ध्यान योग-अपनी और लौटो, इस ज्ञान विषय पर बता रहे स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी

ध्यान योग-अपनी और लौटो

इस ज्ञान विषय पर स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी बता रहें हैं कि,

जो भी कोई आत्मतत्व के त्रिगुणों में से किसी भी एक गुण चाहे वो उस गुण के मनुष्य रूपी साकार रूप अथवा उस गुण का निराकार प्रकर्ति रूप की उपासना करता है वो उस गुण प्रधान की सिद्धि प्राप्ति कर संसार में चाहे गुरु रूप में सिद्ध कहलाता हुए भी वो एक साधक से ऊपर स्थान और महत्त्व नही रखता है क्योकि अभी वो अपनी ही आत्मा के तीन गुण-तम्-रज-सत् या-1-आत्मा की आनन्द इच्छा यही ब्रह्मा और इसकी शक्ति सरस्वती है-2–आत्मा की आनन्द क्रिया यही विष्णु और उसकी शक्ति लक्ष्मी है-3-आत्मा का ज्ञान यानि शिव और उसकी शक्ति सति या पार्वती आदि के रूप में किसी भी एक भाग की ही उपासना कर रहा है और उसने अपनी आत्मा को किसी अन्य की आत्मा माना हुआ एक भ्रम और अज्ञान की सृष्टि और उसकी पूजा की है यो उसका अनुभव और प्राप्ति अपूर्ण है और उसका दिया ज्ञान उसके मानने वालों को अपनी ही तरहां और भी भर्मित और अपूर्णता देता है जिससे निकलने में जाने कितने जन्म बीत जाते है और तब उन्हें ज्ञान होता है की ये मेने क्या किया मैं स्वयं को दूसरा मान कर पूजा कर रहा था तब इस ज्ञान को पाकर वो पुनः साधना करेगा यो कितना समय व्यर्थ गया ये उस बच्चे की भांति अज्ञान है जो प्रारम्भ में शिक्षा पाने विद्यालय जाते में जब अ,आ या A,B आदि अक्षर वर्णमाला का ज्ञान पढ़ता और समझता है तब उसे ये लगता है की ये सब क्या जी जंजाल है किसने इसे हमारी जान खाने को और अपने मनोरंजन को बना डाला है जो हमे व्यर्थ पढ़ना पड़ रहा और ज्यों ज्यों वो आगे की शिक्षा पढ़ता जाता है उसे पता चलता है की अरे ये तो मेरा ही ज्ञान मेरे आनन्द के लिए था लेकिन इतने वर्ष वो अपने ही ज्ञान और आनन्द को किसी और का दिया या थोपी किसी इच्छा और ज्ञान और आनन्द को अपने पर बोझ मानता पढ़ता है और अंत अपने लिए पाता हुआ यो पछताता है की अरे ये बात मैं पहले ही जान लेता तो मैं कितने आनन्द से अपना ही ज्ञान अपने लिए पढ़ता और बहुत ही अच्छी तरहां पढ़ता यो अब पछताए क्या होत है जब चिड़ियाँ चुग गयी खेत इस कहावत को अपने बहुमूल्य जीवन में मत दोहराओ- यो प्रारम्भ से ही “अपनी और लोटो” इस ब्रह्म सत्य वाक्य को अपनाओं और अपना आत्म कल्याण करो यही सत्यास्मि धर्म ग्रन्थ का सार महाज्ञान और उसका महासिद्धासिद्ध महामंत्र का भावार्थ है।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः

स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
www.satyasmeemission.org

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