भारतीय ज्योतिषीय कैलेंडर के अनुसार, शुक्ल पक्ष के दौरान माघ महीने में 7वें दिन,यानी सप्तमी तिथि को रथ सप्तमी का उत्सव मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह शुभ त्योहार जनवरी के मध्य से फरवरी के मध्य में आता है। आमतौर पर रथ सप्तमी का अनुष्ठान वसंत पंचमी के दो दिन बाद किया जाता हैं। सूर्य जयंती के इस शुभ अवसर पर माना जाता है कि भगवान सूर्यदेव ने इस ब्रह्मांड में फैले अंधकार को अपने जन्म लेते ही,चारो ओर नवीन सृष्टि को जीवंत कर दिया और सभी को जीवन ऊर्जा दी,अपनी सप्त किरण शक्तियों से मनुष्य में सप्त चक्रों का जागरण किया,जिनसे मनुष्य में भी अपनी कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत कर,सूर्य समान ब्रह्मशक्ति ओर ब्रह्मांड शक्तियों का जागरण,उत्थान और नियंत्रण होकर सूर्य के समान ही सर्व कल्याण का निस्वार्थ दिव्य ज्योतिर्मयी प्रेम ओर उसका दिव्य आनन्द प्रकाशित हो,यो आज के दिन सूर्य देव अपनी सप्त किरणों के घोड़ो पर सवार होकर समस्त विश्व को शुभ शक्तियां देते है,बस लेना वाला चाहिए।तो इस दिन सूर्य को उनके जन्मदिन पर अपना धन्यवाद कुछ न कुछ अर्पण करके अवश्य दें।
रथ सप्तमी का महत्व:-
शास्त्रों में मान्यता हैं कि इस दिन से गर्मी का आगमन शुरू हो जाता है और विशेषकर दक्षिणी भारत के क्षेत्रों में जलवायु ओर वहां की परिस्थितियों में बदलाव का प्रारम्भ होता है।ठीक आज से किसानों के लिये फसल में तेजस्विता,पोस्टिकता, जीवनदायी शक्ति का संचार होना शुरू हो जाता है।
रथ सप्तमी का त्योहार दान-पुण्य के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन प्रातः से साय तक यानी सूर्य उदय से सूर्य अस्त तक जो बने दान करने से भक्तों को अनेको प्रकार के दोषों व पापों और अनेको बीमारियों से छुटकारा मिलता है।आत्मा शुद्ध होती है,क्योकि सूर्य मनुष्य और ब्रह्मांड की आत्मा का स्वरूप भी है, साथ ही मनुष्य जीव में एक पोजेटिविटी,शुभत्त्व का विकास के साथ दीर्घायु, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का लाभ मिलता है। आज के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करना ओर सूर्य के सामने नंगे बदन खड़ा होकर उनकी प्रार्थना करने से आपका तब स्वस्थ होता है। योगियों व सन्तो का मानना है कि इस दिन अपने अपने क्षेत्र की पवित्र नदियों आदि स्थानों में स्नान करने से शरीर के सारे रोग खासकर त्वचा संबंधी रोगों में बड़ा लाभ होता है। इस शास्त्र व जन मान्यता के कारण सूर्य जयंती यानी रथ सप्तमी को आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। वहीं महात्माओं, संतों में इस दिन की अचल सप्तमी के नाम से भी मान्यता है।यानी आज के दिन ध्यान जप तप करने से आपकी आत्मा में अचलता, स्थिरता,सुदृढ़ता का विकास होता है।
सूर्य जयंती,रथ सप्तमी के दिन पूजा अनुष्ठान क्या करें:-
सूर्य जयंती,रथ सप्तमी के दिन सूर्योदय से पहले भक्त यदि किसी पवित्र नदी पर नहीं जा सकते है,तो अपने स्नान के जल में गंगाजल डालकर स्नान करें और जीटीबी देर सम्भव हो सूर्य के सामने बैठकर अपना गुरु मंत्र व ध्यान की विधि से ध्यान करें और यज्ञ करते हुए सूर्य के तेज का ध्यान करते हुए इन्हें अपनी आहुतियां समर्पित करें।वैसे भी आज शनिवार भी है और इस समय सूर्य शनिदेव के साथ बैठे है,यो ओर भी उत्तम रहेगा
करने के लिए जाते हैं।
अगले अनुष्ठान में भक्त स्नान करने के बाद सूर्योदय के समय ‘अर्घ्यदान’ देते हैं। ‘अर्घ्यदान’ का अनुष्ठान भगवान सूर्य को कलश से धीरे-धीरे जल अर्पण करके किया जाता है। ओर बता दूं कि सूर्य को जल का “अर्ध्यदान” करते में भक्त सूर्य की ओर नमस्कार मुद्रा में खड़े हो और भक्त का मुख भगवान सूर्य की दिशा में होना चाहिए। ओर धीरे धीरे उनकी ओर अपने जल भरे लोटे से उन्हें जल अर्पित करें,कुछ भक्त अधिक लाभ पाने के लिए इस अनुष्ठान को भगवान सूर्य के विभिन्न नामों का जाप करते हुए करते उपासना करते हैं।
इस दिन महिलाएं सूर्य देवता के स्वागत के लिए उनका और उनके रथ के साथ चित्र बनाती है। कई जगहों पर महिलाएं अपने घरों के सामने सुंदर रंगोली बनाती हैं।
आज के रथ सप्तमी के दिन भक्त अपने बरामदे या आंगन में मिट्टी के बर्तनों में कच्चा दूध डाल रख दिया जाता है और इस दूध को सूर्य की गर्मी से उबाला जाता है।यहां उबालने का अर्थ है,दूध में सूर्य की गर्मी से कुछ गर्मी,तेज आये और उस कुछ गर्म हुए दूध का उपयोग फिर सूर्यदेव का भोग प्रसाद में चावल व मीठा शक्कर या चीनी डालकर खीर बनाकर यानी मीठे चावल को तैयार करके सूर्य को भोग लगाया और स्वयं प्रसाद में ग्रहण किया जाता है।
विशेष:-आज खीर बनाकर शनिदेव मन्दिर में बांटे, वहां सूर्यदेव की प्रतिमा हो तो उन्हें भोग लगाकर भक्तो में बांटे।
ओर आज गुप्त नवरात्रि की सप्तमी भी है,यो पूर्णिमा देवी को भी खीर का भोग लगाएं।
मूल बात है,आज के दिन वैदिक घोष की,अपनी आत्मा का ध्यान रेहि क्रियायोग से करो,
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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