शव साधना का रहस्य


ये बहुत पुरानी सन् 90 के प्रारम्भ की बात है मेरे पास एक भक्त वर्मा जी जो सुनार का काम और सप्ताह में एक दिन पैर में नसों के दर्द निवारण को पैर की ऊँगली में ताम्बे का छल्ला पहनाते थे और डॉ नारायणदत्त श्रीमाली जी से दीक्षित थे यो इनके यहाँ तंत्र मंत्र विज्ञानं पत्रिका आती थी और ये उसके अनुसार छत पर एक अलग कमरा था उसमें ये त्राटक और तंत्र क्रिया करते थे (उसे मुझें ले जाकर दिखाया था) पर इन्हें कोई लाभ नही हुआ इन भक्त का चित्र बाद में मेरी “योग एवं प्राणायाम” में छपा था तो ये मेरे पास एक भक्त इनका भांजा राकुमार वर्मा धनोरा वाले के साथ आये इन्हें लगता था की इनके भाई को किसी शत्रु ने श्मशान की तांत्रिक क्रिया से मारा है यो ये जोधपुर से जुड़े उस समय नारायण दत्त श्रीमाली के शहर में अनेक भक्त थे जो ठीक इन्हीं की तरहां परी साधना आदि करते हुए निराश होकर थक चुके थे जो बाद में सही ज्ञान पाकर यहां जुड़ गए तो इन भक्त को श्मशान और शव साधना की क्रिया सिखने की बड़ी इच्छा थी इस सम्बन्ध में ये श्रीमाली की पुस्तके पढ़ जोधपुर गए थे पर वहाँ कोई प्रयोगिक ज्ञान नही मिला और भी तांत्रिकों से मिल काफी धन लुटाया और निराश हुए जब ये यहाँ दैनिक सत्संग में आने और ज्ञान पाने लगे तब एक दिन बहुत से तंत्र और श्मशान व् शव साधना के जिज्ञासु भक्त बेठे थे की गुरु जी आज इसका रहस्य बताओ तब मैं बोला की मेरे द्धारा साधनगत बात पहले तर्क से सुनो- और तब वर्मा जी की घरेलू तंत्र साधना के विषय में मेने अन्तर्द्रष्टि से बताया की तुम्हारी पत्नी तभी से बीमार है जब से तुमने घर में तन्त्र की सिद्धि को पूजाघर में स्वयं आसन निर्माण कर बनाया है वो बोले हां और तुम्हे अनेक आभास अपने आसपास किसी के होने का होता है और अधूरे पर सच्च सपने आते है बोले हाँ और रास्ते में कई बार कुछ धन पड़ा मिला जिसे तुमने उठा लिया और पूजा ही में उपयोग किया बोले हाँ और अचानक एकांत में फुसफुसाती आवाज आई तुम्हारा नाम लेकर की जा भाग जा.. बोले हां ऐसे ही अनेक बाते बताई तब मैने इस साधना के सम्बन्ध में जिज्ञासा शांत करने को अब ज्ञान कहना प्रारम्भ प्रश्नो के साथ किया की पहले वर्मा जी ये बताओ की तुम जिन्न वशीकरण साधना करते हो तो प्रेत और जिन्न में क्या अंतर है? और वे कहाँ रहते है? वे बोले की ये जिन्न या बेताल उच्च स्तर की योनि के सूक्ष्म शरीरधारी होते है और ये श्मशान या नितांत एकांत में रहते है मैं बोला ये तो इनके नामों से ही अंतर दीखता है कुछ और बताओ? और तुम उन्हें कहाँ सिद्ध कर रहे हो घर में? तब तुम तो रक्षा कवच से घिर कर बच गए पर औरों को क्या? और उनका क्या उपाय किया है? और मानो तुमने घर को मंत्रों से कील भी दिया हो तब जो भी और जिस भी शक्ति आवाहन कर रहे हो तो वो कैसे घर के कीलन को तोड़कर केसे तुम्हारे पास तक आएगी? ऊपर से ताबीज पहन रखा है चाहे वो उसी मंत्र और उसी जिन्न या प्रेत या उपदेव का हो तो वो क्या गुरु ने अपनी शक्ति से सिद्ध कर आकर्षण को दिया है? यदि दिया है तो जब दिया तभी उस ताबीज के पहनते ही किसी की उपस्तिथि लगी या नही? यदि नही तो वो ताबीज क्या आकर्षण करेगा? तब अनेक साधना के बारीक़ प्रश्नों के उत्तर नही दे पाने पर वे बोले गुरु जी आप ही विस्तार से बताओ हमें भी पता नही है और पता चलना चाहिए तब मैं बोला साधक को पहले साधना के प्रश्नों पर अवश्य विचार करना चाहिए तभी उत्तर मिलता है यो जब श्मशान शब्द है और शव शब्द है तब इन्हें समझों की ये कहाँ मिलते है? श्मशान एकांत में है और प्रेत सामान्य व्यक्ति के सूक्ष्म शरीर को कहा जाता है और ये जिन्न या बेताल या ब्रह्मराक्षस या द्रष्टि पिशाच या कर्ण पिशाचनी आदि जो नाम है वो सब वो लोग है जिन्होंने किसी को वश में करने की तमोगुणी साधना की है और अहंकार और क्रोध और लालच से भरे इनके ये सूक्ष्म शरीर होते है जो जीते जी लोगों को पूजापाठ के नाम भक्त जी बनकर धन के लालच में अपनी सिद्धि का उपयोग देते है यो इनके कर्म और भी अशुद्ध होते है ये आजीवन और भी प्रेतों को जिन्नों या ऐसी ही शक्तियों की अपने वश में करने को नितांत एकांत घनघोर श्मशानों में साधना करते मृत्यु को प्राप्त होते है चूँकि इन्की मूलाधार तक कुण्डलिनी जाग्रत होती है जिससे इनमे आकर्षण करने शक्ति प्राप्त हो जाती है यो ये प्रकर्ति के आकर्षण और विकर्षण क्षेत्र के मध्य में जो सूक्ष्म स्तर पर तम गुण का क्षेत्र है उसमे ध्यान करते करते फंस जाते हैं जिन्हें साधक लोग लोक बोलते है यो ये वहाँ से ऊपर जाना या नीचे आना चाहते है यो या तो कोई इनसे बड़ा साधक मिले जो इन्हें आवाहन करके अपने से जोड़कर अपने अच्छे कर्मों के सहयोग देकर इनसे शुभकर्म करता कराता हुआ इन्हें भी शुभकर्मो का फल दे जो की कोई ऐसा साधक बिरला ही होता और मिलता है और शेष इनसे निम्न स्तर के साधक होते है वे इन्हें जो की ये उनसे अधिक ताकतवर होने से कैसे अपने वश में कर सकता है बताओ? अर्थात नही कर सकता है और बेशक तुमने रक्षाकवच मन्त्र अपने चारों खींच लिया हो और श्मशान में बेठे हो और सोचो इन्हें अकर्षति करने और अपने वश में करने का मंत्र पढ़ रहे हो जिससे इनकी सूक्ष्म शरीर में रहकर साधना करने में उसे खण्डित विध्न पाते है तब ये क्रोधित होकर साधक पर हमला करते है जब ये तुम्हारे पास आएंगे तो देखेंगे की तुमने रक्षाकवच मंत्र से रेखा खींच रखी है ये हंसेंगे की ये सब तो ये करके भी सिद्ध हो चुके अब तुम्हे मजा चखाएंगे यो तुम्हारा रक्षाकवच तोड़ने का मंत्र इन्हें आता व् सिद्ध है क्योकि जब ये जीवित थे तब ये किसी के मारने के लिए उसका रक्षाकवच अवश्य तोड़ते है उसके गुरु के दिए सब ताबीजों को ध्वंश कर देते है तभी तो उसके शरीर में प्रवेश करते हुए उससे मनचाहा कार्य या उसे हानि पहुँचाते है यही तो इन्हें आता था वही तुम्हारे साथ करेंगे और इधर तुम ये सोचे बैठे हो की मैं तो रक्षाकवच से घिरा सुरक्षित बेठा हूँ ये अब तम्हें पकड़ लेंगे और आगे तुम जानते ही हो क्या होगा? यो गुरु का शिष्य की साधना के समय निकट होना अति आवश्यक है वही देख पाता है की सावधान अब शक्तियां आ रही है ऐसा ऐसा कर रही है और शिष्य की रक्षा करता हुआ उसे साधना कराता है।