!! प्रसिद्धि और ओशो !!
[जन्म-11-12-1931-पुण्यतिथि-19-1-1990]
पर प्रसिद्धि का सूत्र क्या है?ये गूढ़ कविता के माध्यम से बताते हुए,स्वामी सत्येंद्र जी कहते है की…
पर में ढूंढे अपना लक्ष्य
और पर का करता ध्यान।
पर में कितने पर हैं और
यही पर से सिद्धि पाता मान।।
बस कोई भी कुछ भी कहे
या कोई नहीं कहे कुछ।
उस दूजे के कुछ को पकड़
बना दे सच या तुच्छ।।
जो जाने इस कला को
वही प्रसिद्धि पाता।
लोग देखते उसी की और
अब ये किसकी किस से लगाता।।
यो बन आँख की किरकिरी
और बन जन वाणी रोष।
सदा जिव्हा पर शब्द बन
वही रहता प्रसिद्धि तोष।।
निज मैं भी पर में जीये
निज भूख मिटे पर पेट।
निज नहान सदा पर भावना
निज प्रसिद्धि ले पर भेंट।।
तोड़ मोड़ पर व्याख्या
चुरा सदा पर मान।
ह्रदय ऊँगली उठे पर
कटाक्ष करे सदा पर ज्ञान।।
इसने कही उसने कही
किसने कही पर रटन्त।
तूने कही अरे क्या कही
यही तो कही मैने पर किवदंत।।
पर शोधन निज बोधन
पर निरक्षण स्वं का शांत।
पर पग पीछे रज ले चले
निश बने यो प्रातः क्रांत।।
जितने पर हो उतनी ‘ओ’ गूंज
जितने पर उतना हो ‘शो’।
यही मंत्र ‘पर’ मंत्र दे
पर सिद्ध वही मैं हो।।
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
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