आखिर वो रहस्यमयी शीघ्र कुंडलिनी जागरण करने की चार प्राणायाम विधियों में से,एक प्राणायाम विधि जिस में श्वास लेने ओर रोकने व छोड़ने का सही अनुपात समय अवधि क्या है,जिससे हम त्रिगुणों की शक्तियों पर सही से अधिकार करके प्राणवेत्ता बन सके ओर योग समाधि की प्राप्ति कर सके,साथ ही वैज्ञानिक रूप से ब्रह्मचर्य कैसे सिद्ध हो?,,
बता रहे है,स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी,,
प्राणायाम की चार विधियों का एक क्रम है-
1-समसूत्र प्राणायाम यानी अनुलोम विलोम प्राणायाम विधि।
2-रेचक कुम्भक पूरक प्राणायाम विधि।
3-भस्त्रिका प्राणायाम विधि।
4-अन्तः ओर बहिर कुंभक प्राणायाम विधि।
जिसमें सबसे उत्तम है दूसरे नम्बर की पूरक कुम्भक रेचक प्राणायाम विधि,,
तो जाने सच्ची प्राणायाम विधि ओर उसका रहस्यमयी 369 अंक रहस्य सूत्र:-
पहले ये 369 अंक संख्या की महामहत्त्व क्या है-
3 अंक:-तीन अंक त्रिगुण-ब्रह्मा-विष्णु-शिव व सरस्वती-लक्ष्मी-काली व तम-रज-सत गुण आदि से सूर्य शक्ति-चन्द्र शक्ति-सुषम्ना व इंगला-पिंगला-सुषम्ना या गायत्री-सावित्री-सविता या-इलेक्ट्रॉन-न्यूट्रॉन-प्रोटॉन या भुर्व-भुवः-स्वः या ऐं-ह्रीं-क्लीं आदि महागुणों के एक सूत्र ब्रहस्पति देव यानी ज्ञान के महादेव गुरुदेव का परम अंक स्वरूप है।
6 अंक:-ऐसे ही तीन का दोगुना अंक 6,3+3=6 यानी तीन+तीन=छः या जो तीन अंक त्रिकोण शक्ति से ऊर्ध्व 🔺 पुरुष लिंग व निम्न🔻 त्रिकोण स्त्री लिंग का मिश्रण षट्कोण✡️ की महाशक्ति ही शुक्रदेव है।
ओर 3-6 की संयुक्ति या अगली कड़ी ही 9 अंक है। ये समस्त त्रिगुणों की अनन्त गुणा शक्तियों का परिणाम रूपी अंक अंत है,यानी जो सभी अंकों का शुभ फल है,वो यानी समस्त मंगलकर्ता अंक ही 9 अंक है।इस 9 अंक के बाद तो फिर से शून्य है ओर पुनः नवीन अंक की 1 से सृष्टि है।
यो संछिप्त में 369 की महाशक्तियों के अंक सूत्र को समझा दिया है,इसी का प्राणायाम में एक क्रम से उपयोग करके त्रिगुणों की महाशक्तियों की प्राप्ति ओर अधिकार प्राप्त किया जाता है,जो आगे बता रहा हूँ,,
सबसे पहले प्राणायाम का अभ्यास करते में हमें,प्राणायाम करते में हमें,3 सेकेंड में सांस लेना और 6 सेकेंड तक रोकना ओर 9 सेकेंड में उसे निकलने का क्रम रखना चाहिए।
-फिर,3 सेकेंड के सांस अंदर लेते में ली गयी प्राणवायु को अपने सिर से लेकर फेफड़े व पेट फिर मूलाधार चक्र व पैरों के अंत तलवे तक भरते हुए अनुभव करना है।
-अब 6 सेकेंड के सांस रोकने में त्रिबन्ध लगाते हुए हमें अपने मूलाधार चक्र पर एक ज्योतिर्मयी बिंदु है,उसका ध्यान करना है।
यहां एक रहस्य ये है कि,पहली ऊर्जा शक्ति है-काम ऊर्जा शक्ति और जैसे कि इलेक्ट्रॉन-प्रोटॉन-न्यूट्रॉन में इलेक्ट्रॉन पर इन दोनों की शक्ति की बमबारी की जाती है,ठीक ऐसे ही हमें अपनी प्राण शक्ति के दो पॉइंट-नेगेटिव व पोजेटिव शक्ति की समल्लित शक्ति की इसी “बीज” पर मन्त्र सहित बमबारी की जाती है।तभी ये बीज में विस्फोट होकर मूलाधार चक्र जाग्रत होता है और हमारे यानी मनुष्य के बीज में जो त्रिगुण है,वे विस्फोटित होकर गुणा से गुणा बन बढ़ती महाशक्ति बनती जाती है और यही बीज की गुणा से गुणा की महाशक्ति ही कुंडलिनी शक्ति होती है।
