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गुरु पूर्णिमा पर विशेष ज्ञान,,की गुरु बनाने के लिए शिष्य की सही मानसिकता क्या होनी चाहिए,वे महत्त्वपूर्ण ज्ञान बिंदु क्या है?आओ जाने गुरु पूर्णिमा ओर गुरु शिष्य का अर्थ बता रहें है स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी

गुरु पूर्णिमा पर विशेष ज्ञान,,की गुरु बनाने के लिए शिष्य की सही मानसिकता क्या होनी चाहिए,वे महत्त्वपूर्ण ज्ञान बिंदु क्या है?आओ जाने गुरु पूर्णिमा ओर गुरु शिष्य का अर्थ

बता रहें है स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी

गुरु पूर्णिमा मनाने का अर्थ

गुरु माने ज्ञान और पूर्णिमा माने उस गुरु ज्ञान के थ्योरिकल ओर प्रक्टिकल यानी प्रमाणिक 16 प्रकार के ज्ञान के अपनाने ओर उस पर चलने से होने वाला जीवन का सोलह प्रकार का सुख नामक आत्मप्रकाश की प्राप्ति होना ही गुरु पूर्णिमा व इसे मनाना अर्थ है।

ओर शिष्य क्या है और शिष्य बनने के कौन से गुण होने चाहिए आओ जाने,

शिष्य का अर्थ है-शि यानी शीश मष्तिष्क ओर ष्य माने उस मष्तिष्क के द्धारा होने वाले या लिए जाने वाले मनुष्य जीवन के दोनों पक्षो के सभी सांसारिक ओर आध्यात्मिक प्रश्नों का यथार्थ उत्तर जानकर उन्हें अपने जीवन मे अपनाना ही शिष्य होना अर्थ है।

गुरु का अर्थ व गुरु के तीन प्रकार-
गुरु यानी ग माने गंतव्य यानी जीवन का लक्ष्य ओर उ माने उर्ध्वता उच्चता,र माने रमित होना और उ माने उतारना धारण करना,यो गुरु वह है,जो जीवन के भौतिक और आध्यात्मिक दोनो पहलुओ का समस्त ज्ञान और कर्म जानता है उसके जीवन का उच्चतम आदर्शो को अपने जीवन मे रमित यानी उतारकर अपनाकर जीता और वही ज्ञान अपने पास आयों को देता है।

1-जो केवल किसी एक पंथ विशेष का अनुयायी हो,वो उस पन्थ के सिद्धांतों का अनुयायी होता साधनारत है,प्रचारक प्रसारक है।ये तृतीय श्रेणी का गुरु स्तर है।यानी उच्चकोटि का साधक गुरु है।
2-जो इसी पूर्वत गुरु की व शास्त्रज्ञ ध्यान ज्ञान विधि के द्धारा आत्मसाक्षात्कार के उच्च पथ पर अग्रसर है और उसकी प्राप्ति के अपने अनुभव से शिष्यो को उस पथ पर चलने का ज्ञान देता है।ये उच्चकोटि के सन्त गुरु है।
3-जो बिन गुरु के स्वंयम्भू गुरु है,जो किसी बंधन मान्यता के बंधन में नहीं मुक्त है ओर पहलो ने क्या कहा और क्या कहते है उन्हें नहीं कहकर केवल जो उपस्थित है उसे सहजता में कह बताकर और उसी मनुष्य की सहजता के अर्थ के ज्ञान से दूसरे को सहजता को अपनाते हुए मुक्ति का ज्ञान और ध्यान का सही मार्ग बता दिखा कर स्वयं को मुक्त करने की ओर अग्रसर करने की ओर प्रेरित करता है,यही सर्वोत्तम मुक्त गुरु है। इस गुरु को ही अपनाना चाहिए।

अब शिष्य मूल रूप से कितने प्रकार के होते है ये जाने,
दो प्रकार के शिष्य होते है,आप चुने की, आप इनमे से कौन से प्रकार के शिष्य है

