कंगला क्या जाने दान महिमा
दुखी लगे क्या सुख आशीष।
रोगी क्या दे निरोगी का वर
कपटी फले क्या सद्बुद्धि शीश।।
यो सुखी दिया ही दान है फलता
सदवृति फले सदा आशीष।
सुखी कहें सहज,प्रेमिक,रसिक
उसी ह्रदय बस दे वर ईश।।
ज्यों बदली प्रकृति सत्यवती की
महर्षि पराशर पुरुष।
परिणाम वेदव्यास जन्म
ओर संग जन्मा अहंकारी रुष।।
चित्र विचित्रवीर्य जन्में
अल्प संतति सुख रही।
अंधा पीलिया जन्म संतति
जन्मी नीति दबी हुई।।
सत्यवती नारी शासन में
महाभारत नीव धरी गयी।
अंबा जन्मी बदले कारण
शिखंडी बन भीष्म वध कर गयी।।
ज्यों धृष्टराष्ट न फली कोई इच्छा
न शकुनि फला कपट।
न गांधारी फला तप भीषण
दुर्योधन मरा भीष्म द्रोण संग पट।।
द्रोपती मरे पांच पुत्र
उसका अहं नहीं था शुद्ध।
कृष्ण बहिन सुभद्रा नींद
के कारण अभिमन्यु मरा बीच युद्ध।।
चंचल माद्री नियत मरे
पांडु काम वशीभूत।
कुंती वृति सदबुद्धि सदा
उस वर विजयी हुए पांडव पूत।।
यो सदा वरदान उसीका फलता
जिसमें भक्ति का होता बल।
जो खुद आश्रित गुरु चरणों मे
वो निर्बल क्या फले आशीष सबल।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
Www.satyasmeemission.org