!!हिम्मत-सत्यास्मि ज्ञानकविता!!
इस सत्संग ज्ञान कविता हिम्मत के माध्यम से स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी इस प्रकार से कहते है कि,
हिम्मत मतलब बिन हिमायती
बढ़े भेद जो लक्ष्य।
अच्छा बुरा कर द्विपक्षीय चिंतन
फिर चले निडर हो एक पक्ष।।
कोई कितना उसे डराए
परम्पराओं की देकर दुहाई।
ओर रोके उसके बढ़ते कदमों को
कह तू चढ़े अभिमान की खाई।।
इन सब छोड़ कथित हिमायती
ओर कर गर्जन इस सिंह घोष।
यदि मेरे मुक़द्दर लिखी मौत पराजय
तब भी लड़ूं सच्च को कर पोश।।
मरना जीना शुभ अशुभ कर्मफल
यो शुभ कर्मों का पकड़ू पल्ला।
निरहि असहाय बन जीवन नहीं जियूँ
नहीं मचाऊ कायर बन हल्ला।।
यो जो बने वो कुरुं मैं अच्छा
ओर करूँ शुभ कर्म की पहल।
नहीं चाहत कोई संग दे मेरा
बस मेरे प्रबल कदम हो दहल।।
यही संकल्प ले जो चलता है
ओर ढलता इस अन्तरपुकार।
वही हिम्मत रस से भरा पी प्याला
कहलाये हिम्मती नर और नार।।
यो हिम्मत आती पंच नियम रख
सत्य अहिंसा ब्रह्मचर्य बल।
अस्तेय अपरिग्रह के पथ चलकर
मिलता हिम्मत बन आज ओर कल।।
यो सदा अपने को जांचों
ओर चिंतन करो अपने सब कर्म।
उन्हीं में आज भविष्य मिलेगा
बनकर हिम्मत का गौरवशाली मर्म।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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