अन्तर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस अथवा अन्तर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस
अंतर्राष्टीय दिव्यांग दिवस यानी विश्व विकलांग दिवस प्रतिवर्ष 3 दिसंबर को मनाया जाता है। वर्ष 1976 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा के द्वारा “विकलांगजनों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष” के रूप में वर्ष 1981 को घोषित किया गया था।
विश्व दिव्यांग यानी अपंगता दिवस कविता
इस दिवस पर स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी अपनी ज्ञान कविता के माध्यम से दिव्यांग या अपंगता पाये मनुष्यों के प्रति उपेक्षा या तिरस्कार भाव नहीं रखते हुये केवल उनके कठनाई भरे जीवन की देखते जाने किस बुरे कर्म का फल ये जीवन मिला है,उसे जानकर उनके प्रति सदा जो बने सहायता सेवा का भाव रखो ओर सदा बुरे कर्मो से दूर रहो।यो कर्म ओर फल वादी जनसंदेश देते कह रहे है कि,
कभी न समझो दीन किसी को
न दिखाओ दया हीन है जान।
न समझो ईश्वर द्धारा दंडित
प्रताड़ित न करना झिड़क अज्ञान।।
ये काल चक्र है सदा घुमता
जाने किसका आये वक्त।
उपेक्षा करना बुरा कर्म खुद
अपंगता नाम निकालो न नुक्त।।
जन्मजात दिव्यांग भी मानुष
मिला उन्हें ये कर्म का फल।
भोग रहे कठनाई जीवन
यही प्रयाप्त उन्हें करता विकल।।
हमें हक नही कहना कुछ उनको
यही किया तभी मिला ये फल।
हम भी दोहराएं यही कर्म कर
उन्हें देख सीखों दुख हल।।
बुरा कहो तो मुंह विकृत हो
ठोकर मारो हो पैर खराब।
ली रिश्वत तो हाथ है गलते
दुष्ट नियत मिले फल रोग शराब।।
अपना कर्ज मिटा दूजे धन
उसे तड़फाये लगवा चक्कर।
इस शाप बने सदा निर्धनता
ओर संग में मिले तन मन चक्कर।।
बुरी नियत रख दृष्टि डाली
इस कर्म पाए नेत्र के रोग।
कपट किया दूजे रहस्य जान कर
इस कर्म मिले जीवन सुख वियोग।।
प्रेम किया और धोखा देते
ओर निकाले दूजे प्यार में खोट।
छिपे सम्बन्ध बनाये मौज को
इस कर्म मिले जीवन हर चोट।।
ईश्वर साक्षी वचन भरे जो
ओर बोले कपट रख वाणी।
उसे अपंगता मिलती अविद्या
पढ़े खूब नहीं मिले फूटी काणी।।
दिव्यांग का जीवन यही सिखाता
की जाने किस जन्म मिलेगा दंड।
यो न करो उपेक्षा अपंग मनुष्य की
देख बुरे कर्म बचो इस दंड प्रचंड।।
यो मैं हूँ या फिर तुम हो कोई
या हो योगी भोगी।
सबके कर्म का फल है निश्चित
उन्हीं कर्मफल मिले सुखदुख रोगी निरोगी।।
यो सेवा करो जप तप कर जीवन
जितना हो करो शुभ कर्म दान।
दिव्यांग कहो या अपंगता जीवन
मुक्ति मिले इन संग हम हो कल्याण।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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