यो मूलाधार चक्र ही सबसे पहला शक्ति जाग्रत का शक्ति चक्र है।तो पूर्ण कुम्भक लगाकर यहीं ऋण, धन शक्ति का निरंतर अटैक, आघात किया जाता है।कुम्भक से प्राण ओर अपान वायु गर्म हो कर एक्साइटिड हो उठती ओर ऊर्जात्मक बनती है और यही ऊर्जा तो हमें इस चक्र को जाग्रत को चाहिए।यही कुम्भक का काम है।
अब 9 सेकंड के समयांतराल लगाते हुए हमें अपनी जो ऊर्जा मूलाधार में एकत्र व उठायी है,वो सुषम्ना नाड़ी का ध्यान करते हुए अपनी नाक तक व वहां स्थित कपाल में पीयूष ग्रन्थि व ओर भी मष्तिष्क के सभी 84 लाख न्यूरॉनसों,,,जो कि 84 लाख योनियां भी है,, को जाग्रति को देते हुए अनुभव करनी चाहिए,अब यहां जो व्यर्थ की केवल कार्बनडाइऑक्साइड है,वो बाहर निकल जाती है,आपकी अंदर उत्पन्न ऊर्जा और कमाई ऊर्जा का इस 9 सेकेंड में पूरा उपयोग हो जाता है।
9 सेकेंड का ही क्यों उपयोग है रेचन क्रिया में:-
तो भक्तो,गणितीय थ्योरी में,क्योकि किसी भी अंक का अंतिम अंक 9 ही है।यो ही प्राणायाम में 9 अंक यानी 9 सेकेंड का रेचन में उपयोग है।
ओर पूरक में 3 सेकेंड का उपयोग क्यों है:-
तो भक्तों,3 अंक सम्पूर्ण विश्व भर में फैली त्रिगुण शक्ति-तम-रज-सत यानी ऋण-धन-बीज या इलेक्ट्रान-प्रोटॉन-न्यूट्रॉन शक्ति का प्रतीक है।
यही योग में इंगला-पिंगला-सुषम्ना शक्ति नाड़ियां है,जिन्हें सूर्य शक्ति-चंद्र शक्ति-ओर दोनों की समल्लित शक्ति आदि शक्ति कहते है।
यो जब पूरक किया जाता है,तो इन्ही शक्तियों को ब्रह्मांड से अपने मे आकर्षित करते हुए अपने अंदर उतारा जाता है और इन्ही दोनों को एकीकरण करते हुए,हमारे मूलाधार चक्र में स्थित हमारे “बीज” पर निरंतर प्रवाहित करते हुए विस्फोट किया जाता है,जिसकी ओर भी उच्चतर मात्रा को कुम्भक करते हुए बढ़ाकर के फिर से उसी बीज पर डालते हुए,उसे फोड़ा जाता यानी जाग्रत किया जाता है।यो 3 सेकेंड का रेचक सिद्धांत है।
अब हमारे “बीज” का दो तरहां से उपयोग है-
1-स्त्री शक्ति और पुरुष शक्ति के परस्पर शक्तिपात रूपी सम्भोग क्रियायोग से अपने अपने अंदर के आधे आधे बीजों-वीर्य ओर रज को एक करके,उससे नवीन सन्तान की सृष्टि करनी।
2-केवल अपने ही अंदर के बीज को प्रकृति रूप से जो ब्रह्मांड में स्त्री ओर पुरुष शक्ति है,उसका आकर्षण करते हुए अपने ही मूलाधार चक्र में तड़ित करके शक्तिपात से जाग्रति करना।
अब प्रश्न उठता है कि-चलो स्त्री और पुरुष के सम्भोग से तो स्त्री के ही शरीर मे उस मिश्रित बीज को जाग्रति देकर,उसके गर्भ में स्थापित कर,बढ़ने से जन्म लेने तक कि प्रक्रिया को छोड़ दिया जाता है,
पर,
इस प्राणायाम क्रिया के बाद जाग्रत बीज को,अपने ही शरीर मे स्थित, किसी गर्भ में ले जाकर आध्यात्मिक शरीर का निर्माण को छोड़ या स्थपित किया जाता है?
