शुभ प्रातः सत्यास्मि ज्ञान

आज्ञाचक्र छोड़ कर
कर निज मुलाधार पीठ।
जगे स्वं पुरुष शिवलिंग
और नारी श्री भग पीठ।।
प्राण प्रवेश हो सुषम्ना
और शुद्ध पंचतत्वी काया।
उठ जगे कुंडलिनी मुलाधार से
तब स्वं चढ़े आज्ञाचक्र वाया।।
जब तक शुद्धि पँचत्त्व ना
अन्य चक्र ध्यान व्यर्थ।
स्वंलिंग अर्पण पँचत्त्व कर
यही नारी श्री भगपीठार्थ।।
ज्यों अन्न उपजे धरा पे
नही उपजे अन्न आकाश।
व्यर्थ प्रयास सब धरा छोड़
यो धरा मिटे जल दे प्यास।।
भावार्थ?हे शिष्य तू अभी से अपने आज्ञाचक्र या ह्रदय चक्र आदि में व्यर्थ ध्यान मत कर पहले अपने स्वंलिंग का जागरण करने हेतु अपने मूलाधार चक्र का ध्यान कर यही पुरुष का शिवलिंग पूजा है जिस पर पंचतत्वी रूपी दूध दही घी तुलसी गंगाजल आदि मिलाकर बनाया कृतिम पंचाम्रत चढ़ा कर पूजा करना अर्थ है यही स्त्री का भी स्वंलिंग मूलाधार चक्र योनि चक्र श्रीभगपीठ की पंचाम्रत चढ़ा कर पूजा का अर्थ है यो इन कृतिम और बहिर प्रतिको के यथार्थ सच्चे चक्र मूलाधार में गुरु निर्दिष्ट विधि से ध्यान करने से सम्पूर्ण कुंडलिनी शक्ति का जागरण होगा जिससे पंचतत्वों का मिश्रण होकर जो ऊर्जा बनकर सुषम्ना यानि मन में प्रवेश करेगी और तब स्वयं ये नाभि ह्रदय कण्ठ आज्ञाचक्र जाग्रत हो जायेंगे जैसे की पृथ्वी पर अन्न की उपज करने की जगह आकाश में अन्न उपजाने का प्रयत्न व्यर्थ होता क्योकि अन्न की उपज केवल पृथ्वी यानि मूलाधार पर ही होती है यो गुरु बताये ज्ञान से साधना पुरुष इर् स्त्री को अपने अपने मूलाधार चक्र से प्रारम्भ करनी चाहिए।
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