स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी ओर मुस्लिम साधनाये ओर उनके साधनागत रहस्य सत्संग

स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी ओर मुस्लिम साधनाये ओर उनके साधनागत रहस्य सत्संग

सायंकालीन सत्संग मे हम भक्तो ने प्रश्न किया कि स्वामी जी मुस्लिम साधनाओ मे हमारी साधनाओ मे क्या अन्तर है ओर आपने क्या ये कि है?आप अपने अनुभव ज्ञान से बताये तो स्वामी जी ने कहा हाँ आत्मा अपने आत्मज्ञान हेतु अनगिनत शरीर धारण करती है इसी का नाम है पूर्वजन्म ओर मैने ऐसा ही अपने पूर्व जन्मो मे ओर कुछ वर्तमान जन्म मे पूर्व ज्ञान के अनुरुप मुस्लिम साधना व सूफ़ी साधना कि है मेरा नाम महाराज मुस्लिम मित्रो ने ही सर्वप्रथम दिया था।जो मैं पहले भी बता चुका हूँ अत; दोनो साधनाओ मे कोई विशेष भेद नही है,मात्र भाषा से नाम पुकारने का अन्तर है-जैसे वेदान्त मे वणित निराकार ब्रहम कि साधना को यहां हस्तिए मुतलक कहते है।इसका अर्थ है रुप आकार से रहित एक ब्रह्म है। उसकी आत्म अनुभुति करना ओर उसमे स्थित होना ओर सूफ़ी का अर्थ है-निर्गुण ब्रहम्॥
सूफ़ीमत के साधनागत चार सिद्धांत के चार भाग है-

1-चिश्तिया।
2-कादिरया।
3-सुहरवर्दिया।
4-नकशर्दिया।
ओर इन चारो के अन्तर्गत जप करने के अनेक रुप है।यहीं फ़िर अल्लाह का स्मरण भी दो प्रकार से किया जाता है-
1-साधक अल्लाह के नाम ओर उसके गुण का जाप इस प्रकार से करे कि उसके शरीर के हर अँग मे यानी रोम रोम से उसका नाम ओर प्रकाश गुँज उठे।
2-साधक ईश्वरिय या अल्लाह तत्व का चिन्तन दार्शनिक रुप से करे। अपने ओर अल्लाह के बीच के सम्बंध पर गहनतम विचार करता उस चिंतन में खो कर सुधबुध भूल जाये,इसे चिंतन समाधि कहते है।
अब हम साधना मे मुर्शिद यानी गुरु ओर मुरिद यानी शिष्य के बीच तवजह यानी ध्यान अथवा दीक्षा पर देते है कि गुरु अपने शिष्य को अपने सामने घुट्ने मोड कर बैठावे ओर फिर एकाग्रचित हो कर अपने शिष्य के ह्र्दय मे अल्लाह के एक सो एक नामो को एक एक करके अपनी एक सो एक साँसो के साथ शुद्ध भावना-विचार के साथ जोड कर अपने अंदर से शक्तिपात के साथ भेजता हुआ ध्यान करे। जिससे शिष्य के ह्र्दय मे अल्लाह का नूर यानी प्रकाश छा या भर जाये ओर शिष्य अल्लाह कि उपासना का पूर्ण अधिकारी हो जाये।तभी शिष्य आगे की साधनाओं को कर पाता है।
अब अन्य इस्लामी साधनाओ के बारे मे बताता हूँ।

1-जिक्र जेहर:-

यह साधना ‘चिश्तिया” वंश कि है ओर हिन्दुओ कि महामुद्रा प्राणायाम जैसी है। जिसमे अर्धपश्चिमोत्सान मे बेठ कर मुख पश्चिम को रख कर कमर सीधी रख दोनो हाथ जांघों पर रख कर विसमिल्ला कह कर तीन बार कलमा “ला इलाह इल्लिल्लाह” पढे ओर फ़िर श्वास खीचे ओर कुम्भ्क कर अपना सिर घुट्नो पे रखे ओर मुलबन्ध लगाकर जब तक श्वास रोके जब तक उस अवस्था रुके,फ़िर मधुर स्वर मे “ला इल्लाह” कहते हुये श्वास धीरे धीरे छोडे ओर आँखें खोले व सीधा बेठे फ़िर श्वास खीचते मे “इल्लिल्लाह” कहे ओर आँखें बँद कर ह्रदय मे अल्लाह के प्रकाश का ध्यान करता हुआ, पहले जैसी क्रिया करे ऐसे ही धीरे धीरे अभ्यास करता हुआ,उस एक से एक हो कर इस नियम अभ्यास को लगातार नियमबद्ध होकर करे तो उसकी कुण्ड्लिनि जाग्रत हो जायेगी ओर अल्लाह या आत्मप्रकाश दिखाई देगा।

2-जिक्रे पासे अनफ़ास:-

यह एक प्रकार से हिन्दुओ कि साँस लेने छोड्ने के समय कोई भी एक ईश्वर का नाम लेने के अभ्यास जैसी साधना है-घुटनों पर सीधे बैठ कर अपना ध्यान नाभि मे रख अपना मुख बँद कर अन्दर जाती साँस में “ला इल्लाह”कहे ओर बाहर जाती साँस के समय “इल्लिल्लाह” कहे अन्दर जाती साँस के साथ जप को “जिक्र नफ़ी” कहते है ओर बाहर जाती साँस के साथ जप को “इसबात” कहते है।

