4 फ़रवरी 2019 को मौनी अमावस्या यानि सोमवती अमावस्या के विषय में उसके सच्चे अर्थ को स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी बता रहें है की…

4 फ़रवरी 2019 को मौनी अमावस्या यानि सोमवती अमावस्या के विषय में उसके सच्चे अर्थ को स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी बता रहें है की…

सत्यास्मि दर्शन कहता है की-सोम कहते है-अमृत को और वार का एक अर्थ है-वरण करने वाला।यो अमृत को वरण करने वाला सोमवार भावार्थ है।
और इस अमृत का अमावस यानि अंधकार से क्या सम्बन्ध है? यो शास्त्र कहते है की-मनुष्य अपने पांचो इन्द्रियों को अपने वशीभूत करने के लिए वेसे तो सप्ताह में एक दिन अवश्य ही अपने सभी कर्मों से विमुक्ति के लिए पंचइंद्रिय नियंत्रण रखना चाहिए-विचार और वाणी पर नियंत्रण हेतु मोन रखे,मल और मूत्र पर नियंत्रण को उस दिन निर्जला व्रत रखे,भोगों पर नियंत्रण को मैथुन नहीं करें,संसारिक परिवेश पर नियंत्रण के लिए एकांतवास करे और मैं कौन हूँ? मेरा जीवन और मृत्यु का क्या उद्धेश्य चक्र है? यो उस पर नियंत्रण को सभी अन्य पूर्व और वर्तमान के व्यक्तित्त्वों की उपासना त्यागकर केवल व्यक्ति स्वयं की आत्मा का ध्यान करें।यो इसी पंचव्रतानुष्ठान के अपनाने के कारण व्यक्ति अपने अज्ञान स्वरूपी अंधकार और काल पर नियंत्रण करता है और यही अज्ञान ही व्यक्ति के जीवन की अमावस्या कहलाती है।जो वर्ष में दो बार पड़ती है-श्रावण माह के शुक्ल पक्ष के प्रारम्भ से पूर्व
ज्येष्ठ-आषाढ़ माह की अंतिम अमावस्या-जिसे ‘दक्षिणायन’ कहते है और मकर सक्रांति से शुक्ल पक्ष के प्रारम्भ से पूर्व पूस माह की अमावस्या-जिसे ‘उत्तरायण’ कहते है।यो मनुष्य को वर्ष में पड़ने वाली ये दोनों उत्तरायण के सोमवार की अमावस्या और दक्षिणायन पक्ष के सोमवार की अमावस्या को अवश्य ही ये आत्म साधना करनी चाहिए,जिसके फलस्वरुप व्यक्ति को अपने जीवन के वर्ष भर के छः छः माह में किये विपरीत कर्मो के फलों का नाश होकर आत्म शुद्धि की प्राप्ति होती है!!
इस विषय में सत्य ज्ञान ये है की-प्रत्येक माह में एक पक्ष पुरुष शक्ति का है और एक पक्ष स्त्री शक्ति का है और दोनों का मिलन और उसका मध्य और उसका विसर्जन पक्ष उनके दिव्य प्रेम के पक्ष है और उसी मिलन बिंदु में स्त्री और पुरुष और उनका संयुक्त रूप बीज के निर्माण की स्थिति बनती है,यो पूर्णिमा का पक्ष स्त्री प्रधान पक्ष है और अमावस पुरुष प्रधान पक्ष है,यो ही इस अमावस को पुरुष यानि अपने पितरों को जप तप दान से उन्हें शक्ति भक्ति देकर मोक्ष प्रदान करने का विज्ञानं अर्थ है और स्त्री पूर्णिमा के पक्ष में स्त्री यानि अपनी माता के पितरों को तप जप दान से मुक्ति प्रदान करने का पक्ष भी होता है,मुख्यतया ये ऋण यानि पुरुष यानि अमावस और धन यानि स्त्री यानि पूर्णिमा,यो जो इनके अंतिम और सम्पूर्ण पक्ष दिवस यानि पूर्णिमा और अमावस को ध्यान भजन करता है तब उस मनुष्य के शरीर में ऋण और धन की प्राकृतिक शक्तियों का संतुलन बनकर उसे भौतिक और आध्यात्मिक शक्ति की उपलब्धि होती है,ये एक प्रकार का कुण्डलिनी जागरण का ही बाहरी या प्रकार्तिक स्वरूप घटना है,ये प्रकर्ति में इंग्ला यानि स्त्री शक्ति या पूर्णिमा और पिंगला यानि पुरुष यानि अमावस का प्रकाश है,यो इन दोनों दिवसो में मनुष्य को स्नान ध्यान और दान करने का शास्त्र विचार दिया है।और योगियों ने इन दिवसो में अपनी आत्मा का ध्यान करने को कहा है की-इन दिवसो पर अधिकतर ध्यान करने से साधक की इंगला और पिंगला नाड़ियों में मूलाधार से सहस्त्रार चक्र तक विशेष शक्ति का संचार और जागरण होता है,यो इन अमावस और पूर्णिमा के दिन,विशेषकर रात्रि के पक्ष में जप और ध्यान करने से साधक की कुण्डलिनी जागरण में विशेष साहयता मिलती है।यही दक्षिणायन यानि स्त्री शक्ति और इंगला नाडी और उत्तरायण यानि पुरुष या ऋण शक्ति या पिंगला नाडी का भी यही प्राकृतिक और कुण्डलिनी जागरण का योग अर्थ है।जो बाद के कालांतर में केवल औपचारिक पूजापाठ बनकर समाज में प्रचलित है और ना समझ में आने पर ये अज्ञान बन गयी है।यो ज्ञानी बनो और इन दिनों में अधिक जप और ध्यान करते हुए अपना कल्याण करो।

स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
Www.satyasmeemission. org

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