और यहॉ तुम या कोई भी साधक साधना घर पर करने से आपका सूक्ष्म शरीर का विकास होने लगता है तब तू प्रकर्ति के एक एक स्तर में प्रवेश करते हो यो अनेक सूक्ष्म सत्ताओं के दर्शन और सम्पर्क में आते हो या आती हो तब बड़ा भयंकर घटना होती है अनेक साधक काम विकारों से घिर जाते है जैसे मनवांछित व्यक्ति के साथ भोग करते देखना या उसी के रूप को धारण करते हुए ये ही सूक्ष्म सत्ताएं उससे भोग करती है चूँकि प्रारम्भ में साधक का मूलाधार चक्र ही खुलता है यो उसकी शक्ति दो भागों में बटती है बाहर के भोगों में और अंदर के भोगों में अब युवा अविवाहित साधक है तो उसे भोगवादी दिवस्वप्नो में घिर आनन्द पाते पाते साधना से भटक जाते है और गृहस्थी चरित्रहीनता का अनुभव और प्राप्ति के अनुभव के बीच द्धंद में फंसकर साधना छोड़ बैठते है यहाँ ये बड़ा लम्बा और गम्भीर विषय है यही यथार्थ ब्रह्मचर्य क्या है वो ज्ञान गुरु बताता है यो गुरु की प्रत्यक्ष आवश्यकता है यो यहाँ जाने की उस समय ये सूक्ष्म सत्ताएं साधक के शरीर का सम्पर्क लेकर अपनी वासना मिटाती है ये भी एक प्रकार की परकायाप्रवेश कला है जो ऊपर दी सत्तायें करती है बाद में साधक में इन्ही का वास होता है कुछ समय ये अच्छी आत्माए साधक के द्धारा जनकल्याण करती है और अधिकतर हानि ही करती है यो प्रत्यक्ष गुरु की बड़ी आवश्यकता है वही इन सबसे बचाता और सूक्ष्म लोको या चक्रों से अपनी शक्ति से ऊपर उठता चलता है ये सब आप अनेक सिद्धों जैसे विशुद्धानन्द परमहंस के चमत्कार कथाओ में पढ़ते है की वे ये चमत्कार ज्ञानगंज के योगियों और भैरवियों के साथ स्वयं के सूक्ष्म शरीर से उनके साथ सम्पर्क से करते थे तब स्थूल और सूक्ष्म शरीर एक हो जाता है यो जो इच्छित वस्तु मंगायी वह आती या जाती नही दिखेगी और इनके हाथ में आते ही दिखेगी लेकिन स्मरण रहे की वे वहाँ के पूर्वजन्म के साधक ही थे यो उनसे उनका सम्पर्क था आपका सम्पर्क नही होने का है इस विषय पर मेरा उनके वर्तमान शिष्य परम्परा-सिद्ध ज्ञानगंज-विशुद्धानन्द-गोपीनाथ कविराज-दादा सीताराम और ये एडवोकेट राधिकारमण श्रीवास्तव जो काशी के पंचकोशी क्षेत्र में कानन आश्रम में नवमुण्डी महासन की देखभाल करते है इनकी पत्नी अग्निकांड में जल गयी थी यो ये भी अब नही करते यो उनसे वार्ता का किसी और बार उल्लेख प्रमाण सहित करूँगा यो ना की तुम लोग सम्पर्क कर सकते हो यो ही गुरु शिष्य परम्परा होती है पूर्व के गुरु ही सूक्ष्म स्वरूप में शिष्य के दीक्षित शरीर में मंत्र के साथ प्रवेश करते हुए उससे सम्पर्क करते हुए सिद्धि अनुभव कराते है यो गुरु समर्पण अति आवश्यक है और अब रही शव साधना तो ये जानो की कौन सा शव साधना के कार्य में उपयुक्त होगा? क्योकि अकाल मृत्यु प्राप्त-मनुष्य द्धारा या किसी जीव के काटे के विष से-बदले के भाव से की गयी हत्या से-किसी भी प्रकार की अचानक दुर्धटना से-जल में डूब कर मृत्यु पाने से-या किसी मृत व्यक्ति को उसकी कब्र से उखड कर उसके विकृत शरीर आदि के शरीर में से साधना करनी है ये कौन चुनाव करेगा तुम अज्ञानी साधक या तुम्हारा गुरु तुम्हे करायेगा? और चालीस दिन कैसे वो शरीर कहाँ और कैसे सुरक्षित रहेगा? और उसके पेट और छाती पर कैसे घण्टों बेठे रहोगे? यो कितनी देर बेठना है आदि विषय कौन बताएगा? और साधना में एक क्रम से दूसरे क्रम तक कौन सा मंत्र मुख्य है किसके साथ किस मंत्र का मेल वैर आदि है कौन बताएगा? ये