31 जुलाई ऊधम सिंह शहीद दिवस


बैशाखी का पर्व था उस दिन
और भीड़ थी बड़ी नर नारी।
बच्चे खेल चहक रहे थे
तभी अंग्रेज आये शस्त्रधारी।।
आदेश दिया जाओ यहां से
नही तो चलें अभी बंदूक।
सजग तक नही हुए लोग थे
गरज उठी फिरंगी बंदूक।।
मच गया घोर हाहाकार जन में
सब भागे जान बचाने।
कूदे कुँए एक दूजे पर
पर ये महंगा पड़ा उन जाने।।
बच्चे बूढ़े युवा नर नारी
सभी मरे लग कर गोली।
लग गये ढेर मृत शरीर के
वाहे गुरु रब पुकारते बोली।।
डायर ने लगा ठ्ठाका
भर दिया जलिया का बाग।
चींख पुकारें शेष रह गयी
भरी दीवारे गोली के दाग।।
इसी ने जन्मा वीर क्रांति
ऊधम सिंह सिख्ख महान।
राम मोहम्मद सिंह आजाद
नाम रख चला बदले की ठान।।
बाइस साल बाद लिया था
इस घटना का प्रतिशोध।
छिपा ग्रन्थ के बीच रिवॉल्वर
पहुँचा रॉयल सोसायटी रख क्रोध।।
13 अप्रैल सन् 1919
को हुआ जलिया वाला कांड।
1934 में ऊधम सिंह पहुँचे
लंदन बदला लेने हत्याकांड।।
मारी गोली ओ डायर को
और कुछ लगी उसके मित्र।
बिन भागे डट वहीं खड़े रहे
कर कार्य पूर्ण शांत पवित्र।।
4 जून 1940 अपराधी इन्हें बनाया
इन पर हत्या आरोप गढ़ा।
और पेटनविले जेल ले जाकर
31जुलाई 1940 इन्हें फाँसी दिया चढ़ा।
फांसी चढ़ गया हँसते हँसते
और लगा नारा जय भारत माता।
शहीद ऊधम सिंह अमर रहेंगे
जन तन बन ह्रदय वीर गाथा।।

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