गुरु ही माता पिता परम
गुरु ही जग सुख बंधु।
गुरु ही भूत भविष्य नित
गुरु ही मोक्षीय भवसिंघु।।
गुरु त्रिकाल ध्यान भेद
गुरु शिष्य मध्य रेहि योग।
गुरु ध्या पाए स्वयं को
गुरु जीवंत मंत्रमयी भोग।।
यो गुरु दर्शन जब भी मिले
तब धन्य धन्य तुमरा भाग।
धन्य तुम्हारे कर्म फल
धन्य जान स्वयं ज्ञान जाग।।
हे-शिष्य,,,गुरु ही आदि माता और पिता है ओर गुरु इस उस जगत में सुख देने वाला बंधु है,गुरु ही भूतकाल ओर भविष्यकाल है,इस नित्य काल मे रहते हुए,गुरु ही मोक्ष को देने वाला भवसागर है।
गुरु ही तीनों काल में किया जाने वाला ध्यान का ज्ञान है और गुरु ही शिष्य के बीच के सम्बन्ध को रेहि क्रियायोग करने से बंधन मुक्त करके स्वयं क्या हो और क्यो इस जगत में आये और कैसे कर्ता ओर भर्ता हो,ये मोक्ष को देने वाला है,तथा गुरु ही साकार रूप में शब्द मंत्र बनकर सभी भोग ऐश्वर्यों को देने वाला है,यो उसके किसी भी प्रकार से दर्शन पाना अपने अंदर के ज्ञान को पाकर धन्य होना है।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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