दूसरी बार की समाधि अवस्था का अनुभव मुझे सांतवी या आठवी कक्षा में पढ़ती आयु के मध्य कहीं हुआ कुछ गर्मी सी थी तब हम प्रेम नगर में किराये पर रहते थे तब मुझे पूर्वत ही बुखार सा हुआ पिता जी ने उस समय प्रचलित किलोरोकिन की आधी गोली खाने को दी पसीना आया मुझे पुनः वही सतरंगी चक्र घूमता अपनी और आता दिखा उसी अवस्था में मुझे कुछ भय सा अनुभव हुआ साथ ही पेशाब आया तो मैं उठा का पास बने खुले में नल के पास जाकर बेथ गया मुझे पता नही तब क्या हुआ तब बाद में पता चला की मकान मालिकनी जिन्हें हम ताई कहते थे वे आई वो मुझे देखने आई बोली अरे ये यहाँ कैसे बेठा है इतनी देर से रात्रि का समय था तब पिटा जी बोले इस छेड़ना नही वे गए मेरा एक हाथ ऊपर को टँकी को पकड़े था और मैं टॉयलेट करने की मुद्रा में बेठा था तब मुझे उठा कर लाये और खटोले पर लिटाया व् गन्धक जलायी तब मुझे चेतना आई उसके अगले दिन में ठीक हो गया बाद के वर्षों में मुझे स्वाध्ययन से पता चला की ये मुझे पूर्वजन्मों में की तपस्या के सतरंगी उर्जात्मक शक्ति प्रवाह के आने पर और उसके मुझमे सामने के प्रभाव से मेरा शरीर बुखार सा और शरीर गिरा सा अनुभव करता था और जेसे ही वो शक्ति मुझमें प्रवाहित होती मैं स्वास् प्रस्वासहीन जड़त्त्व समाधि को प्राप्त हो जाता था इसी के चलते आगामी समय पर और भी गहन अनुभव हुए यो इस स्वसाधना जगत के अध्यात्म पथ पर मैं चलता चला तो भक्तों इससे ये पता चलता है सामान्य हो या पूर्वजन्म सिद्ध व्यक्ति उन सबको अपने पूर्वजन्मों के आधार पर अपने अपने शेष पाप और पूण्य बलों की एकत्र शक्ति जिसके नाम ज्योतिष में नवग्रह है जो आत्मा की सामर्थ्य का नाम ही है वो और उनका फल समयानुसार प्राप्त होते है यो सभी का साधना और परिणाम समय निर्धारित है ये नही की आज पूजापाठ या योग करना प्रारम्भ किया और सोचने लगे की अभी फल नही मिल रहा है अनन्त जन्मों के अनन्त वर्षो के कर्म और उनकी क्रिया प्रतिक्रियाओं के परिणामों को भोगने के उपरांत ही शुद्धाशुद्ध भक्ति और योग फल व् समाधी की प्राप्ति होती है हां ये ज्ञान जान कर आप अपने कर्मों के जो की अपने ही करें है उन्हें आप ही सुधर सकते है यो ईश्वर को दोष नही दे बल्कि स्वयं उन्हें जानकर क्रमबद्ध तरीके से करते जीवन में सम्पूर्णता पाये यही गुरु लोगों का जीवन दर्शन है।
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