काशी नागरीप्रचारिणी सभा का जन्मोउत्सव दिवस की सत्यास्मि मिशन की शुभकामनायें

भारतीय आर्य हिंदी की महान संस्कर्ति की संरक्षक “नागरी प्रचारणी सभा” की स्थापना १६ जुलाई, १८९३ ई. को श्यामसुंदर दास जी द्वारा हुई थी। यह वह समय था जब अँगरेजी, उर्दू और फारसी का बोलबाला था तथा हिंदी का प्रयोग करनेवाले बड़ी हेय दृष्टि से देखे जाते थे। नागरीप्रचारिणी सभा की स्थापना क्वीन्स कालेज, वाराणसी के नवीं कक्षा के तीन छात्रों – बाबू श्यामसुंदर दास, पं॰ रामनारायण मिश्र और शिवकुमार सिंह ने कालेज के छात्रावास के बरामदे में बैठकर की थी। बाद में १६ जुलाई १८९३ को इसकी स्थापना की तिथि इन्हीं महानुभावों ने निर्धारित की और आधुनिक हिंदी के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र के फुफेरे भाई बाबू राधाकृष्ण दास इसके पहले अध्यक्ष हुए। काशी के सप्तसागर मुहल्ले के घुड़साल में इसकी बैठक होती थीं। बाद में इस संस्था का स्वतंत्र भवन बना। पहले ही साल जो लोग इसके सदस्य बने उनमें महामहोपाध्याय पं॰ सुधाकर द्विवेदी, इब्राहिम जार्ज ग्रियर्सन, अंबिकादत्त व्यास, चौधरी प्रेमघन जैसे भारत ख्याति के विद्वान् थे।
राजभाषा और राजलिपि:-
सभा की स्थापना के समय तक उत्तर प्रदेश के न्यायालयों में अंग्रेजी और उर्दू ही विहित थी। सभा के प्रयत्न से, जिसमें स्व. महामना पं॰ मदनमोहन मालवीय का विशेष योग रहा, सन् १९०० से उत्तर प्रदेश (तत्कालीन संयुक्त प्रदेश) में नागरी के प्रयोग की आज्ञा हुई और सरकारी कर्मचारियों के लिए हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं का जानना अनिवार्य कर दिया गया।
आर्यभाषा पुस्तकालय:-
सभा का यह पुस्तकालय देश में हिंदी का सबसे बड़ा पुस्तकालय है। स्व. ठा. गदाधरसिंह ने अपना पुस्तकालय सभा को प्रदान किया और उसी से इसकी स्थापना सभा में सन् १८९६ ई. में हुई। विशेषतः १९वीं शताब्दी के अंतिम तथा २०वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षो में हिंदी के जो महत्वपूर्ण ग्रंथ और पत्रपत्रिकाएँ छपी थीं उनके संग्रह में यह पुस्तकालय बेजोड़ है। इस समय तक लगभग १५,००० हस्तलिखित ग्रंथ भी इसके संग्रह में हो गए हैं।
प्रकाशन:-सभा के उल्लेखनीय प्रकाशनों में हिंदी शब्दसागर, हिंदी व्याकरण, वैज्ञानिक शब्दावली, सूर, तुलसी, कबीर, जायसी, भिखारीदास, पद्माकर, जसवंसिंह, मतिराम आदि मुख्य मुख्य कवियों की ग्रंथावलियाँ, कचहरी-हिंदी-कोश, द्विवेदी अभिनंदनग्रंथ, संपूर्णानंद अभिनंदनग्रंथ, हिंदी साहित्य का इतिहास और हिंदी विश्वकोश आदि ग्रंथ मुख्य हैं।
अखिल भारतीय हिंदी साहित्य संमेलन का संगठन और सर्वप्रथम उसका आयोजन भी सभा ने ही किया था। इसी प्रकार, संप्रति हिंदू विश्वविद्यालय में स्थित भारत कला भवन नामक अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त पुरातत्व और चित्रसंग्रह का एक युग तो संरक्षण, पोषण और संवर्धन यह सभा ही करती रही और वर्तमान में भी कर रही है। इसकी उपलब्धियों को सत्यास्मि मिशन की कवित्त्व में शुभकामनाएं है की:-
16 जुलाई अट्ठारह सो तिरानवें
हुआ हिन्दीत्त्व सुप्रभात।
नागरी प्रचारणी सभा गठित
हुयी हिंदी प्रचारित सभा संज्ञात।।
प.रामनारायण मिश्र और
बाबू श्यामसुन्दर दास।
शिव कुमार सिंह संगत गठन
बैठक क्वीन्स कालेज छात्रावास।।
इस सभा प्रथम अध्यक्ष हुए
बाबू राधाकृष्ण दास।
काशी सप्त मुहल्ले घुड़साल में
बैठक होती हिंदी प्रचार प्रयास।।
प.मदन मालवीय प्रयास से
हिंदी लेखन सरकारी अध्यादेश।
अनिवार्य हुआ सर्वत्र हिंदी प्रयोग
हिंदी पुस्तकालय बने भारत देश।।
अनगिनत ग्रन्थ हिंदी छपे
हुए हस्तलिखित संग्रह हिंदी ग्रन्थ।
नागरी प्रचारणी पत्रिका छपी
पुरुष्कृत हुए लेखक हिंदी पंथ।।
अखिल भारतीय हिंदी साहित्य
हुआ संगठित और सम्मेलन।
भारत कला भवन पुरातत्व बना
हिंदी युग चित्र संग्रह अलबेलन।।
प्राचीन से नवीन लेखन तक
हिन्दी उत्थान प्रचार उद्धेश्य।
जानो अपनी राष्ट भाषा हिंदी
शुभ जन्मदिन नागरी प्रचारणी सुभेष।।

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