अंतर ओर बहिर शौच अर्थ
इस अंतर बहिर शौच के विषय पर बता रहें है,अपनी क्रमबद्ध सत्संग ज्ञान कविता के माध्यम से स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
आत्मा की इच्छा मन है
ओर मन के है दो भाग।
अंतर नाम सूक्ष्म इच्छा
बहिर नाम है स्थूल राग।।
शौच कहे अनियम को
जिसे कहते आदत बुरी।
असंतुलित जीवन बताये जो
उस जीवन चले शौच नाम छुरी।।
जैसे प्रातः सोता रहे
ओर जागे सारी रात।
खाये भोजन चटपटा
फिर पेट शौच पाये घात।।
पानी पिये बहुत कम
या पिये भोजन बीच।
या डाल गले से पेट में
यही अनियम बने पेट में कीच।।
शौच माने गंदगी
जो मन तन दोनों होय।
जैसा मन वैसा तन बने
वही इन खाये जैसा मन बोय।।
कर्म करे बिन ध्यान करे
करे अच्छे बुरे बिन ज्ञान।
तो कर्म नियंत्रण खो दे
मिले अंतिम फल अज्ञान।।
खूब पढ़े और प्रथम हो
पर प्रयोगिक नहीं हो ज्ञान।
व्यवहार बिन सभी सम्बंध विफल
यही अंतर बहिर शौच में मान।।
शौच शुद्धि सही नियम दें
इस नियम आये सुदृढ़ता।
सुदृढ़ता ही संकल्प बने
सुदृढ संकल्प दें सिद्धि सुगढ़ता।।
मौसम के फल खाएं जरूर
चाहे खट्टे हो या मीठे।
प्राकर्तिक चिकित्सा मन तन यही
पाये शौच शुद्धि नाम फल मीठे।।
मन मे कपट तन पर शुद्धि
या मन साफ पर तन गंदा।
जैसे साधु ओर स्वाधु का भेद
यही अंतर बहिर शौच नाम धंधा।।
जीभ खूब साफ करो
पर बोलो कपटी वाणी।
मित्र बनाओ मन लूट रख
यही शौच नाम फली काणी।।
यो मन को रख्खो साफ नित
ध्यान करो रेहियोग।
जपो गुरु इष्ट मंत्र खूब
ध्यान करे कपट शुद्ध सुयोग।।
तभी सफलता मिले मनचाही
कभी न तन न मन हो दुख।
शौच अंतर बहिर शुद्ध जिस
वही पाये भोग योग सिद्ध सुख।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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