शुभ सत्यास्मि ज्ञान प्रातः


??शुभ सत्यास्मि ज्ञान प्रातः??
जो गावे निज दान को
ओर अपनी की सेवा को गावे।
कहता फिरें कुछ ना हुआ
उसका किया हुआ सब जावे।
किया हुआ अभी अल्प है
तभी मिले ना कल्प।
मिलता अवश्य फल किया हुआ
पर बिन कहे किसी को गल्प।।
यो जो भी करो उसे कहो नही
और चिंतन करो उस शेष।
कुछ और किया तो रहा नही
वही ढूंढ पूरण करो अशेष।
दान सेवा तप जप
तभी सत्य फल देय।
जब तक दोष शेष निज
तब तक किया सभी है खेय।।
ईश्वर कृत्य कभी विफल नही
और ईश कर्म फल अवश्य देय।।
वो शनै शनै सब काटता
जेसे दुःख घटे पाय स्नेह।।
भावार्थ?जो अपने किये गए तप जप दान और सेवा के कर्म को अन्य लोगों के सामने बखान करता है अथवा ये कहता है की मेने तो जप तप दान सेवा खूब की है पर मुझे कोई लाभ नही हुआ या मनचाहा परिणाम नही मिला तो जानो ऐसा कहते है आपका किया जप तप दान सेवा कर्म का फल घटता हुआ समाप्त हो जाता है क्योकि ये सकारात्मक शक्ति है जिसे आप स्वीकार ही नही रहे और नकारात्मकता को अपना रहे है तो तुरन्त नकारात्मकता की ही प्राप्ति होगी यो ये जानो की जो भी सकारात्मक कर्म या ईश्वर कर्म आदि जो भी कर रहे हो वो देर सवेर अपना उत्तम फल अवश्य देगा हां ये अवश्य है की आपका किया जप तप दान और सेवा के पीछे कितनी उत्तम और सकारात्मक भाव रहा है आपने उसे प्रारम्भ से ही अविश्वासी व् संशय भाव के साथ किया है तो उस किये कर्म में उतना ही सकारात्मक बल कम होगा और उस कम बल युक्त शक्ति से आपको जो परिणाम चाहिए वो कम व् देर से ही प्राप्त होगा यो ही कहा गया है जिस प्रकार कोई भी दुःख यायक नही आता है उसे भी आने और फलने में देरी लगती है ठीक वेसे ही आपको भी उस दुःख के कटने में व् सुख पाने में देरी लगेगी और अवश्य शुभ परिणाम प्राप्त होगा आप अपना कर्म कीजिये।
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