1-एक वो जो पूरी तरह से गुरु जी को मानते है।
जो अन्य सभी धर्मों का आदर करते हुए केवल ओर केवल इधर उधर के सभी देवी देवतावाद की पूजा आदि नहीं करते हुए केवल अपने ही गुरु के दिये ज्ञान को समझते ओर उस पर विश्वास करते हुए मान्यता करते है जो इस प्रकार से की,सत्यास्मि मिशन के शिष्य का अर्थ-
जो गुरु जी द्धारा दिए गए व बताये गए-गुरु मंत्र-,सत्य ॐ सिद्धायै नमः को जपते है।
और नियमित रेहीक्रियायोग करते है।
और सत्य ॐ पूर्णिमा चालीसा व सत्य ॐ गुरुदेव प्रार्थना चालीसा ओर श्री सत्य ॐ गुरु चालीसा का नियमित पाठ करते है।
तथा हर माह अपना गुरु आश्रम सेवा कार्य के लिए अधिक से अधिक दान करते है।
ओर नियमित अपने सत्यास्मि धर्म ग्रन्थ का पाठ करते है।
आश्रम के लगभग सभी कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर सेवा करते हुए और उन्हें कराने में पूर्ण सहयोग करते है।
ओर अपने आश्रम सिद्धांतों के प्रचार प्रसार के लिए उन सभी सामाजिक व्यक्तिगत साधनों के उपयोग के द्धारा प्रचार प्रसार करते है-जैसे कि-
अपने गुरु मंत्र को व उसके सम्बन्धित उपदेशो को अपने वाट्सऐप स्टेटस पर सदा लगाए रखते है।
अपनी ओर से गुरु चालीसा को आश्रम से खरीद कर,अन्य जनसमाज लोगो मे बांटते या बंटवाते उसे समझाते है।
अपने पूजाघर में ओर अपने ड्राइंगरूम आदि में बड़ा गुरु चित्र लगाते है।ताकि अन्यो को भी पता चले कि,हमारी ज्ञान मान्यता क्या ओर किस पर है।
जो गुरु पूर्णिमा व्रत आदि को मनाते है।

अब आते है दूसरे प्रकार के मान्यता रखने वाले भक्तों पर-

ये वे भक्त है जो कि,
सभी देवी देवताओं की मान्यता करते हुए यहां का गुरु मन्त्र लेकर भी जपते है,पहले वे पूर्व के जपो को करते है,ओर वो कम या ज्यादा इस पर निर्भर है कि,उन्हें सभी देवी देवताओं के मंत्र व चालीसा,व्रत आदि करते हुए कितना समय बचता है,तब यहां गुरु जी से प्राप्त गुरु मंत्र को जपते है।
ओर ये भक्त-न कोई वट्सऐप स्टेटस पर गुरु मंत्र लिखते है और न ही गुरु का चित्र अपने पूजाघर में रखते है और न अपने घर ऑफिस के ड्राइंगरूम आदि में लगाते का की,किसी को पता नहीं चले कि,हम उन गुरु जी मानते है।
न श्री गुरु की दी चालिसाएं व ना ही सत्यास्मि धर्म ग्रन्थ अपने पूजाघर या घर मे रखते हुए उसका पाठ करते है।
ना ही समय पर आश्रम सेवा को दान भेजते है और यदि भेजते है तो थोड़ा बहुत भेजते है।
क्योकि अन्य स्थानों पर जाने और वहां भी दान करने पर उन्हें गुरु आश्रम को दान भेजने पर कम ही धन का प्रतिशत बचता है।
सभी ओर से कृपा बटोरने की नीयत होती ओर सदा रखते है,की,जाने किस गुरु देवी देवता की कृपा उन्हें मिलती रहे।यो उन्हें गुरु पर कम श्रद्धा विश्वास होता है।
ओर जो केवल मनोरथ पूर्ति को ही अपना छोटा मोटा दान करते है।
कार्य सिद्ध हुआ तो गुरु जी से जुड़े है अन्यथा गुरु जी को ही दोषी सिद्ध कर अन्य स्थानों पर चले जाते है,फिर कई साल बाद लौटकर वापस गुरु जी के पास आकर जताते है कि,गुरु जी पहचाना मुझे,बहुत पहले आया करता या करती थी।नही पहचानने पर या मतलबी कहने पर तर्क धरते हुए बहस करने लगते है।
तो अब सबसे पहले गुरु बनाने ओर उनसे लाभ पाने के लिए खुद विचार करें की,इन सब महत्त्वपूर्ण पाइंटों पर की,आप इन भक्तो में कहां है?
ओर फिर इन्ही सबको चुनते हुए उन्हें अपने जीवन से एक एक करके घटाते हुए,अपने अंदर एक एक गुण पैदा करते हुये शिष्य बनने की ग्रहणशीलता बनाये ओर सम्पूर्ण लाभ पाएं ओर कहलाये की,

एक साधे सब सधे
सब साधें सब जाए।
एक गुरु एक मंत्र विधि
जो धयाये सब पाए।।

ओर तत्कालिक उदाहरण:-

जाने आप कहीं इस स्तर के भक्त तो नहीं..

