25 दिसम्बर को(श्री सदगुरू बोध-पुस्तक से-)सत्य ॐ गुरु चालीसा का अवतरण और मेरे आने का उद्धेश्य-दर्शन अनुभूति प्रसंग-

25 दिसम्बर को(श्री सदगुरू बोध-पुस्तक से-)सत्य ॐ गुरु चालीसा का अवतरण और मेरे आने का उद्धेश्य-दर्शन अनुभूति प्रसंग-

उस समय मैं अनेक योगिक प्रयोगों के कारण प्रकर्ति भंग विषयों और भक्तों के रोगों को अपने में धारण करने से बीमार और कमजोरी अनुभव करता हुआ विश्राम कर रहा था। तब दोपहर के ध्यान करते हुए
24 जुलाई 2003 दिन गुरुवार दोपहर को सबसे पहले सत्य ॐ गुरु चालीसा का अर्द्ध भाग का अवतरण हुआ।और इसका आधा भाग फिर 3 अगस्त 2003 रविवार को दोपहर में सम्पूर्ण हुआ था,जिसे एकत्र करके सत्य ॐ चालीसा आदि से पूर्व सबसे पहले छपवाया गया और भक्तों में सिद्धासिद्ध गुरु मन्त्र के साथ बांटा गया था और श्री गुरुदेव आरती का अवतरण भी 4/5-3-2004 गुरुवार को रात्रि में हुआ।इसके निरन्तर भक्तों में पाठ और पढ़े जानना प्रारम्भ हुआ।इस बीच मेरे पूर्वजीवन के शेष दिव्य मंत्रों के यज्ञाहुति द्धारा समापन क्रिया भी प्रारम्भ थी जिसे मैं उस काल में कर रहा था ताकि केवल सिद्धासिद्ध महामंत्र में इन सबको समाहित कर दू और भविष्य में भक्तों को उनके पूर्वजन्मों के भिन्न भिन्न अपूर्ण मन्त्रों को पूर्ण करने के अनावश्यक श्रम से बचाया जा सके और केवल एक ही महामन्त्र के निरन्तर जप ध्यान से उन्हें सर्व मन्त्रों और उनके भाव इष्टों के सहज ही दर्शन और अनुभूति हो कर उनको आत्मसाक्षात्कार की सीधी प्राप्ति हो यो ही अन्य मन्त्रों का मेरा यज्ञानुष्ठान का समापन को प्रारम्भ था। तब उसके उपरांत आगामी समय में- ये आत्मवतरण दर्शन मुझे 25 दिसम्बर 2003 ‘क्रिसमस’ की प्रातः 4 से 6:30 के मध्य ध्यान में दिखा था उससे पूर्व 24 को और इससे पूर्व भी नियमितता की तरहां अनेक भक्तों को उनके उपरोक्त मनोइच्छा-(दिव्य प्रेमानुभूति और खुली आँखों से ईश्वरानुभूति दर्शन) के दर्शनों के लिए उनका भाव शरीर का उदय करने के लिए उसके साथ अनेक स्वयांनुभूत दिव्य मन्त्रों की 3 माला गायत्री और एक माला रुद्रहनुमान व 11 माला गं बीज मंत्र तथा 11 माला मूझे स्वप्न में दिव्य त्रिकालदर्शन के लिए प्राप्त दो बीज मंत्र-सरस्वती और भैरव का बीज मंत्र और सात बार हनुमान चालीसा यज्ञाहुति के उपरांत भक्तों के आवागमन के बीच समयानुसार अखण्ड चालीसा और रात्रि में श्वास प्रश्वास के साथ त्रिकालज्ञ बीज मंत्र के जप किया और रात्रि के 12 बजे के महाक्षण साधना विज्ञानं को पकड़ कर 7 बार चालीसा पाठ करते में भावस्थ होने से जो आँख लगी तब उसी भावजगत में मेरे ह्रदय में स्वयमेव ही देवी श्लोक सर्व बांधा.. चलने लगा तब ये दर्शन हुए..