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मेरे जीवन की राजनैतिक यात्रा और योग चिंतक संग संस्मरण

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ये सन् 90 की जब उत्तर प्रदेश में विधायकी के चुनाव से पूर्व की बात है जब हमारे ननसाल साइड सैदपुर के भाई लगने वाले कनाडा निवासी जुगेन्द्र सिरोही ने बी.जे.पी.से अगौता छेत्र से टिकिट प्राप्त किया और उसका भांजा और एक हमारे सदूर के मामा का बेटा मेरे पास आये की तुम्हे हमारे साथ जुगेन्द्र सिंह के टिकिट भरवाने को साथ चलना है मैं साथ गया और उस चुनाव में पिता जी और मामा आदि सबने भाग लिया और बी.जे.पी.के बड़े से बड़े नेता जो तब आज विशिष्ठ पदस्थ और समाप्त भी हो गए सब चुनाव प्रचार में आये उनके साथ मैं और पिता जी व् भाई जुगेन्द्र आदि कुछ लोग ही साथ साथ रहते थे मुख्य बात ये है वो चुनाव अंत में कोर्ट में जाने के बाद किरनपाल सिंह ने कुछ ही बोटों से जीता था तब जिला स्तर के अध्यक्षपद तक सहजता में मुझे मिल रहे थे पर मेरी ये सोच की ये मेरा क्षेत्र तो है नहीं ननसाल क्षेत्र है आदि विचारों ने और प्रारब्ध ने वो दिशा इस पराजय से बदल दी इसी चुनावी यात्रा में मुझे अपने पिता के पूर्व मित्र के रिश्तेदार गांव के कई बार रहे पूर्व प्रधान राजबहादुर चच्चा से परिचय हुआ वे कुर्ता पजामा पहने बीड़ी पीते एक सहज योगी जीवन के साथ गृहस्थ जीवन जीने वाले इंसान थे उन्होंने मुझे अपने योग विषयक खोज की देश भर की यात्रा के विषय और एक योग विद्या के प्राप्त रहस्य को बताया तब के बाद आज वर्तमान में वे जीवित है या नही पता नही पर उनके गांव के कुछ लोग मेरी ख्याति सुन मुझे से जुड़े उन्होंने बताया की वे वृद्ध हो गए और उन्होंने पूर्वत योग विषय अब त्याग दिया है केवल सामान्य जीवन जीते है इसका कारण है की उन्हें जो योगी से क्रिया योग प्राप्त हुआ उसमे उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति की सफलता नही मिली और इस क्रिया योग की प्राप्ति की कथा उन्होंने मुझे सुनाई की अपने पूर्वत घर ग्रहस्थ और राजनेनिक जीवन को त्याग कर उन्होंने पहले विधिवत गायत्री मन्त्र साधना के अनेक बार सवा सवा लाख मंत्र पुनश्चरण किये पर सामान्य स्वप्न मनोदर्शनों को छोड़कर कोई प्रत्यक्ष दर्शन नही हुए तब उन्होंने नाथ पंथ में दीक्षा ली यहाँ भी घोर तपस्या उपरांत कोई लाभ नही हुआ केवल नाथ पन्थ के पहनावे और उनकी पूर्व चमत्कारिक प्रचलित कथाओं के प्रचार से जनसाधारण में योगी की प्रतिष्ठा हुयी पर जो पन्थ में कहा गया गुरु दर्शन साहयता करते है ऐसा कुछ नही हुआ तब कई वर्षो उपरांत देश भ्रमण भी करते अनेक पन्थ,अखाड़े,सिद्ध तीर्थ और उनमे फेले आडम्बरों को अनुभव किया वहाँ केवल उनके गुरु प्रदत्त धर्म ग्रन्थों के दोहे श्लोकों को जनसाधारण को सुनना,गाय सेवा के नाम पर आने वाले चंदे और दान का उपयोग आश्रम वृद्धि हेतु एक व्यवसायी के तरीके से करते रहना मुख्य उद्धेश्य पाया मन खिन्न हुआ तब उन्हें परिक्षतगढ़ के एकांत जंगल में एक तपस्यारत योगी का पता चला उसकी शरण में गए उसने कहा की कैसा योग सीखना चाहता है खाने कमाने के नाम का तो मेरे हरिद्धार के एक प्रसिद्ध शिष्य के पास जा मेरा नाम लेना ये कहने पर गए वहाँ वही आश्रमों का विस्तार हेतु व्यवसायिकीकरण देखा जो पूर्व भी देख चुके थे वहां से लौटे तो उन्हें योगी ने आत्मा और प्रकर्ति आदि के सम्बन्ध में प्रश्न उत्तर करते ज्ञान दिया तब एक योग क्रिया बताई-की अपनी सिद्धासन में बैठकर अपनी नाभि में ध्यान जमाते हुए अपनी अंदर आती बिलकुल सहज श्वास की टक्कर नाभि में देते हुए जब सहज गति से स्वास् छोड़े