताया।
गुरु वशिष्ठ से दशरथ ने जाना
श्री राम इश्वत धर्म अथाया।।
विश्वामित्र तुल्य नहीं जगत में
कोई श्री राम अतुल्य गुरु।
इन्हीं से समस्त दिव्य विद्या होंगी
पुनः श्री राम भगवान तरु।।
ले चले महागुरु महाभगवत को
जग के तारण को दे विद्यादान।
एकत्र किया अमूल्य ज्ञान जो
दिया उन्ही का जिनका है ज्ञान।।
ईश्वर लीला अनंत अथाया
समझ सके कोई नरयति ही ध्याया।
आती है विद्या साधन जग पहले
और सुशोभित होती ब्रह्मऋषि नरकाया।।
सभी दिव्य अस्त्र सिखाये
असुर यज्ञ विध्न को आये।
राम लक्ष्मण ने असुर संहारे
गुरु विद्या धर्म कार्य सहाये।।
गुरु संग जा स्वयंवरण की सीता
शिव धनुष तोड़ प्रतिज्ञा अजिता।
शिव शक्ति गयी शिव के लोका
छट अवतार परुषराम युग बीता।।

    *महात्मा बुद्ध के गुरु विश्वामित्र:-

ब्राह्मण वर्चस्व अस्वीकार कर
बने प्रथम स्वयंभू आत्मवतार।
सभी प्रेरित किये आत्म बली बनो
यही उपदेश विश्वामित्र आत्म अवतार।।
यो कलियुग में सिद्धार्थ के
बने योग शास्त्र दीक्षा गुरु।
विश्वामित्र से आत्मज्ञान पा
बद्ध से बुद्ध बने शांतितरु।।
गुरु रूप कर्तव्य किया पूर्ण
धर्म कार्य किये कालांतर सम्पूर्ण।
अंत में सिद्ध ज्ञानगंज स्थापित कर
हिमालय पर्वत सूक्ष्म कैलाश।
जगत कल्याण महावतार अंश
दे गए बाबा जी सदगुरू आवास।।
समवेषित हुए सत्यनारायण अवतार
गुरु विश्वामित्र अवर्णीय कथा विपूर्ण।।

*विश्वामित्र वर देन नारियल:-

मनुष्य पशु बलि विरोध में
दिया नारियल धर्म समाज।
इसमें नेत्र मुख व्याख्या मनुष्य
सम्पूर्ण धर्म अर्थ है विराज।।
विश्वामित्र की महा देन
पूजनीय नारियल फल।
सर्वत्र पूजनीय धर्म कर्म तीर्थ
और वरदायी परम् अचल।।

*विश्वामित्र और वर्तमान स्त्रियुग घोष:-

स्वं निर्मित नवर्षि मंडल में स्त्री ऋषि
स्थापन करें आत्म स्वयं।
आत्म ज्ञान पूर्णिमाँ पा
सत्यास्मि पाये जीवंत स्वयं।।
ब्राह्मण को ब्रह्मत्त्व सिखाया
छत्रिय को छत्रियत्त्व।
वेद मार्ग दे सब आर्य जनों को
गए आत्मलोक सत्य के गत्व।।
जब जब धर्म की हानि होगी
पुनः पुनः लूंगा सत्यावतार।
पुरुष युग उपरांत स्त्री युगों में
सहयोगी बनूँगा स्त्री पूर्णिमाँ दे आभार।।
अर्थ धर्म काम मोक्ष के हेतु
चतुर्थ नवरात्रि किया स्थापन।
गायत्री पूर्णिमाँ आत्मविद्या देकर
उपकार किया जगत व्यापन।।
प्रकट किया गायत्री उर्ध्व
सत्य पुरुष ॐ मंत्र नार।
स्वयं सिद्ध बनो आत्म साकारी बन
यही भगवान विश्वामित्र पूर्णिमाँ ज्ञान सार।।
यो इन्हें स्मरण करो दे गुरुपद
तब करो ब्रह्मविद्या पूर्णिमाँ आवाहन।
जपो- सत्य ॐ सिद्धायै नमः ईं फट् स्वाहा
अहम् सत्यास्मि हो आत्मपावन।।
आषाढ़ पूर्णिमाँ से पुनः आषाढ़ तक
जला ज्योत पूर्णिमाँ करे व्रत।
चढ़ाएं नारियल संकल्प कर
मनवांछित सिद्ध कर्म विश्वामित्र कृत।।

🙏जय जगत गुरु श्रीमद भगवान विश्वामित्र की जय🙏
🙏जय सभी संत गुरुओं की जय🙏
🙏जय सनातन धर्म की जय🙏
🙏जय सत्य पूर्णिमाँ ईश्वरी की जय🙏
🙏जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः🙏
Www.satyasmeemission.org
🗣श्रीमद्भ भगवान विश्वामित्र आरती🔔🔊

