अज्ञान अमावस्या से ज्ञान पूर्णिमाँ तक

अज्ञान अमावस्या से ज्ञान पूर्णिमाँ तक..इस कवित्त्व के माध्यम से जनसंदेश देते हुए स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी बता रहें है की- अपने को जानो, अपने में छिपे सत्य को ज्ञान से उजागर कर सको..

जिस पद प्राप्त करते हुए भी
हो रहे इंद्र सहित सब देव दीन।
और दुखित सदा रहते है सुख रख
कोई नव ना छीन हो इस पद आसीन।।
इसी लालसा में देव सुख में भी
सदा ही दुःख को पाते है।
और जप तप करते पद निर्भयता को
सदा त्रिदेव दासता पाते है।।
इसी और मानव भी अग्रसर
सुख नाम सदा दुःख संग्रहित करता।
दूजे थाली में अधिक है मुझसे
इसी लालसा में व्यग्रीत रहता।।
सौंदर्य उपासना नाम के पथ पर
देव दनुज मनुज पथिक बने है।
इस अंतहीन सौंदर्य मारीचिका
के बंधन में क्रंदन करते व्यथित घने है।।
आश्चर्य यही तो है,अंजय “मंजय”
आँखे खुली, नहीं दिख रहा सुगत्य।
चले जा रहा बन ज्ञानी अभिमानी
एक अनंत गुह्य अंध के बंध पथ।।
जिसका छोर एक है
जहाँ खड़ा था,वहीं आ हुआ खड़ा।
इस चक्रव्यूह को तोड़ने का रख स्वप्न
बन एक नव अभिमन्यु घिरा पड़ा।।
सुख बन बाण भेदते जीवन उसका
फिर भी देखो साहस सहस उसका।
ज्ञान नाम अज्ञान बटोरा लड़ने
नहीं तोड़ पाया चक्रव्यहू,अनंत जीवन मृत्यु का।।
दुखित थकित हो चूका हूँ,कह ‘मैं’
नित नव करता जीवन परिवर्तन।
क्या कोई नहीं है,एक मेरा भी
जिसे ध्या प्रेम का हो अतिवर्धन।।
इसी अर्थ को पकड़ता कोई
मनुष्य करता अविरल अश्रुपात।
ह्रदय वेदना असहाय हो उठती
तब कुछ पाता सत्य सुसाथ।।
तब वो ताड़ता,ठहरा द्रष्टि कर एक
और देखता एक से बनते अनेक।
और आभासित से भासित को पाता
और अंत में गाता,ये अनेक में हूँ मैं ही एक।।
तब जान उठता,सभी भोगों के पीछे
मेरा ही एक और दुजापन है।
वो दूजा मेरा ही प्रतिरूप अधूरा
उसे अपनाना मेरा प्रेम का अपनापन है।।
और तब स्थिर हो जाता स्वयं में
स्थित होकर स्वयं को पाकर।
यो मिट जाते सभी आश्चर्य सदा
अहम सत्यास्मि सर्वत्र सदाकर।।

स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
Www.satyasmeemisson. org

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

Scroll to Top