की- मैं अपने गांव के घर के बाहर खड़ा हूँ तब देखा की एक हवाई जहाज हमारी हवेली के पीछे आकर रुका उसमें से एक शेख मेरे पास आया,और बोला की-तुम्हे फिर से चलना होगा,मेरी बेगम को समझने के लिए,वो फिर वही बेसमझी की बातें करने लगी है,ये सब सुनते हुए मैने देखा की हमारी हवेली में अनेक मनुष्यों जैसे पितरों की छाया आक्रति बाहर निकल कर हवाई जहाज में चढ़ने को उत्सुक है ये अनुभव कर मेने उस शेख से कहा-ठीक है चलूँगा,पर पहले तुम इन्हें इनके मनचाहे स्थानों पर छोड़ आओ।(उन्हीं दिनों में मेरे छोटे भाई ने अपनी पत्नी और माता जी के साथ गया तीर्थ पर पितरों का अनुष्ठान कराया था)तब वो बोला ठीक है अभी आता हूँ.अब द्रश्य बदला मैं और वो शेख एक महल की छत पर बेठे है,मैं उसकी बेगम को समझा चुका था,चारों और रेगिस्तान दिखाई दे रहा है,जैसे पुराना समय है तब वो प्रसन्न सा होकर बोला-की चलो आपको मैं यहाँ के सबसे बड़े नए खुले काफी हॉउस में कॉफी पिला कर लाऊ,तब द्रश्य बदलता है,मैं और वो कॉफी हॉउस में उस समय की सुंदर लकड़ियों से बनी कुर्सियों और मेज पर बैठे सामने आई कॉफी पी कुछ बात कर रहे है,की मुझे कॉफी कुछ अच्छी नहीं लगी, यूँ मैने उसे थूक कर फेंक दिया,जिसे देख वहाँ का मालिक नाराज सा होता बोला,की तुमने यहाँ थूक कर कितनी महंगी और बढ़िया कॉफी की बेज्जती की है, ये सुन वो शेख गुस्से में बोला.तू जानता नही किससे बात कर रहा है?ये अभी तेरे सहित इस कॉफी हॉउस को खरीद लेंगे..चल दूसरी बनाकर ला।वो डरा सा हो चला गया।तब वो मुझे अनमनस्यक सा देख. बोला की तुम अपने यहाँ की औरतों के लिए कुछ नहीं करोगे? ये सुन जैसे-मैं किसी पूर्व तंद्रा की स्थिति से जागा।और लगा जैसे मुझे अपना उद्धेश्य स्मरण हो उठा,यूँ उसकी व्यग्रता से मैं उठता हुआ उससे बोला.मैं चलता हूँ यहाँ की जेल कहाँ है? और मैं बड़ी शीघ्रता से इसी वाहन को स्वयं चलाता हुआ.जहाँ पहुँचा वहाँ मेरे सीधे हाथ पर पुराने समय की बड़े द्धारों वाली ऊँची इमारत खड़ी है उसके ऊपर लिखा है- महिला कारावास..उसे पढ़ता हुआ मैंने उसके दरवाजे से अंदर प्रवेश किया।तब देखा तो चारों और जेल की लोह सलाखें लगी अनगिनत कोठरी सी है उनमें अनगिनत स्त्रियां अपने घरेलू कार्य करती और कपड़े सूखती जीवन व्यतीत कर रही है।तब मेरे मुख से भावेश में इतना मधुर स्वर् में निकला की जितना ना मैं कभी उच्चारण कर सकता हूँ और ना ही सुना है-श्री राम..
