साल का सबसे छोटा दिन ओर बड़ी रात पर ज्ञान कविता की बात
कहते स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
इस 2020 साल की विदाई बेला में सोमवार, 21 दिसम्बर को साल का सबसे छोटी अवधि का दिन और सबसे लम्बी अवधि की रात वाले दिन आसमान में खगोल विज्ञान की एक अद्धभुत घटना बड़ी घटना जा रही है। साल 2020 की सबसे लंबी रात की शुरुआत होते ही सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह ब्रहस्पति यानी गुरु (जुपिटर) और रिंग वाला विशालकाय ग्रह शनि (सेटर्न) एक-दूसरे में अलिंगनयुक्त होकर समाये से दिखेंगे। ये दोनों ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हुए लगभग 20 साल में निकट तो आते दिखते हैं लेकिन इतनी अधिक नजदीकियां आपको इन दोनों ग्रहों की 400 साल बाद फिर से दिखाई देंगी।
खोगोलिय विज्ञान में गुरु-शनि के इस महामिलन को ग्रेट कंजक्शन कहते हैं।
इससे पहले यह खगोलीय घटना 400 साल पूर्व वर्ष 1623 में हुई थी, तब गुरु-शनि इतने नजदीक आए थे। इससे पहले वर्ष 1226 में दोनों ग्रहों की इतनी करीबियां देखी गई थीं।
सोमवार, 21 दिसंबर को साल 2020 का सबसे छोटा दिन होता है। इस दिन सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच की अवधि 10 घंटे 42 मिनट होती है। इसी आधार पर इस दिन रात की अवधि सबसे लम्बी करीब 13 घंटे 17 मिनट की रहती है। भारत मे सोमवार को प्रान्तों ओर क्षेत्रीय समयानुसार लगभग सूर्योदय लगभग 6.57 बजे होगा, जबकि सूर्यास्त 5.39 बजे तक होगा। इस गणित से दिन की अवधि 10 घंटे 42 मिनट रहेगी। इस दिन से शिशिर ऋतु का प्रारम्भ होता है,अब इसी दिवस पर स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी की शिशिर ऋतु के प्रारंभिक दिवस पर ज्ञान कविता इस प्रकार से है कि,
21 दिसंबर साल का सबसे छोटे ठंडे दिन पर कविता
कह रहे है स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
कड कडाके सर्दी बढ़ गयी
किटकिटाने लगे यूँ दांत।
बोली भी बदली तुतलाकर
जेब आराम फरमाएं घुस हाथ।।
रजाई छोड़ने को मन नहीं
बढ़ गयी चाय की चुस्की।
समय बढ़ गया नींद फरमाइश
समेट लोई तन जो खिसकी।।
मुंह से छूट रहे भांप के छल्ले
यूँ बढा रहे आसपास की धुंध।
खाना बढा भूख लग खा कर
सेहत बननी शुरू नव भोजन सुगंध।।
धरा घूमती कुछ तिरछी होकर
ज्यों ली लचक कमर घूम घूमर।
फेरा लेती प्रेमिक बन सूरज
इसी खुशी से बढ़ती शिशिरऋतु संवर।।
इस दिन से छाने लगती है
धरा बुढ़ापे की छाया।
तब देता नवयौवन अमृत को
चांद हर ओस बूंद दे वसुंध काया।।
शाक फल बनस्पति में भरता
अमृत पौष्टिक शक्ति बनकर।
जो खाता नवयौवन पाता
ये शिशिर दिवस उपहार जन हर।।
दिशाएं धवल उज्ज्वल हो जाती
धरा अंबर एक हो कर।
दोनों लिपेट कोहरे की चादर
भीगते प्रेम ओस निर्झर।।
रात बढ़ बनती सुहानी संगत
झपकी दे सुला नींद आगोश।
सुबह भी यूँ देर से आती
भरी अंगड़ाई ले मदहोश।।
यो मनाओ आज दिवस पावन को
घटाओं से नभ भरती भौर।
शुभकामना आज जन्में प्रेमिक जन
देता उन्हें मैं अनन्त खुशियों तक छोर।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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