तो वहाँ से एक मनो ऊर्जा को रीढ़ में उठता अनुभव करते रहे ऐसा खाली पेट भौर और रात्रि में करे और दूध के साथ शरीर की शुष्कता मिटाने के लिए किशमिश का भी थोडा उपयोग करते रहे ठीक ठीक अभ्यास किया तो कुण्डलिनी जाग्रत हो जायेगी बाकि अपने घर ग्रहस्थ के काम करो साधना की तिर्वता के बढ़ते तुम स्वयं ही एकांत की प्राप्त करोगे अनावश्यक एकांत बहुत से कारणों से भयावह सिद्ध होता है यो वे पुनः गांव लौटे और यही किया और उन्होंने विवेकानन्द कृत राजयोग में दी एक संक्षिप्त क्रिया योग जिसे महर्षि पातंजलि ने भी अपने योग ग्रन्थ में क्रिया योग कहकर छिपाया है और विश्व के सभी क्रिया योगों का यही एक समीकरण है की अपना ध्यान नाभि में जमाते हुए मन की साधी शक्ति यानि बिना किसी मंत्र चिंतन के वहाँ एक कल्पित ढाई कुण्डल मारे सोये हुए सर्प के फन पर निरन्तर चोट मरते रहने से एक दिन वो सर्पाकार कुण्डलिनी जाग जायेगी साथ ही सभी ने ये भी निर्देश दिए है की बिन गुरु के नही करना या ज्यादा हठ योग यानि की आज या एक महीने में ही मैं इसे ऐसा कर जाग्रत कर लूँ तब यदि ऊर्जा जगी तो बिना ज्ञान और सद्चरित्र के यो तुम्हसे सम्भलेगी नही और तुम्हारा मन मष्तिष्क विक्षिप्त हो जायेगा जैसा की समाज में सुनते हो की वो हनुमान जी या किसी भी देव देवी या श्मशान में साधना कर रहा था उसे इष्ट के दर्शन हुए और उनकी शक्ति सम्भल नही पाने से पागल हो गया का अर्थ यही है और यही क्रिया योग विधि उन्होंने मुझे बताई तभी का ये मेरा चित्र भी एकांत साधना का है और मुझे भी वो जो उन्होंने किसी को नही बताया वो गुप्त क्रिया योग सिखाया मेने अनेक वर्ष किया पर कुछ विशेष लाभ नही हुआ इसका कारण सभी क्रिया योगों की विधियों के साथ होता है क्योकि इसमें परिश्रम नियम है परन्तु पूर्वजन्मों के पाप कर्म के फलस्वरुप जो मन की विभक्ति है वो कैसे स्वयं के अभ्यास से दूर हो? मन क्यों अपने में डूबना चाहेगा अंतर्मुखी कैसे होकर अंतर्जगत में प्रवेश करेगा यो ही सिद्ध गुरु के निरन्तर शक्तिपात के परिणाम स्वरूप ही वो शीघ्र अंतर्मुखी होकर मन की दो धाराएं एक होकर कुण्डलिनी शक्ति बन मन जगत में प्रवेश करती हुयी आत्मा के जगत में प्रवेश करेंगे जैसे विवेकानन्द घनघोर ब्रह्मचारी,ज्ञानी अद्धभुत मेघशक्ति सम्पन्न और चोबीस घण्टे ध्यानी थे परन्तु फिर भी केवल ध्यानी भर ही रहे जबतक की रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें शक्तिपात नही किया शक्तिपात करते ही वे सविकल्प समाधि में प्रवेश कर गए और पुनः अनंत प्रयत्न करने पर भी निर्विकल्प समाधी में भी प्रवेश नही कर पाये तब फिर घोर शक्तिपात किया तब निर्विकल्प समाधी की प्राप्ति हुयी यही श्यामचरण लाहड़ी को उनके गुरु और इनसे सभी शिष्य और आगे योगानन्द परमहंस और ऐसे ही सभी का आध्यात्मिक जीवन भरा पड़ा है जो स्वयं सिद्ध हुए वे अनगिनत पूर्वजन्मों की घनघोर तपस्या अभ्यास के परिणाम से सिद्ध हुए तो भक्तों विषय ये है की गुरु प्रदत्त गुरु मंत्र का निरन्तर विधिवत जप और गुरु प्रदत्त क्रिया योग विधि का निरन्तर अभ्यास और गुरु के कार्यो को बिना अवज्ञा और संशय किये पालन करने व् सेवा और दान करने से ही आध्यात्मिक जीवन में यथार्थ कुण्डलिनी जागरण होता है अन्यथा केवल स्वप्न में देव दर्शन तो कभी भयावह दर्शनों का संघर्ष ही चलता रहता जिससे कोई विशेष ज्ञान और लाभ नही होता है।मेरे इन लेखों में बहुत से भक्तों को ज्ञान के आलावा यहाँ चमत्कारी कथा नही मिलने से निराशा होगी जो की मेरा विषय नही है यहाँ ज्ञान है चमत्कार स्वयं देखना।
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