अभी महामारी के चलते इस गुरु कृपा के अनेक भक्तो के प्रत्यक्ष उदाहरण है,
इस महामारी के प्रभाव में आने पर और उसके उनके ऊपर ये प्रमाणित होने पर की,उन्हें ये महामारी लगी है तो,उन्होंने अपने घर अखण्ड ज्योति जलवाई ओर अखण्ड गुरु मंत्र के जप किये और दान भेज गुरु पर पूरी आस्था बनाये रखी,ओर उस रोग की दवाई खाई ओर पूर्ण स्वस्थ्य हो गए और श्री गुरु जी को इस महाकृपा पर धन्यवाद दिया।
ओर जो श्री गुरु को त्याग चुके थे,केवल विपदा में आने पर ही जुड़े ओर गुरु मंत्र का जप भी न विशेष खुद नहीं किया और न रोगी से कराया या रोगी को कराने में प्रेरित किया।न ही गुरु कृपा अभिमन्त्रित पढा हुआ गंगा जल उसे पिलाया या खुद पिया ओर बस तत्कालिक उपाय किये तो वही लोग इस महामारी की चपेट में आकर तन धन हानि को प्राप्त हुए और फिर श्री गुरु को ही दोष देते कमी निकालते कहते है की,अरे हमने ज्योत भी जलाई,खीर भी उतारी ओर जो बना थोड़ा दान किया,पर कुछ नही हुआ।
यदि ऐसे लोगो को गुरु जी कह देते है कि,जाओ यहां से तुम अब नही बचोगे,अब केवल मतलब से याद आ गया और मतलब से उपाय कर रहे हो और जब तुम्हे अपने कर्मो को बार बार ये कह चेतावनी दी कि,अरे,आश्रम आया करो,जप तप सेवा किया करो,तब तुम्हीं लोगो ने गुरु आज्ञा की घोर उपेक्षा की थी और कहा था कि,अजी जितना करेंगे उतना पाएंगे,ओर हम पर तो इतना ही बनता है और जब गुरु जी को भक्तो के कष्टों से कष्ट आने पर,कोई सेवा सत्कार नहीं करने पर आप भक्तो ने कथन कहे कि,अरे गुरु जी,समय ही नही मिलता है,कहां से आये आपकी सेवा को।
तब ये सुन गुरु जी ने कहा कि,भई जब तुम मेरी आज्ञा पालन करते ही नहीं,तो तुम्हारे ओर मेरे विचार मिलते ही नहीं है,तब तुम्हारी यहां आने की जरूरत ही नहीं है।तब ये कहकर चलते बने की,ठीक है गुरु जी,हमे तो आप केवल अपनी मनोकामना से जुड़े सामान्य भक्त माने।
अब फिर मुसीबत आयी तो,फिर चाहते है,चमत्कार हो।
तो कैसे हो,
न तप जप सेवा,न दान।
कैसे हो चमत्कारिक कल्यान?

तो आओ चिंतन करें और अपने जीवन को गुरु ज्ञान ध्यान से पूर्ण करें।

यो स्मरण रहे,आप अपनी आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति की इच्छा से या सांसारिक मनोकामनाओं की प्राप्ति को ही गुरु से जुड़े हो,न कि गुरु गए तुम्हारे पास,इन मनोकामनाओ को देने,यो शिष्य का अधिकार नहीं कि,वो अपने कर्मो के परिणाम पाने पर गुरु को दोषी ठहराए।
गुरु अपने शिष्य के कर्मो को शोधित करने का एक सटीक उपाय मार्ग बताकर उस पर चलने को कहता प्रेरित करता है,वो दबाब नही बनाता है,उसे स्वेच्छित छोड़ता है,यो जो शिष्य गुरु के बताए उपाय को सही से पूरा करता है,वही कल्याण पाता है और जो गुरु कहे में, ना नुकुर करता,केवल अपनी मर्जी चलाता है,वो अपने उसी ना नुकुर के दोष का बुरा फल पाता है,यो गुरु को या ईश्वर को दोष देना और भी बुरा परिणाम पाने का कर्म करना है तथा और भी देर सवेर बुरा फल पाता है।
अधिकतर गुरु अपने कर्मो को काटकर ही सिद्ध होता है,वो जब अकर्मी शिष्यो के कर्मो से जुड़ता है,तब उसी का बुरा फल कष्टो के रूप में स्वयं पाता है यो, शिष्यो को सदा गुरु से जुड़कर पुण्यवर्द्धि करते रहकर स्वयं भी ओर अपने गुरु रूपी अपने जीवन को सुखी बनाने वाले सहायक को भी अपने अतिरिक्त जप तप दान के द्धारा पुण्यबल से जोड़े रखना चाहिए।

आओ इस गुरु पूर्णिमा पर सच्चे शिष्य बने।

अबकी बार की श्री गुरु पूर्णिमा पर्व आश्रम में इन्ही विषयों पर यहां सत्यास्मि परिवार से जुड़े सभी भक्तों से पूछ कर,उनको ये ज्ञान मिल कर मनेगी की,वे इस गुरु शिष्य परम्परा में कहाँ पर है,तो तैयार रहे अपनी बारी आने पर प्रश्नों का उत्तर देने को ओर बनने को सच्चे शिष्य,,

ओर ये भी ज्ञान सुने गुरु बनाने के बाद शिष्य को क्या करना चाहिए

ओर गुरु दीक्षातत्व कविता

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
www.satyasmeemission.org

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