3-हब्जे दम:-

इस साधना को सभी सूफ़ी करते है विशेष कर चिश्ती ओर कादिर वंश मे यह ज्यादा प्रचलित ओर इसका साधनागत अभ्यास है। यह हमारे हठयोग के अन्तर्गत अधिक देर तक श्वास रोकने का योगभ्यास है ओर रेचक ओर पुरक के समय अल्लाह का नाम लेते हुये ध्यान लगाये।

4-शगले नसीर:-

यह ख्वाजा मुईनद्दीन चिश्ती कि विशेष साधना है ओर हिन्दूओ मे ये राजयोग के अंतर्गत अपनी नाक के अगले भाग यानी नासाग्र पर खुली आँखो से शाम्भवी मुद्रा त्राट्क करते हुये एकाग्रचित से अपरिमित ज्योति या प्रकाश का ध्यान ओर उसका अनुभव करने जैसा निरंतर अभ्यास है।

5-शगले महमुदा:-

इस साधना मे अपनी दोनो आँखो को खुली या बन्द करके उपर की ओर भ्रकुटि मे एक ज्योति की कल्पना करते हुए वहां लगा कर अल्लाह का नाम जाप करते ध्यान किया जाता है।
6-सुलतानु अजकार:-

यह हिन्दूओ के अन्हद नांद सुनने जैसी आँख कान मुख को अपने हाथो की अँगुलियो से बँद कर अपनी साँस के साथ साथ अपनी प्राण शक्ति को नाभि से खीच कर मूलबन्ध ओर उड़ियांबन्ध लगाकर कुम्भक करते हुये मस्तिष्क तक ले जा कर फिर आज्ञाचक्र मे स्थापित करे। ऐसा अभ्यास करते मे”अल्लाह” नाम का उच्चारण करे ओर जब साँस को यानी प्राणशक्ति को अपने आज्ञाचक्र मे स्थापित करे तो मात्र “हू” “हू” रहे ऐसा रुक रुक कर अभ्यास करे तो उस साधक को सच्चा नांद सुनाई आने लगेगा।

7-शगले सोते सरमदी:-

इस साधना मे आँख कान मुख बँद कर शान्ति से बैठ कर आसमान से गिरती अल्लाह की शक्ति-क्रपा को जलधारा की तरहा अपनी ओर या अपने शरीर मे प्रवेश करता देखे व अनुभव करे साथ ही “इस्मे जात” यानी अल्लाह का नाम को जपता चले तो उस साधक में अनुमान लगाने की शक्ति जिसे इन्ट्युशन या अन्तर्दष्टि शक्ति ओर अध्यात्मिक अनहद नांद शब्द प्रकट हो जाता है।
8-मुरातबा:-

यह अन्तर्द्र्ष्टि बढाने की विशेष साधना है इसमे जाँघो पर सीधे बैठ कर गर्दन झुकाकर आँखे बँद कर अपने ह्रदय में अल्लाह का दीर्घ उच्चारण करते हुए यानी गहराई के साथ नाम लेते हुये एक श्वेत रंग के प्रकाश का ध्यान करे तो इस अभ्यास के बढ़ने पर साधक को दिव्य द्र्ष्टि की प्राप्ति होती है।

9-मुरातबा इस्मे जात:-

इसमे वजु करके यानी स्वच्छ पानी से हाथ-पैर-मुख धोकर पश्चिम कि ओर सीधे बैठकर विस्मिल्लाह पढकर अपनी गर्दन झुकाकर यानी रकब करते हुए इस्मे जात अर्थात अल्लाह का नाम लेता हुआ मन को अपनी साँसो पर या अपने गुरु पर एकाग्र करे तो उसे विभिन्न आध्यात्मिक शक्तियों के साथ आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
ऐसी अनेक साधना है जो सूफ़ि मत मे प्रचलित है उनमे से जो प्रमुख है, वो मेने यहां कहीं है पर सब है एक सी ही साधनाये। पर बाद के वर्षो मे मेने ऐसी अनगिनत साधनाये करने के उपरान्त अनेक कमियों को पाया। जो की यहां उच्चतर गुरु के ना मिलने पर होती है।तब मेने एक ऐसी ध्यान प्रणाली का विकास किया जिसमें बिना उच्चतर गुरु के भी सामान्य मनुष्य यहां आश्रम में ही उसे सीख कर अपने घर सहजता से ग्रहस्थ जीवन मे भी करता हुआ अपना सम्पूर्ण भोतिक+अध्यात्मिक ज्ञान को पूरा कर आत्मसाक्षात्कार की प्राप्त कर सकता है। उसका नाम है रेहीक्रियायोग ध्यान विधि।जिसकी ऑनलाइन क्लॉस अनुभवी मास्टर्स के द्धारा प्रातः ओर रात्रि में चलाई जाती है।ओर उन दिनों जब ये सब दर्शन हुए तब भी मुस्लिमो के रमजान चल रहे थे ओर आज भी चल रहे है कैसा अदभुत सँयोग है। साधना ज्ञान प्राप्ति व देने का।

यो सत्यास्मि सत्संग कहता है कि-

आत्मजाग का एक उपाय,
दीक्षा ले करे गुरु सँग्।
स्त्री-पुरुष निज ध्यान करे
ज्ञान पाये आत्म अभंग ॥

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
Www.satyasmeemission.org

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