21 जून योग दिवस सप्ताह पर सत्यास्मि पूर्णिमा योग पूर्णिमाँ ध्यान योग विधि


छोड़ अपेक्षा छोड़ उपेक्षा
तब होता विषय शून्य है ध्यान।
ये मंत्र शब्द से परे कठिन है
पर सभी दुख का है समाधान।।
ये ज्ञान मार्ग है अनासक्ति अराग है
उदासीन पथ है योग।
सभी क्रिया का त्याग यहाँ है
और मनन मात्र यहाँ अयोग।।
ना साँस प्रश्वास ध्यान यहाँ करना
द्रष्टा बन जग रहना।
बहिर बोलना त्याग यहाँ है
केवल अंतर मौन है रहना।।
मन को हटाते रहना है बस
जहाँ जहाँ वो जाये।
सत्य नही जो दिख रहा है
यही करता ध्यान है जाये।।
तब घटते घटते एक दिन आये
मन स्थिर हो और शून्य।
स्थिर होते प्राण ठहर कर
मिले सत्य प्राणायाम इस पूण्य।।
तीर्व ज्योति तब प्रकट होती
घटित होती ध्वनि अनेक।
अनहद नांद यहीं हैं बाजता
और मन संकल्पित बनता नेक।।
जो आता ध्यान ज्ञान में
वही सत्य है बन जाता।
यदि कह उठता कुछ भी साधक
वही सत्य है घट जाता।।
चित्त वृति भी ठहर ही जाती
और दिखे घनघोर प्रकाश।
श्वेत से पीत और नील बन
उसके मध्य होता अवकाश।।
इसी शून्य में त्रिकाल है दिखें
और उसमें संकल्पित दर्शय।
तीनों काल एक बन जाते
स्वयं स्वरूप सर्वत्र हो दर्शय।।
बिन झपके द्रष्टि हो स्थिर
शाम्भवी मुद्रा होती सिद्ध।
तब योगी हो सभी योग में
और ऋद्धि सिद्धि हो सब सिद्ध।।
शाश्वत ज्ञान प्रकट हो जाता
की मैं हूँ अनादि सत्य सनातन।
सदा अमर हूँ और नही कोई
एक मैं ही तत्व ब्रह्म कन जन।।
निर्विकल्पता आत्म स्वरूप को पाता
जाने सदा था प्राप्य सभी शोध।
भ्रम सभी ब्रह्म बन जाने
यही मैं अक्षय मोक्ष पूर्णिमाँ बोध।।
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