अक्षय तृतीया का अर्थ व महत्त्व क्या है,व सभी मंगल कार्य क्यो किये जाते है,आज के दिवस पर,,जाने,,बता रहे है,स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी,,

अक्षय तृतीया को-महर्षि परशुराम जयंती ओर महायोगी मत्स्येंद्रनाथ यानी मछेन्द्रनाथ जयंती भी है,,

अक्षय का अर्थ है,की,जिसका कभी क्षय नहीं हो,सदा शाश्वत बना रहे,यानी कभी भी किसी चीज़ का अभाव नहीं होता, उसके भंडार सदा ही भरे रहते हैं। चूंकि इस व्रत का फल कभी कम न होने वाला, न घटने वाला, कभी नष्ट न होने वाला होता है इसलिये इसे अक्षय कहा जाता है।
ओर इसी कारण स्वर्ण यानी सोने की धातु को भी अक्षय कहा गया है,की ये कभी समाप्त नही होती है,इसकी आभा सदा प्रकाशित बनी रही है,यो इस दिन स्वर्ण से बनी किसी भी वस्तु की खरीद ओर उसका दान भी बड़ा अक्षय फल देने वाला होता है।

अक्षय तृतीया दिवस का नामकरण कैसे पड़ा:-

इस सम्बंध में अनेक मान्यताएं है,जिनमे ये मान्यताएं प्रमुख है,,

1;जैन धर्म के प्रवर्तक संस्थापक भगवान ऋषभदेव ने इसी दिन व तिथि को अपना 1 वर्ष की तपस्या का व्रत पूर्ण किया,तब उन्होंने गन्ने का रस पिया था,गन्ने के रस को इक्षुरस कहते है यो,इस दिवस का नाम अक्षय पड़ा।यो इस दिवस पर जैन धर्म मे गन्ने के रस का भगवान ऋषभदेव को भोग लगाना ओर जनसाधारण भक्तो में बांटने का बड़ा धार्मिक महत्त्व है।
2-भविष्य पुराण के अनुसार इस अक्षय तृतीया की तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है। 3-सतयुग युग का प्रारम्भ भी इस तिथि को हुआ था।
4-भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था।
5-इसी दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं।
6-वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।
7-इस दिवस पर ही भगवान विष्णु के अवतार नर व नारायण के अवतरित होने की मान्यता भी इसी दिन से जुड़ी है।
8-इस दिवस पर ये भी मान्यता है कि त्रेता युग का आरंभ इसी तिथि से हुआ था।
9-इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था।
10-और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था।
11-वैसे इसी तिथि को ब्रह्मा जी पुत्र अक्षय कुमार का जन्म होने से ही इस दिन का नाम अक्षय तृतीया पड़ा है।
12-गंगा को धरती पर लाने को भगीरथ की तपस्या:-
पुराण मानते हैं कि गंगा को धरती पर लाने के लिए भगीरथ ने जो तपस्या शुरू की थी और गंगा ने स्वर्ग से धरती के लिए जो यात्रा शुरू की, वो तिथि अक्षय तृतीया ही थी।यो तभी से गंगा जी मे अक्षय रोग निवारक शक्ति के साथ अविरल बहने और सदा कल्याणकारी निष्फल रहने वाली दैविक नदी बनी है।
13-इसी दिवस को महर्षि परशुराम जी का जन्म हुआ था,यो इस दिवस को महर्षि परशुराम जयंती के नाम से मनाया जाता है।
14-महाभारत की रचना
महाभारत की रचना शुरू होने की तिथि भी अक्षय तृतीया मानी गई है। वेद व्यास ने इसी दिन से महाभारत महापुराण की रचना शुरू की थी। उनके कहने पर भगवान गणेश ने इसे लिखना शुरू किया था। वेद व्यास बोलते गए और गणपति ने उसे लिखा।

