सब कुत्ते जीव सोच रहे ये
की,केसी ये खामोशी।
आदम जात आवाज बन्द है
क्यों दिख नहीं रही गर्मजोशी।।
गधों घोड़े मस्त पड़े चर
बिन करें कोई काम।
आदम दे रहा उन्हें खाने को
बिन कराये रात दिन काम।।
शोर बंद,प्रदूषण नहीं है
शुद्ध हवा मिल रही खाने को।
नींद भरपुर आ रही बिन बाँधा के
डर बोझ नहीं ढ़ोने को।।
पेडों की भी थकन मिट गयी
खा खा कर प्रदूषण।
गहरी साँस ले छोड रहे हैं
फूल बिन डाली टूटे ले पोषण ।।

पक्षी उडते फिरें गगन में
बिन वायुयान मिले बाँधा के।
केसी अद्धभुत शान्ति है नभ में
बादल दमके बिन प्रदूषण गाधा के।।
ध्यानियों का ध्यान लग गया
शांती मन मस्तक मेँ छायी।
गंगा मेँ जल शुद्ध हो रहा
मछली तरे बिन कचर उलझे काई ।।
बढ रही उर्जा आकर्षण शक्ति
बढ़ रहा पृथ्वी का ओरामंडल।
प्रदूषण संग कीटाणु मर रहे
सध रहा संतुलन भूमंडल ।।
ये केसा चमत्कार है प्रभू
क्या हमारे बदल गये है दिन।
या मानुष युग खत्म हो गया
कबकी की गयी प्रार्थनाअब ली सुन।।
आंखे थक गयी रोते दुखडा
कुछ भेजा सुन हम रोना।
क्या कहा प्रभू,क्या नाम लिया तुम
कि,
भेजा तुमने हल करने निज सेवक एक कोरोना।।
यो,भय बिन प्रीत भजन नहीं
बिन भूख न भोजन खान।
भय कोहम रोष कोरोना हूँ
भय भंजन को भगवान।।
मेरे भय से मन्दिर चर्च है
मेरे भय से पूजापाठ।
मेरी अवज्ञा जग को रोना है
मुझसे प्रेम ही सहज जीवन ठाठ।।
जय सत्य ऊं सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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