No comments yet

अपनी नांक ओर नाभि व अंगुठे एड़ियों में लगाये सरसों का थोड़ा तेल और पाये रोग प्रतिरोधक अद्धभुत प्रकार्तिक स्वास्थ्य चिकित्सा ओर करें कुछ ये उपाय

अपनी नांक ओर नाभि व अंगुठे एड़ियों में लगाये सरसों का थोड़ा तेल और पाये रोग प्रतिरोधक अद्धभुत प्रकार्तिक स्वास्थ्य चिकित्सा ओर करें कुछ ये उपाय

बता रहें हैं स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी

कल मेरे द्धारा वाट्सएप ग्रुप पर भक्तो को भेजे बहुत संछिप्त लेख से वर्तमान विपदा का स्वास्थ्य उपाय करने को मिला,पर बहुत भक्तो को इसे ओर विस्तार से समझाए,ये संदेश प्राप्त हुए,तो थोड़ा और विस्तार से उसे यहां बता रहें हूँ,पहले संछिप्त को पढ़े फिर थोड़े विस्तार को पढ़े और लाभ पाएं,,

इस विपदा का अन्तर्वाणी ने यज्ञ में उपाय है-
1-अपनी नाक में सरसों का तेल लगाएं।
2-नाभि में सरसों का तेल लगाएं।
3-ओर पैर के अंगूठे ओर एड़ी में भी सरसों का तेल लगाएं।
4-ओर सारे घर मे चार लांग एक कपूर पांच इलायची ओर पीली सरसों के कुछ दानों की अंगारी पर जलाकर धुंआ करे।
बाकी इष्ट गुरु मन्त्र जपे बहुत कुछ कल्याण होगा।

