चौ. रघुराज सिंह तोमर पहलवान-सन 1933 से सन 57 तक अविजीत कमिशनरी चैम्पियन रहे थे।
ये अपने समय मे अविजीत सन 33 से सन 57 तक रहे कमिशनरी चैम्पियन स्व. चौ.रघुराज सिंह तौमर,…
स्व.श्री रघुराज सिंह तौमर जी का गांव चांगोली-पो.ककोड़ सिकन्द्राबाद बुलंदशहर है,जो अब ये गांव गौतमबुद्धनगर में आता है।इनके पिता स्व.चौ. रतनसिंह तौमर उस समय तीन गांवों-चांगोली,भोपतपुर-सलेमपुर जाट के जमींदार थे।इनके एक बड़े भाई स्व.चौ. महेंद्र सिंह तौमर व एक छोटे भाई स्व.चौ. वीरनारायण सिंह तौमर जिन्हें इन्ही के कुश्ती कार्यक्रमों और अखाड़ा संचालन करने साथ ही कुश्ती सिखाने आदि को लेकर खलीफा जी कहा जाता था।रघुराज सिंह बचपन मे जिगर के बढ़े होने से पेट की तकलीफ से बड़े परेशान रहते थे,तबपास ही गांव में एक अखाड़ा चलता था,इन्हें वहाँ एक घोड़ी आने जाने को देकर प्रवेश दिला दिया।बस धीरे धीरे इनका रोज के प्राणायाम कुम्भक के साथ दंड बैठक व्यायाम करने से स्वस्थ उत्तम होता गया और कुछ समय मे ही वहाँ कुश्ती लड़ने वालों में इनके सामने कोई टक्कर देने वाला नहीं रहा।लगभग 19 साल की उम्र तक पूरे बुलन्दशहर जिले में नामी ग्रामी पहलवानो में गिने जाने लगे।जब इनकी पहली कुश्ती होने वाली थी,तभी इनके बड़े भाई चौ. महेंद्र सिंह और अपने खानदान में सबसे पहले पुत्र श्री जगदीश्वर सिंह तौमर का जन्म नवरात्रि की अष्टमी प्रातः 26-9-1932 को हुआ,उस दिन ये अपनी पहली बड़ी कुश्ती को जाते समय अपने भतीजे को दुलार कर,ये कहते गए कि-आज सबसे शुभ शगुन है ओर मेरी जरूर जीत होगी।और यही हुआ भी।की उस समय और अब भी, दनकौर कस्बे में हर साल देश के बड़े बड़े पहलवानों की बहुत बड़े स्तर पर कुश्ती होती थी।तब उस समय पंजाब के हेवीवेट पहलवान शोभा सिंह कुश्ती आयोजन में कुश्ती को आये,तब उन्होंने पहलवानों को लड़ने को लंगड़ धुमाया की-कोई भी पहलवान मुझसे कुश्ती लड़ना चाहे लड़ सकता है,ये सुन ओर उनका विशाल बलवान शरीर देख कोई सामने नहीं आया,उस दिन बहुत समय बाद आसपास के बड़े बड़े लाला लोग कुश्ती देखने को आये थे,ये देख वे बोले कि-हद है,हमारे पहलवान कहां मर गए?तब तीसरी बार शोभा सिंह के ललकारने पर इन्होंने अपने क्षेत्र की इज्जत को अपने से तीनगुना भारीभरकम पहलवान को उठाकर लंगड़ थामकर चुनोती स्वीकार कर वहाँ फैले सन्नाटे को तोड़कर सबको अचरज में डाल दिया,चारों ओर से भयंकर ताली की गड़गड़ाहट घुजने लगी,कुश्ती शुरू हुई,पहले राउंड से लेकर तीसरे चक्कर में इन्हें शोभा सिंह ने शारारिक बल से अपने नीचे डाल लेता,पर ये दांवों के बल से नीचे से निकल उठ खड़े हो जाते और यो कुश्ती चलती रही,चारों ओर अपने क्षेत्र के इस नवयुवक पहलवान की इस तरहां दांवपेच भरी कुश्ती ओर साहस को देखकर वाह वाह ओर तालियों की गड़गड़ाहट से बड़ी भीड़ भरा दर्शकों का हुजूम अखाडे में जोश भर रहा था।