जानो तब जो केवल गुरु दे उसे छोड़कर जो भी अन्य चाहे भगवान के ही मंत्र क्यों न हो यदि करता है तो कभी सिद्धि नही पा सकता है तभी कहा है की- एक साधे सब सधे और सब साधे सब जाये।। साथ ही सिद्धासन का कहाँ निमार्ण करोगे-अपने घर पूजाघर में श्मशान की मट्टी+चिता की भस्म+हड्डियां और उसके ऊपर कौन से जीव के चर्म से बना आसन जो आज कहीँ नही मिलता है जैसे-रामकृष्ण परमहंस को उनकी गुरु भैरवी ब्राह्मणी ने दो पंचमुंडी आसन अभिमंत्रित कर बनाकर दिए थे वे एक पर जप ध्यान करते और एक पर यज्ञानुष्ठान आदि करते तो इन दोनों में भिन्नता क्या और कैसे है ये ज्ञान कौन देगा? घर पर स्वयं बनाया आसन में जो ऊर्जा उत्पन्न होगी वो आपके घर के सामान्य ऊर्जा शक्ति को भी बदल देगी यो उसमे रहने वाले अन्य सामान्य परिजनों की भी मानसिक ऊर्जा बदलेगी उसे कौन सम्भालेगा यो ही त्रिलंग स्वामी और वामाक्षेपा ने श्मशान में सेमल व्रक्ष के नीचे पँच मुंडी आसनों पर वर्षो बैठकर सिद्धि की थी और अंत में भी अधिकतर वहीं बैठते थे क्योकि जो मुंड है वही आत्मा उनके शरीर का आसरा लेकर उनके जपे मन्त्र का अर्थ और रूप धारण कर देवी या देवता बनती है और दर्शन देती चमत्कार करती है तब इन्हें सम्भालने में उनकी स्थिति विक्षिप्त सी बनी रहती थी तभी वे पागलो का सा व्यवहार करते थे और वे ब्रह्मचारी बने थे तुम गृहस्थी बन जब अपनी पत्नी से भोग करोगे तो तुममे समायी शक्तियां भी उससे से सम्पर्क में आ जाएँगी विशुद्धानंद को तो गुरु लोक से शक्ति मिलती थी यो वे ऐसे समय में हट जाती थी तभी ये भोग कला जब कैसे करनी है इसे कौन गुरु बताएगा यही तो वे ज्ञान गंज इतने वर्षों में सीख कर आये थे यही श्यामाचरण लाहड़ी की गृहस्थी रहस्य है और रामकृष्ण ने अंत में वे आसन तोड़ डाले थे और शिष्यों को क्यों नही कराये?एसे ही जिस मुंड पर तुम बैठकर साधना कर रहे हो उस मुंड की आत्मा ने जन्म तो नही ले लिया तब वो नही आएगी और नही लिया है तो कहाँ है इसे कौन बताएगा यो सिद्ध गुरु ही अपनी सिद्धि से शिष्य को ये सब बताता है तब वो उपयुक्त मुंड को स्वयं लाता है उसका पूजन कर उसे अपने सूक्ष्म सिद्धि सत्ता से जोड़कर शिष्य के सूक्ष्म शरीर से जोड़ देता है तब कहीं सिद्धि प्रारम्भ होती है यो ही पितरों की पूजा और आवाहन की साधना प्रारम्भ हुयी सिद्ध गुरु साधक के पितरों में से चुनकर उसका आवाहन कर उसे शिष्य के वश में करता है ऐसे ही पितृ पूजा साधना का रहस्य है अन्यथा इनकी की पूजा सिद्धि नही देकर साधक को विक्षिप्त ही करती है इस पितृ पूजा साधना के विषय आगामी लेख में ज्ञान दूंगा तब तुम सामान्य गृहस्थी कैसे करोगे यो व्यर्थ भ्रम त्यागों और सहज उपासना करो जो गुरु मंत्र जप ध्यान है वही बहुत कुछ कर देगा इस सब बातों को सुन वहां एक स्त्री पुष्पा ने कहा गुरु जी मैं बहुत इस तंत्र के चक्करों में बरबाद हुयी हूँ मुझे मार्ग दिखाओ मैं बोला पहले जो मेने कहा उस पर चिंतन करो फिर देखेंगे।
इस कथा से ये ज्ञान पता चलता है की जो भी साधना करो उसे पहले समझो और प्रत्यक्षवादी गुरु बनाओ प्रवचनकर्ता गुरु नही अन्यथा इस क्षेत्र में विक्षिप्त हो जाओगे।

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