शुभ सत्यास्मि ज्ञान प्रातः


आँख बंद कर ध्यान करो
तब दिखे घोर अंधकार।
तम गुण व्रति शेष बहुत
यो महनत अभी उजियार।।
जो देखे मिश्रित रंग
रंग आते जाते अनेक।
अभी तम रज का मिश्रण योग
मन अशुद्ध अभी नही है नेक।।
जो देखे श्वेत प्रकाश चमक
और चकाचोंधती ज्योत।
शुद्धि मन उसकी बढ़ी
रहे आती जाती ज्योत।।
इस साधक को नियम बहुत
नित इष्ट बढ़ाये सेवा।
शुद्धि पर दे ध्यान विशेष
नही तो खोये हाथ की मेवा।।
ध्यान में देखे गुरु इष्ट
और देखे अपने आप।
बढ़ रहे नित पूण्य बल
और कटे शीघ्र ही पाप।।
देखे केवल दुष्ट लोग
और देखे काले सांप।
अभी शेष है शाप बहुत
इन्हें नित काट ध्यान कर जाप।।
भावार्थ:-हे शिष्य यदि तुझे ध्यान करते में केवल अंधकार ही दिखाई देता है तो जानो की अभी तुममें तमोगुण की अधिकता है तमोगुण का गुण ही अंधकार है तब तुममें आलस्य की व्रद्धि बनी रहेगी और जप तप या अन्य शुभ कामों के प्रति मन नही करेगा केवल खाने पीने नए वस्त्र खरीदने आदि संसारी वस्तुओं मे मन रमेगा यो अपने जप तप को बढ़ाना और जब तुझे अपने ध्यान में सभी प्रकार के मिश्रित रंगों की झिलमिलाहट दिखाई देती रहे जो जानो की अब तमोगुण और रजोगुण का मिलाजुला प्रकाश के रूप में सातों रंगों का आता जाता प्रकाश दिखाई दे रहा है यो तुममें तब अहंकार और भोगवादी वृति की व्रद्धि होगी और तुम लोगो पर शासन करने की प्रवर्ति और प्रयास बढ़ता जायेगा तुममें प्रतिभा का विकास होगा लोगो की प्रसन्सा मिलेगी तब प्रसंसा की प्राप्ति से ही तुम्हें सन्तोष मिलेगा यदि किसी ने तुम्हारे कार्य की प्रसंसा नही की तो क्रोध आएगा उसको भला बुरा कहोगे आलोचना करोगे यो बिना प्रसंसा और पुरुषकार प्राप्ति आदि के कोई कार्य नही करोगे तब भी तुम्हें सावधानी पूर्वक नियमित्त अपना जप और ध्यान बढ़ाना चाहिए जिससे तुममे विशुद्ध रजोगुण की वृद्धि बढ़ेगी तब तुम्हें ध्यान में एक तीर्व ज्योति की अचानक झलक मिलेगी एक जलती ज्योति की वो अभ्यासवश स्थिर होती चलेगी तब तुममें अलौकिक प्रतिभा की अचानक वृद्धि होगी कुछ अद्धभुत दर्शन और ऐसे ही कार्य जैसे कोई भविष्यवाणी अच्छी या बुरी करने की कभी कभी सामर्थ्य बढ़ेगी और कभी वो लुप्त हो जायेगी तब सावधान रहना और जप ध्यान करते रहना तब जप स्वयं ही अंतर्मन में बिना प्रयत्न के चलता है इसी अवस्था में “अजपा जप” की प्राप्ति होती है इतने किये गए अंखड जप को बहिर अजपा जप कहते है जो टूटता रहता है इसके बाद स्वयं के दर्शन अपने सामने बैठा आदि दर्शन बढ़ेंगे और गुरु के भी दर्शन प्रत्यक्ष होते है तब जानो तुम उच्चतर सत्वगुण की और बढ़ रहे हो ये उत्तम स्थिति है और जिस भक्त को ध्यान करते में सर्प और विषैले जीव आदि के दर्शन होते है वो अभी जाने की उस पर पूर्वजन्मों का शाप चल रहा है यो ये उसी के प्रतीक दर्शन होते है।तो भक्त शिष्य अपने गुरु मंत्र और गुरु ध्यान विधि को सदा करते रहने से अवश्य सभी प्रकार का भौतिक और आध्यात्मिक लाभ स्वयमेव ही प्राप्त होता है उसके लिए गुरु से बारम्बार पूछना नही पड़ता है।
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