ओर तभी रघुराज सिंह ने शोभा सिंह को दांव मारकर नीचे डाला और पूरा जोर लगाकर चित्त कर डाला,उस चित्त करने को अपने से तिमने पहलवान को जो जोर लगाया,इनके पेट मे दर्द उठ गया था,पर ये जीत चुके थे।अब क्या था,पहली बार बुलन्दशहर के किसी पहलवान ने पंजाब के बड़े मशहूर पहलवान को इस तरहां हराया था।इस कुश्ती से इनका प्रदेश से बाहर तक दूर प्रदेशों तक नाम फैल गया,हारने पर शोभा सिंह ने उनसे इनका परिचय जान की,जितने वाला लड़का ऊंचे घर से है,तब बड़ा खुश होकर पंजाब को गया,इस विजय पर गांव चांगोली लौटकर अपने भतीजे के हाथ मे पुरुषकार में मिले रुपयों में से एक चांदी का रुपया दिया और दुलार किया।इसके बाद अनेक बार ऐसी बड़ी कुश्तियों में जीत हासिल कर क्षेत्र और जाटों का नाम बढ़ाया। बाद के वर्षों तक पंजाब के अनेकों जाने माने पहलवान चांगोली गांव में इनके यहाँ अखाड़े में रुकते थे,ओर वहाँ कुश्ती का अभ्यास करते और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होने वाली कुश्तियों में इनके साथ भाग लेते थे।तब ये सन 38 में सदरपुर गाजियाबाद में हुई विशाल दंगल कुश्ती में ये मेरठ मंडल कमिशनरी चैम्पियन बने,तब मेरठ मंडल कमिशनरी आगरा से लेकर।मुजफ्फरनगर सहारनपुर तक फैली हुई थी।और अपनी कुश्ती को छोड़ने तक सन 57 तक अविजीत ओर कमिशनरी चैम्पियन रहे।एक बार गामा पहलवान के पोते से इनकी कुश्ती बराबर की छूटी, जिसे गामा भी देखने आये थे,ओर इन्हें पीठ थपथपा कर आशीर्वाद भी दिया,की पहलवान बड़ा तेज और अच्छा लड़ते हो।और सदरपुर दंगल में ही दारा सिंह के गुरु टाइगर जोगेंद्र सिंह से बराबर की कुश्ती छूटी, इस पर टाइगर जोगेंद्र सिंह ने इन से कहा की,पहलवान अब देश की इस अखाड़ा कुश्ती में विशेष पैसा नहीं है,मेरे साथ विदेश चलो,कनाडा से नई फ्री स्टाइल की कुश्ती में लड़ा करेंगें,ओर बहुत पैसा कमाएंगे।ये सुन बोले,भई मुझे अपनी देशी कुश्ती ही अच्छी लगती है,ये नकली कुश्ती में इस जैसा आनन्द नहीं आएगा,तब आज की फ्री स्टाइल कुश्ती में जोगेंद्र सिंह ने दारा सिंह को उतारा और श्री दारा सिंह ने विश्व भर में भारत का नाम ऊंचा किया है।इनके कुश्ती छोड़ने के पीछे इनकी गर्दन में कुश्ती से लगने वाले आघात से स्मरण शक्ति में भूल आने की परेशानी बढ़ना था।और इनकी मृत्यु तक ये रोग बढ़ने पर भी इनका शरीर जाने कैसे अद्धभुत स्वस्थ बना रहा था,उनके अनेक पहलवान शिष्य कहते कि, ये बड़ा आश्चर्य ही है,ये उनका ब्रह्मचर्य ओर इनकी प्राणायाम के साथ दंड बैठक व्यायाम प्रणाली का नियमित अभ्यास का करिश्मा है।इनके एक ही पुत्र रहे,सुरेंद्र प्रताप सिंह जो पुलिस में डिप्टी इंस्पेक्टर पद से रिटायर्ड हुए,ओर अपने समय के बड़े नामीग्रामी ओर ईमानदार व्यक्ति रहे।!पफ़स्सि एक्सरसाइज में प्राणायाम के साथ राममूर्ति दंड बैठक आदि विषय पर लिखी राममूर्ति के पटशिष्य प्रो.दयाशंकर पाठक गोल्डमेडलिस्ट की पुस्तक के कुछ लेख इस पीडीएफ लिंक पर आप पढ़ सकते है।
https://drive.google.com/file/d/1WlcQPB_xPqJfaRtuB2GHiqXoN02UujyN/view?usp=drivesdk
