पवनमुक्तासन से कैसे करें,अपने पेट के सभी रोगों को ठीक ओर तीनों बंध लगाते हुए कैसे करें नाभि चक्र का जागरण,,,
बता रहें है,महायोगी स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी,,
पवन मुक्त आसन का सीधा अर्थ है-जिस मुद्रा अवस्था में आपकी दूषित वायु शरीर से बाहर निकल जाएं ओर आप दूषित वायु और उसके प्रदूषण से बने शरीर मे सभी रोगों से मुक्त हो जाओ,वही पवन मुक्तासन कहलाता है।
पवन मुक्त आसन के लाभ क्या है :-
पवन मुक्त आसन पेट के सभी रोगों के लिए बहुत ही लाभप्रद है। इस योग से गैसटिक,नाभि का बार बार हट जाना मिटकर अपने केंद्र में सही से स्थिर होकर स्थित हो जाती है।लिवर,आंतें किडनी की कमजोरी या खराबी में बहुत अच्छा लाभ मिलता है। पेट की बढ़ी हुई चर्बी के लिए तो आसन यह बहुत ही लाभप्रद है।पसलियों ओर कंठ के अगले भाग के रोग,आवाज में कम्पन होना बंद होता है,खराश दूर होती है, कमर दर्द, साइटिका, हृदय रोग, गठिया में भी यह आसन लाभकारी होता है। स्त्रियों के लिए,तो गर्भाशय सम्बन्धी रोग में पावन मुक्त आसन बहुत ही फायदेमंद होता है। इस आसन से रीढ़ यानी मेरूदंड और कमर के नीचे के हिस्से में मौजूद तनाव दूर होता है।
इस आसन को करते में गहरा सांस ले और छोड़े,कुम्भक नहीं करें और सदा मूलबंध लगाकर पूरी एक प्रक्रिया को करके ही सीधे होने पर मूलबंध खोले।इस आसन में मूलबंध ओर उड्डीयानबन्ध व जालंधर बंध लगता ही है,पर कुम्भक नहीं करे,सहज सांस ले और धीरे से छोड़े यो केवल एक मुद्रा में 5 से 10 बार ही सांस ले और छोड़े ओर 10 सेकेंड से एक मिनट तक करें फिर एक्स्ट्राऑर्डरनरी असाधारण अभ्यास भी एक बार करें तो,आपकी नाभि बिलकुल नही डिगेगी।तीनो चक्र ओर खासकर नाभि चक्र जाग्रत होता है।




पवन मुक्त योग में सावधानियां:-
जिन लोगों को कमर दर्द की शिकायत हो उन्हें यह आसन,बहुत धीरे ओर जितना बने सहज हो,उतना ही करना चाहिए, जिनके घुटनों में तकलीफ हो उन्हें स्वस्थ होने के बाद ही यह योग करना चाहिए. हार्नियां से प्रभावित लोगों को भी स्वस्थ होने के बाद ही या बहुत थोड़ी मुद्रा बनाकर कम समय लगाकर यह योग करना चाहिए। स्त्रियों को मासिक के समय यह योग नहीं करना चाहिए।यदि पहले से अभ्यास करती आ रही है,तो हल्का सा ही अभ्यास करें।
कैसे करें पवनमुक्तासन ओर उसके क्रमबन्ध चरण:-
पहले चरण में पीठ के बल शवासन की मुद्रा में सीधे लेट जाएं।
दूसरे चरण में धीरे धीरे अपने दोनों घुटने को मोड़कर तलवे को ज़मीन पर टिकाएं।
तीसरे चरण में दोनों पैरों को घुटने सहित अपने पेट के ऊपर लाते हुए अपना सिर को भी साथ मे ऊपर को उठाते हुए,अपने दोनों हाथों से दोनों घुटनों को बाहरी पिंडली की साइड से लाते हुए ऊपर से पकड़ें और मूलबंध लगाकर गहरा सांस लेते हुए पैर के घुटनों को सीने से लगाएं और 10-20 सेकेंड तक सांस रोक कर रखें.
चौथे चरण में अपने दोनों घुटने को दोनों हाथों से मुक्त करें फिर मूलबंध हटाते हुए साथ ही सांस छोड़ते हुए पैरों को सीधा करके सामान्य स्थिति में लौट आएं।इस क्रिया को 2 बार दुहराएं तथा एक एक कर के दोनो पैरो से करे।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
महायोगी स्वामी सत्येंद्र सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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