1-नाक में तेल लगाने से लाभ:-

नांक का आज्ञाचक्र व ह्रदय चक्र से सीधा सम्बन्ध है और वैसे तो नांक में तेल लगाने से नांक में जाने वाले सभी हानिकारक कीटाणु मर जाते है और नांक की सूंघने की संवेदनशीलता भी ठीक रहती है।ओर वैसे ही आप देखोगे की नांक से स्वास पहले मष्तिष्क पटल पर टकरा कर फिर ह्रदय तक ओर फिर वहां से आगे फैलती दसों इंद्रियों में विस्तार पाती हुई लौटती बाहर हो जाती है। यो इन दोनों चक्रों आज्ञा यानी मस्तिष्क व ह्रदय यानी मन का स्थान से नांक का सीधा सम्बन्ध है।
स्वास्थ्य सम्बन्धित विज्ञान में गर्मी में अतिरिक्त गर्मी बढ़ने से या गर्म दवाइयां खाने से जो शरीर में टेम्परेचर यानी खुश्क गर्मी बढ़ती है,वो मष्तिष्क तक खुश्की लाती है,जिससे अक्सर बार बार छींकने से या जोर से नांक को सिंकने से नकसीर छूट जाती है,वो खुश्की तेल लगाने से खत्म हो जाती है।
यो यहां से मन ओर मष्तिष्क को पूरा लाभ मिलता है।
साथ ही इन दिनों में नांक ओर मुंह पर मास्क भी लगाएं तो निरंतर प्रदूषण से विषैली हो चुकी वायु से फेल रहे कीटाणुओं के नांक मुंह मे प्रवेश पर रोक लगेगी बाकी हानि रोकने का काम तेल कर देगा।
2-नाभि में तेल लगाने की मालिश होने से लाभ:-
वैसे तो सरसो के तेल की कुछ बूंदें नाभि में बाहर से लगाकर अपनी उंगली से कम से कम 10 बार सीधी ओर घुमाए ओर 10 बार उलटी ओर घुमाते हुए हल्की मालिश करने से यहां गांठ लगी सभी नसों के जोड़ से अंदर स्थित 72 हजार सूक्ष्म नाड़ियों में स्पंदन होने से वहां स्थित अधिकतर निष्क्रिय पड़े या सोए हमारे जीन्स जीवाणुओं में सक्रियता होनी प्रारम्भ हो जाती है ओर वे जागरूक होकर नसों से आगे बढ़कर शरीर मे प्रवाहित होते हुए,शरीर को क्या आवश्यकता है,उसके अनुसार अपना कार्य प्रारम्भ करते है।यही विधि से सामान्यतौर पर नाभि डिगने या हटने को तेल मालिश व व्यायाम करके ठीक किया जाता है।ओर होठों पर खुश्की हो या शरीर मे तेज ओज या स्निग्धता की कमी से लेकर सभी विटामिनसों की सहज ही पूर्ति की जा सकती है।
वैसे तो हम मनुष्य जन्म समय से पूरा होने तक माँ की नाभिनाल से ही पोषित होते है और यहीं नाभि चक्र में हमारा सोलर सेंटर यानी अग्नि,तेज,ओज चक्र है यानी मनुष्य के शरीर मे जो प्रतिरोधक शक्ति है,वो यहीं से बनती है,यहीं 72 हजार सूक्ष्म नाड़ियों के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर में हमारे ओज तेज की निर्माण और प्रसार होता है,यहीं पर हमें जो अंनत जन्मों के मूल जन्मगत जींस बने रहते है,जिनमे हम मनुष्य को संसार मे अनगिनत जन्म लेते मरते के बीच जितने भी कीटाणु ओर जीवाणु की अधिकता से बीमारियां हुई है और उनके बचाव उपाय किये गए, उनसे जो प्रतिरोधक शक्ति बनी थी,वो अपने मूल बीज रूप में जींस में बनी रहती है,यो जैसे ही हमारे शरीर मे कोई भी ज्ञात अज्ञात बीमारी आक्रमण करती है,तो हमें प्रकृति रुप से उन्हीं प्रतिरोधक जिंसों से वो शक्ति मिलती है,बस उन्हें बाहरी ओषधि से सक्रिय करने की अप्राकृतिक आवश्यकता होती है या फिर हमारे खुद के शरीर पर ध्यान करते ही,वे प्रतिरोधक शक्ति से भरे बीज जीन्स से एक्टिव होकर अपनी संख्या बढ़ाते हुए उन बीमारियों के कीटाणुओं से लड़ाई शुरू कर देते है,ओर चूंकि उन कीटाणुओं से वो पहले भी लड़ चुके होते है,यो उनमें बसी वो लड़ाई के साथ विजयी होने के स्वभावगत बनी और एकत्र संरचना उसी योजना के रूप में जागरूक होकर हमला शुरू करके हमे ठीक करती है,बस आवश्यकता है,उन्हें अपने शरीर को आदेश देने के लिए ध्यान करने की।यही विधि का नाम है-रेहीक्रियायोग विधि।
चूंकि हम एक बडी जटिल ओर सम्पूर्ण विधिवत विज्ञान प्रणाली से बने है,यो आत्मा से मन जो आत्मा की इच्छाओं का नाम ही है और मन से मनुष्य शरीर और उसकी शक्ति यानी विल ओर पावर है।यो ये विधि द्धारा आप बस अपनी आत्मा से अपने मन की शक्ति से मष्तिष्क की शक्ति को जाग्रत यानी आदेश देती है ओर मष्तिष्क अपने से शरीर के सारे सेंटर्स यानी 7 से 9 ग्रन्थियों को जीवन रस को बनवाकर एक से एक करके भेजता हुआ आगे प्रसारित करने का स्वभाविक आदेश देकर कार्य में लगा देता है ओर हमे बाहर आये रोग हों या अंदर से ही बने रोग हों,उनके विरुद्ध लड़ने में लगा देता है,चुंकि हमारा ही शरीर है,उसपर हमें अधिकार है,यो हम सहजता से जीत स्वस्थ्य हो जाते है।अब ये विजय कितनी देर में हम अपने विश्वास यानी पक्के ज्ञान और अभ्यास के मेल से जीतते है,ये हम पर ही निर्भर करता है।बाकी हमें सब कुछ मिला है,जिसे हम उपयोग करना ही नहीं जानते है,तभी योगी कहते है,की,हम अपने मष्तिष्क का 1 से 3 प्रतिशत तक ही उपयोग कर पाए है।सोचो कि,यदि हमारे पास खुद का ही 100% एनर्जी साधन है,यदि उसका 100% उपयोग करना सीख गए या आधा भी तब क्या कुछ सम्भव नहीं होगा।यही वेद और गीता का कर्म ओर क्रियायोग ज्ञान है,न कि बस,बैठकर वेदों के या गीता के नियमित पाठ करके बिन उपयोग के व्यर्थ समय गुजर कहते है कि,इनमें कुछ नहीं है।
यो वही कर्म विधि है-रेहीक्रियायोग विधि,,करो और लाभ पाओ।

पैर के अंगूठे ओर एड़ी पर तेल लगाने से लाभ:-

पैर की अग्र भाग अंगूठे में कालाग्नि यानी कुंडलिनी शक्ति का 16 वां चक्र होता है।यानी पुरुष के उल्टे अंगूठे में चन्द्र शक्ति यानी धन शक्ति ओर सीधे अंगूठे में सूर्य शक्ति यानी ऋण शक्ति का क्षेत्र होता है।और अंगूठे से लेकर एड़ी तक विस्तार होता है,ठीक ऐसे ही हाथों में होता है,हाथ के अंगूठे को आत्मा का सिंबल माना है और दोनों हाथ को दसों इंद्रियों ओर नो चक्रों सहित सम्पूर्ण ब्रह्म शरीर मना जाता है।यो इस ब्रह्म शरीर के अग्र भाग अंगूठे ओर अंतिम भाग एड़ी व हथेली का अंत कलाई पर तेल लगा जरा मालिश करने से सम्पूर्ण शरीर मे चेतन शक्ति का प्रवाह हो जाता है ओर पूर्ण लाभ मिलता है।
यो आप नियमित सरसों का तेल इन स्थानों पर लगाये ओर रेहीक्रियायोग अभ्यास करें तो,आप जीवन का सम्पूर्ण स्वास्थ्यलाभ के साथ सभी भौतिक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करेंगे।

अभी आज से अपने ओर बच्चों के तेल लगाएं और स्वास्थ्य लाभ पाये।

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
Www.satyasmeemission.org

Post a comment