15-इसी अक्षय तृतीया को युधिष्ठिर द्धारा भगवान सूर्य नारायण की उपासना करने पर,उनको अक्षय पात्र मिलना, जिसमें कभी भोजन समाप्त नहीं होता है।
16-भोजन की देवी मां अन्नपूर्णा का जन्म भी इसी अक्षय तृतीया तिथि को माना जाता है।
17-कृष्ण और सुदामा का मिलन
भागवत में भगवान कृष्ण और सुदामा की मित्रता की कहानी है। सांदीपनि आश्रम से अलग होने के बाद कृष्ण द्वारिका में बस गए, सुदामा पोरबंदर में अपने घर आ गए। जब गरीबी से परेशान सुदामा पत्नी के कहने पर कृष्ण से मिलने पहुंचे, वो तिथि थी अक्षय तृतीया।यो ये अक्षय मित्रता दिवस के रूप में प्राचीन काल से माना जाता है।
18-द्रोपदी का चीरहरण के विषय मे भी कुछ लोककथाएं प्रचलित हैं कि जब महाभारत में द्रोपदी का चीरहरण हुआ था तो भगवान कृष्ण ने उन्हें वो वस्त्र प्रदान किया था जो कभी खत्म ना हो। इस कारण दुःशासन थक गया लेकिन द्रोपदी का वस्त्र समाप्त नहीं हुआ।वो भी अक्षय तृतीया का ही दिवस था।
19-इस दिन भगवान शिव ने पार्वती के दोबारा अनुरोध करने पर उन्हें,कामरूप प्रदेश में,नदी तट पर बैठकर अमरता का ज्ञान दिया,जिसे सुनते सुनते वे सो गई और,उसे वहां नदी में स्थित एक शापित अप्सरा के गर्भ में स्थित शिव जी के अंश ने सुना और वे इस महाज्ञान को पाकर अक्षय ज्ञानी ओर अक्षय जीवन को प्राप्त हो गए,यो इसी बालक का जन्म मछली के गर्भ से होने और शिव जी का अक्षय ज्ञान होने से मत्स्येंद्रनाथ यानी मछेन्द्र नाथ हुआ,यो अक्षय तृतीय को कामरूप यानी कामख्या में महायोगी मत्स्येंद्रनाथ का जन्म दिवस है,चूंकि इनके द्धारा चलाये गए,दो भिन्न सिद्धांत-1-कोल मत ओर -2-हठयोग में से इनके शिष्य गोरखनाथ ने अत्याधिक प्रचलन किया,यो गोरखनाथ की ही जयंती ज्यादा प्रसिद्ध हुई।मत्स्येंद्रनाथ की जयंती विशेष प्रचलित नहीं हुई।यो अक्षय तृतीया को ही महागुरु मत्स्येंद्रनाथ या मछंदरनाथ जयंती भी पड़ती है।
20-इसी अक्षय तृतीया को ही अघोर जयंती भी पड़ती है।क्योंकि इस दिन भगवान शिव ने अघोर मत को अपने प्रथम शिष्य मत्स्येंद्रनाथ को दिया था,,ओर उनसे उनके आगे के 84 सिद्ध भक्तों में दिव्य शक्तिपात दीक्षा के द्धारा दिया था।इस अघोर सिद्धांत के प्रमुख प्रचारक मोतीनाथ हुए जिनके विषय में अभी तक अधिक पता नहीं चल सका है। इसकी तीन शाखाएँ (1) औघर, (2) सरभंगी तथा (3) घुरे नामों से प्रसिद्ध हैं जिनमें से पहली सिद्धांत शाखा औघर यानी अघोर में कल्लूसिंह वा कालूराम हुए जो बाबा किनाराम के गुरु थे।
इनका मूल मंत्र-अखंड ईश्वर है,जो निराकार परम स्वरुप है,यानी अलख निरंजन,,यानी अखंड परमात्मा,,ओर दूसरा है-गुरु का आदेश यानी आदेश गुरु का,,इसके बाद देश काल के अनुसार हुए सिद्धों व साधको के अपने अपने मन्त्र बनते चले गए।
21-बाकी धर्म अवतार व अन्य युग का प्रारम्भ आदि भी इसी दिन होने से समय समय पर उनके अनुयायियों ने अपने अपने सम्प्रदायों में विशेष दिवस के रूप में मनाया है।
22-अक्षय तृतीया तिथि को वसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ का दिन भी है, इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घडे, कुल्हड, सकोरे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है।
23-इस दिन भगवान सत्यनारायण ओर भगवती सत्यई पूर्णिमा की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से पूजा करने का महान लाभ बताया है,ओर खीर का भोग लगाकर,जनसाधरण में बांटना चाहिये।
24-कुल मिलाकर इस दिन आप जिस भी देवी देवता व गुरु या इष्ट को मानते है,उसकी पूजा अर्चना को,प्रातः उठकर गंगा जल मिले जल में स्नान करके स्वच्छता पूर्वक अपने पूजाघर में अखण्ड ज्योत जलाकर,अपने गुरु व इष्ट मन्त्र का अधिक से अधिक जप ध्यान उपासना करके अधिक से अधिक दान करें।
ओर इस दिवस पर अधिक से अधिक रेहीक्रियायोग अवश्य करे,क्योकि इस तिथि को युगों का अवतरण हुआ था और होता है,यो इसी दिन में किये ध्यान से शरीर नामक ब्रह्मांड में जो नो ग्रह है,नो चक्र है,16 कलाएं हैं,उनका सहजता से विकास और शोधन होकर शुभ शक्तियों का लाभ अक्षय बन कर प्राप्त होता है।

25-भारतीय मान्यता के अनुसार इस तिथि को उपवास रखने, गंगा स्नान करके दान करने से अनंत ओर अक्षय फल की प्राप्ति होती है। यानि व्रती को कभी भी किसी चीज़ का अभाव नहीं होता, उसके भंडार सदा ही भरे रहते हैं। चूंकि इस व्रत का फल कभी कम न होने वाला, न घटने वाला, कभी नष्ट न होने वाला होता है इसलिये इसे अक्षय कहा जाता है।

26-इस दिवस पर सभी मांगलिक कार्य,शुभ विवाह,बिन पत्रा देखे सहजता से किये जाते है।

27-इस वर्ष 26 अप्रैल 2020 को अक्षय तृतीया पड़ेगी।

स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
Www.satyasmeemission.org

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