और इसी नाम घोष से मेरे वस्त्र बदल गए.धोती और कुर्ता बन गए हलकी दाढ़ीयुक्त भाव प्रधान मुख हो गया और मेरे उस-श्री राम.,घोष की एक ही बार कहीं गयी स्वर ध्वनि को सदूर तक सभी स्त्रियों ने सूना.और मैं बिन इधर उधर देखे सामने की और आगे बढ़ते हुए,अपनी मन की आँखों से ये देख रहा हूँ की-कारावास के सारे लोह सलाखें लगे दरवाजे स्वयं खुल गए हैं और सभी स्त्रियां मेरे पीछे पीछे चली आ रही है। और मैं आगे बढ़ता सामने देखता हूँ जहाँ की एक खुले में घास के बड़े से मैदान की ईंटों से चौकोर घिराव है जैसा की प्राचीन किलों में फर्श के रूप में देखने और घूमने को मिलता है ठीक वेसा ही.वहाँ था और उसमें अनेक कमजोर से बंदर भूमि पर मूर्छित अवस्था में लेटे है, मैं उनमे से अनेको को पार करता हुआ और श्री राम बोलता हुआ एक मोटे पर कमजोर बंदर के ऊपर से गुजरा.मेने उसे नीचे अपने पैरों से लांघते हुए देखा और उसने मुझे देखा।और सामने जाने पर मुझे छोटे पेड़ो के बीच छोटे से तीन मन्दिर जो मूर्ति रहित है उन्हें देखता हुआ सारा द्रश्य लुप्त हो गया।मैं इसी अनुभूति के अनुभव से ध्यान से चैतन्य हुआ और उठ कर विचार करता आश्रम के ताले खोलता हुआ चाय बनाने चला गया। तब तक कोई विशेष बात नहीं लगी की जब मैं शौच को अपने घर के शौचालय में गया और शौच करते में इसी विचार को करता हुआ की आज कल तो मैं ये जप नही कर रहा हूँ? क्या अब मुझे ये ध्यान में उच्चारित श्री राम.,जपना चाहिए? क्या इससे मुझे मेरा उद्धेश्य प्राप्त होगा? ये विचार से मैने श्री राम जपता शौच से निवर्त होकर ज्यों ही दरवाजा खोल बाहर को पैर रखा तो मेरे बाहर जाते पैर के नीचे ठीक वेसा ही मोटा पर कमजोर सा बंदर वहाँ लेटा था उसके ऊपर से मैं गुजरता हुआ श्री राम बोलता गुजरा और हम दोनों की दृष्टि मिली.. यही अनुभव का स्मरण होने पर बड़ी जोरो से मेरे अंदर कम्पन हुआ..अरे ये ही तो मैने प्रातः देखा था।तब दोपहर को एक भक्त रीमा भी यज्ञ करने आ गयी और उसे मेने उसे बताया और श्री राम..से यज्ञाहुति दी पर मुझे इसके करने से कोई ना तो आनन्द आया और ना ही कोई अन्य अनुभव अनुभूति हुयी।तब मैने ये जप छोड़ दिया।


परन्तु इसके अनेक दिनों उपरांत मुझे ये सिद्धासिद्ध महामंत्र का स्वत प्रेरणा वश आत्म स्फुरण हुआ।और ये सत्यास्मि धर्म दर्शन का घनघोर चिंतन का क्रमबद्ध स्वरूप विषय लेखन आदि का उद्भभव होना प्रारम्भ हुआ जिसके विषय में आगे अनेक सत्यास्मि मिशन की खोजों स्त्री कुण्डलिनी शक्ति आदि के दर्शन और अन्य साधनगत प्रसंगों में कहूँगा।

यो 25 दिसम्बर को मेरे सत्यास्मि मिशन और इस विषय के सम्बंधित सभी अन्य समस्त अन्वेषणों को प्रकट करने के दिवस के रूप में ध्यान दिवस के रूप में भक्तों द्धारा अपने अपने स्थानों पर ध्यान यज्ञ करते हुए मनाया जाता है।

स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
Www.satyasmeemission. org

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

Scroll to Top