तो भक्तो समझ आया होगा की अमावस और पूर्णिमा का व्रत रात्रि को करना चाहिए यो अपनाओ और मनवांछित वरलाभ प्राप्त करो।।
?श्रीमद् देवी पूर्णिमाँ व्रत २०१७?
महावतार पूर्णिमाँ देवी और उनकी बारह महाकला शक्तियों की प्रतिवर्ष की क्रमबद्ध बारह सिद्ध पूर्णिमायें:-
१२-जनवरी(गुरु) पौष पूर्णिमा-की देवी सत्यई और हंसी है।
१०-फरवरी(शुक्र) माघ पूर्णिमा-की देवी तरुणी है।
१२-मार्च(रवि) फाल्गुन पूर्णिमा-की देवी यज्ञई है।
११-अप्रैल(मंगल) चैत्र पूर्णिमा-की देवी अरुणी व् देवी एकली है।और प्रेम पूर्णिमाँ है।
१०-मई (बुध)वैशाख पूर्णिमा-की देवी उरूवा है।
०९-जून (शुक्र) ज्येष्ठ पूर्णिमा-मनीषा है।
०९-जुलाई (रवि) आषाढ़ पूर्णिमा-की देवी सिद्धा व
देवी नवेषी है।
०७-अगस्त (सोम) श्रावण पूर्णिमा-की देवी इतिमा है।
०६-सितम्बर (बुध) भाद्रपद पूर्णिमा-की देवी दानेशी है।
०५-अक्टूबर (गुरु) अश्विन पूर्णिमा-देवी धरणी व देवी मद्यई है।
०४-नवम्बर(शनि)कार्तिक पूर्णिमा-की देवी आज्ञेयी है।
०३-दिसम्बर (रवि) मार्गशीर्ष पूर्णिमा-की देवी यशेषी है।।
-इस प्रकार से इन बारह पूर्णिमाओं के व्रत के समय महावतार सत्यई पूर्णिमाँ की सौलह कलाओं का इस क्रमविधि से ध्यान करते हुए सिद्धासिद्ध महामंत्र “सत्य ॐ सिद्धायै नमः ईं फट् स्वाहा” का जप सामान्य अथवा गुरु दीक्षा विधि से करने से उन्हीं गुणों व छमताओं का सम्पूर्ण विकास और सिद्धि मनुष्य को प्राप्त होकर कल्याण होता है।
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