आप क्या कर रहे हैं अपनी भौतिक व आध्यात्मिक यानी आत्मीक धर्म शक्ति की व्रद्धि ओर उन्नति को अतिरिक्त कर्म,,

आप क्या कर रहे हैं अपनी भौतिक व आध्यात्मिक यानी आत्मीक धर्म शक्ति की व्रद्धि ओर उन्नति को अतिरिक्त कर्म,,

जाने बता रहें हैं स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी,,

तो जाने धर्म उन्नति को मुख्य 5 कर्म,यदि ये 5 कर्म आपके जीवन में नहीं है तो असम्भव है आपकी भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति,,

यदि आप धर्म उन्नति चाहते है तो इन 5 नियमों को अवश्य अपनाएं

रेहीक्रियायोग प्रगति के 5 नियम:-

1-एक्स्ट्रा गुरु मन्त्र जप कितना ओर संग में अन्य मन्त्र जप की कितनी संख्या है,कहीं सब मिलकर एक दूसरे को काट तो नहीं रहे।
1-जप की व्रद्धि शब्द यानी मन्त्र के सही उच्चारण से होती है और जप तप की व्रद्धि को मन की सफाई आवश्यक है तो,आपका मन्त्र जप का सही उच्चारण कैसा है।
2-आपके जीवन के बुरे कर्मो के नाश को अतिरिक्त बल दुआ वरदान की आवश्यकता है।उसको अन्य जन परिजन सेवा कितनी है,जो उनकी सेवा से आपको आर्शीर्वाद मिले।
3-जिस पंथ के गुरु बनाये है व उनका धर्म क्या है और उन गुरु की व्यक्तिगत सेवा में आप कितने सहभागी है और वहां के धर्म विकास को चल रहे कार्यो में आपका धन दान कितना है या है ही नहीं।तब कैसे बढ़ेगी आप पर गुरु और धर्म की कृपा।
2-सात्विक व शीघ्र पचने वाला अच्छा खाना।कहीं असमय भोजन और तामसिक भोजन व तला हुआ भोजन की कितनी मात्रा प्रतिदिन या साप्ताहिक रहती है,जिससे आपका अन्नमय शरीर का शोधन होने में बांधा आती है।
3-कम से कम 30 मिंट प्रातः ओर 30 मिंट शाम को बिन नागा किये यानी कोई एक्सक्यूज दिए नियमित अभ्यास अनिवार्य है।अनगिनत जन्मों के बुरे अव्यवस्थित कर्म कैसे कटेंगे,1 घँटे में।
4-ब्रह्मचर्य:-
काम ऊर्जा से ही आपका जन्म हुआ है ओर यही काम ऊर्जा ही ढाई कुंडली मारे एक घुमेर यानी भंवर बनाती मूलाधार से सहस्त्रार चक्र तक आपके पांचों शरीर-1-अन्नयमय-2-प्राणमय-3-मनोमय-4-विज्ञानमय-5-आनन्दमय शरीर में सामान्य स्थिति से असामान्य स्थिति तक जाग्रत होकर आपके पांच शक्तियों-1-शब्द-2-रूप-3-रस-4-गंध-स्पर्श के रूप में उन्नति करते हुए आपका भौतिक और आध्यात्मिक विकास करती है।यो इसकी शक्ति और उसका सही उपयोग जानना ही ब्रह्मचर्य कहलाता है,यो इस काम ऊर्जा का जागरण ही कुंडलिनी जागरण कहलाता है और इसी जागरण के नियम है,इन्हें जाने और इन्हें संतुलित किये बिना इस काम ऊर्जा के जागरण कुंडलिनी को संभाला नहीं जा सकता है।अन्यथा विकास की जगहां विनाश सम्भव है।यो इन नियमो पर अवश्य ध्यान दें-
1-अपनी काम ऊर्जा के प्रवाह के दबाब को सहन नहीं कर पाने पर किये-हस्तमैथुन की कोई व कितनी लत है।
2-कामुक मन का तन पर प्रभाव से उत्पन्न स्वप्नदोष की आपके जीवन में कितनी स्थिति है।
3-ग्रहस्थ जीवन में सेक्स करने की मात्रा कितनी है।काम ऊर्जा का क्षरण व्यर्थ तो नहीं,वो साधना का विषय बनाया या केवल एक काम ऊर्जा की बेचैनी की अभिव्यक्ति मात्र मनोरंजन तो नहीं।
4-निंद्रा का समय कितना ओर कैसा है।स्वस्थ निंद्रा ही स्वस्थ तन और मन और साधना को समय देगी।
5-लोगों से हाथ या गले मिलने से अच्छी बुरी ऊर्जा का हस्थान्तरण से हानि।

यो इन पांच नियमों को नियमित अध्ययन करते हुए अपनाएं ओर अपनी साधना का चर्मोउत्कर्ष आत्मसाक्षात्कार पाएं।

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
Www.satyasmeemission.org

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