तो भक्तो,वो गर्भ मनुष्य साधक का पहला गर्भ मूलाधार चक्र ही होता है,आगे यहां से उठती गुणा से गुणा होती ऊर्जा के प्रवाह से अगेले सभी चक्र बनते जाते है।वो भी इसी उठती ऊर्जा के भिन्न भिन्न स्तर पर गर्भगृह ही कहलाते है।वहां उस ऊर्जा का पालन लालन व विस्तार होता है।हर चक्र के बीच मे एक शून्य होता है,वही शून्य कुम्भक कहलाता है।
अब आता है,ब्रह्मचर्य ओर उस की सच्ची रक्षा व उपाय का वैज्ञानिक सिद्धांत जाने:-
ब्रह्म का आचरण ब्रह्मचर्य है,हमारे शरीर मे जो शरीर निर्माण का मूल बीच है,उसका निर्माण व उसका सही से उपयोग व उसकी पुनः उत्पत्ति रक्षा करने का ज्ञान प्राप्ति करना व उसकी साधना ही ब्रह्मचर्य विज्ञान साधना है।
अब इस ब्रह्मचर्य के अज्ञान से होने वाले दोषों ओर उनकी रक्षा क्या है,वह बताता हूँ,,
वीर्यपात या स्वप्नदोष होना:-
अब ठीक जब प्राणायाम की गति बढ़ती है,तब ये मुलाधचक्र में जो ऊर्जाओं का विस्फोट बढ़ता जाता है,तब हमारे इस प्रकार्तिक ऋण ओर धन की शक्तियों का निरंतर शक्तिपात से हमारे अण्डकोषों में भी शक्ति का प्रवाह होता व बढ़ता है,इसका परिणाम होता है,ओर गति से वीर्य या रज का निर्माण होना,अब जब प्राणायाम की गति बढ़ी नहीं तो,इस स्थिरता के चलते,उधर हमारा वीर्य ओर रज अधिक बन रहा है,तो उसका जोर बढ़ता है,ओर वो स्वप्न में इन्ही ब्रह्मांडीय आकर्षित ऋण व धन यानी स्त्री और पुरुष शक्ति के परस्पर मिलन के दृश्य से उत्पन्न सम्भोग चित्रण से स्खलित होना प्रारम्भ हो जाता है,यही है,स्वप्नदोष का योग रहस्य।
या ये स्वयं भी मूलाधार चक्र में बनी रहने वाली ऊर्जा की तप्तता यानी गर्मी से खुद ही हमारी जनेन्द्रिय से निकलने लगता है,जिसे धातु का जाना या रिसना कहते है।ये योगिक ओर प्रकार्तिक प्रक्रिया है,जो बस सही से प्राणायाम के करते रहने से स्वयं ही ठीक हो जाती है,कुछ ओषधियों के सही सन्तुलित खाने से इसमे स्तम्भन आ जाता यानी ठीक हो जाता है।पर उन ओषधियों का उपयोग अधिक नही करना चाहिए,नही तो यही प्रक्रिया फिर शुरू हो जाती है।यो संतुलन ही खुद दवाई का योग मार्ग है।
ओर शेष प्राणायाम के ज्ञान विज्ञान को आगामी सत्संग में बताता हूं,,
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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