गुरु पूर्णिमाँ श्रीमद् भगवान विश्वामित्र जयंती, जन्मोउत्सव:-

ॐ जय विश्वामित्र भगवान,प्रभु जय विश्वामित्र महान..
तुम्हीं हो विद्या अक्षय-2,पूर्णिमा हो विद्यमान..ॐ जय विश्वामित्र भगवान..
आषाढ़ पूर्णिमाँ तुम हो जन्में,पूर्णतम करने ज्ञान-2..प्रभु पूर्णतम करने ज्ञान..
वेद विरुद्ध आचरण को-2,मिटाने आये सत्यनारायण भगवान..ॐ जय विश्वामित्र भगवान..
आत्ममुक्ति के स्वयंभू धारक,तुम से प्रकट ब्रह्म का ज्ञान-2..प्रभु प्रकट..
वेद के पूरक तुम हो-2,गायत्री दे ज्ञान।ॐ जय विश्वामित्र भगवान..
सूर्य वंश के तुम महा राजा,कुलभूषण क्षत्रिय वंश-2-प्रभु कुलभूषण..
तुम्हीं तारक कुल भारत-2,तुम ने मिटाये शाप कुल दंश..ॐ जय विश्वामित्र भगवान..
जन कल्याण को ऋषि वशिष्ठ से,मांगी कामधेनु गाय-2..प्रभु मांगी..
मना देख ऋषिवर की-2,क्षत्रबल पाया अति असहाय..ॐ जय विश्वामित्र भगवान..
ब्रह्मास्त्र शिव तप से पाया,उसे विफल युद्ध तप पाय..प्रभू विफल..
तब ली आत्म समाधि-2,तब ध्याया ब्रह्म अथाय..ॐ जय विश्वामित्र भगवान..
जगी आत्मवत् शक्ति, मिला आत्ममय ज्ञान-2-प्रभु मिला..
अहम् सत्य हूँ सनातन-2,हुयी गायत्री संधान..ॐ जय विश्वामित्र भगवान..
आत्मज्ञान में देखा,मैं सत्यनारायण भगवान-2-प्रभु मैं..
अब कोई नही प्रतिद्धंदी-2-मैं स्वयंभु हूँ भगवान..ॐ जय विश्वामित्र भगवान..
जग पद सभी हुए अब छोटे,गायत्री पा ज्ञान..प्रभु गायत्री..
पुर्णिमाँ हुयी प्रकाशित-2,पाया स्वयं ब्रह्म हूँ भान.,ॐ जय विश्वामित्र भगवान..
आत्मरूप को देख जगत सब,हुआ परम अभिभूत-2-प्रभु हुआ..
वशिष्ठ सहित जग ऋषिवर,स्वीकारा विश्वामित्र विभूत..ॐ जय विश्वामित्र भगवान..
इस बीच विकट तप देख इंद्र ने,भेजी मेनका नार-2-प्रभु भेजी..
अंगीकार कर उसको-2,शकुंतला पुत्री जग दी उद्धार..ॐ जय विश्वामित्र भगवान..
शकुंतला पुत्र महान भरत है-2,जिस पे पड़ा है भारत नाम-2..प्रभु जिस पे..
भरत वंशी कुरुवंशी-2,जिसमें महाभारत हुआ अभिनाम..ॐ जय विश्वामित्र भगवान..
तुम्हीं जगत के महागुरु हो,तुमरे बाल शिष्य परुषराम-2-प्रभु बाल शिष्य..
प्रथम ईश गुरु तुम-2- तुम्हरे महा शिष्य श्री राम..ॐ जय विश्वामित्र भगवान..
सत्यवती है तुम्हरी बहिना,उसके पोत्र ईश परुषराम-2..प्रभु उसके….
तुम्हरे वंश ययाति-2, इनके यदु कुल कृष्ण बलराम..ॐ जय विश्वामित्र भगवान…
तुम हो बाबा जी कलियुग के,महागुरु नाथ करतार-2-प्रभु महागुरु..
बुद्ध के गुरु तुम्हीं हो-2, महागुरु सत्य अवतार..ॐ जय विश्वामित्र भगवान
जो मांगे सो देते,चाहे नियम सभी हो भंग-2..प्रभू नियम..
दे नया स्वर्ग त्रिशंकु-2,बनाएं हरिश्चंद्र सत अभंग..ॐ जय विश्वामित्र भगवान..
ज्येष्ठ दशहरा आत्म हुयी सिद्धि,किया गायत्री उच्चार-2..प्रभु गायत्री..
इसी दिवस दी दीक्षा-2,गंगा के तट नर नार..ॐ जय विश्वामित्र भगवान..
तुम सत्य पुरुष हो ॐ है शक्ति,भुर्व भुवः स्वः विद्य-2..प्रभु भुर्व…
हो सिद्धायै कुंडलिनी-2,नमः परम् स्वसिद्ध.ॐ जय विश्वामित्र भगवान..
बलि प्रथा को रोकने हेतु,नारियल किया संधान-2..प्रभु नारियल..
देव देवी कर स्थापित-2,नारियल पूज्य विधान..ॐ जय विश्वामित्र भगवान..
जो कोई करे आरती नित दिन,उसे वैदिक हो सद्ज्ञान-2.प्रभु वैदिक..
अर्थ धर्म मिल काम मोक्ष हो-2,पाये पूर्णिमाँ ॐ सत्य भान..ॐ जय विश्वामित्र भगवान।।

🙏बोलो श्रीमद् भगवान विश्वामित्र की जय🙏

श्री विश्व गुरु विश्वामित्र गायत्री मंत्र
ॐ सत्य पुरुषायै विद्यमहे गुरु विश्वामित्र धीमहि तन्नो गायत्री प्रचोदयात्।।

!!स्वामी सत्येंद्र सत्य साहिब जी कृत भगवान श्री विश्वामित्र आरती सम्पूर्ण!!
Www.satyasmeemission.org

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