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जुड़वां बच्चे किस पूर्वजन्म के शाप का परिणाम है और समलैंगिक दर्शन और उसका विकृति भरा जन्मगत दंड परिणाम तथा इनका निदान क्या है?

जुड़वां बच्चे किस पूर्वजन्म के शाप का परिणाम है और समलैंगिक दर्शन और उसका विकृति भरा जन्मगत दंड परिणाम तथा इनका निदान क्या है?

बता रहें हैं महायोगी स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी

इस सम्बन्ध में साइंटिस्ट कहते है की,ये स्त्री के भ्रूण में दो बिंब के एक साथ किस अनुपात में मिलने के कारण जुड़वाँ बच्चो का जन्म होता है।यहां अनुपात का अर्थ है कि-स्त्री के भ्रूण में जाकर उसके बिंब से दो पुरुष वीर्य बिंब का सही अनुपात यानी 50%-50% या कुछ ही अनुपात के कम या अधिक मिलने से तो एक लड़का व एक लड़की या दोनों लड़के व दोनों लड़की या अधिक जन्म सही रूप से होते है ओर जो लड़का+लड़का या लड़की+लड़की का शरीर या शरीर को कोई भी बड़ा भाग भी परस्पर मिला होकर जन्म होता है, वे बच्चे का X+X या Y+Y का प्रतिशत 50% से अधिक परस्पर आकर्षण होकर मिलने से ऐसा जन्म मिला होता है।ये ही किन्नर यानी हिजड़ा होने आदी का जन्म सिद्धांत है।

विज्ञान अनुसार संछिप्त में जुड़वां बच्चे होने के सूत्र:-

1-फर्टिलाइजेशन के बाद अंडा दो हिस्‍सों में टूट जाए या दो अलग अंडे फर्टिलाइज हो जाएं तो जुड़वा बच्‍चे पैदा हो सकते हैं। कुछ शोधकर्ता इस बात को खाने के सम्बन्धित खोजो के द्धारा भी साबित भी कर चुके हैं कि फोलिक एसिड या अतिरिक्त मिल्क पाउडर या गाय आदि के दूध के अधिक पीने से तथा जिमीकंद के अधिक खाने से ओर माका रूट का अधिक सेवन करने ओर से साबुदाना खाने से तथा अनानास अधिक खाने से महिलाओं में ओवुलेशन के दौरान एक से ज्‍यादा अंडे रिलीज होते हैं जिससे जुड़वा बच्‍चे होने की संभावना बढ़ जाती है।

2-बच्चों में अंगों के जुड़कर पैदा होने के संछिप्त में वैज्ञानिक कारण:–

जब एकयुग्मनज जुड़वां अलग लिंगों के साथ पैदा होते हैं तो ऐसा गुणसूत्र जन्म दोष के कारण होता है। इस मामले में, जुड़वा हालांकि एक ही अंडे से आते हैं, किन्तु उन्हें आनुवंशिक रूप से समान कहना गलत है, क्योंकि उनके कार्योटाइप (नाभिक में गुणसूत्रों की संख्या तथा उपस्थिति) अलग अलग हैं।
ओर इन्हीं अनेक कारणों से बच्चों में अनेक लिंग या योनि मार्ग आदि की विकृति देखने मे आती है।
निदान में विज्ञान इसे विशेषकर गर्भधारण के बाद से जन्म समय तक माता का ओर जन्म से पहले के पिता के खानपान का और स्त्री व पुरुष दोनों के पैतृक यानी वंशावली में गुणों के संतुलन बिगड़ने से उत्पन्न कारण को बताता है।ओर निदान के रूप में माता को अपने खानपान को सही संतुलन करके चलने से ये परिणाम कम किया जा सकता है।साथ ही अनेक छोटे या बड़े ऑपरेशन करने इन्हें थोड़ा सहज जीवन जीने को जीवनदान दिया जाता है।
यही सब मनोविज्ञान तथा आयुर्वेदिक ओर योगविज्ञान का गुणसूत्र भी कहता है।

पर प्रश्न यहां ये है कि,ये सब इस जीवन मे ही माता पिता के खानपान के संतुलन से ओर अनेक हार्मोन्स सम्बन्धित ओर सेक्सुअल दवाइयों के अधिक उपयोग से उनके जीन्स में आयी गड़बड़ी से बिगड़ता है या इन सब जन्मे बच्चों का कितने ही पूर्व जन्मों का कोई भी किस प्रकार का बुरा कर्म फल अधिक प्रभावी है?क्योकि पूर्वजन्म सिद्धांत ही हमारे वर्तमान जीवन से अनन्त भविष्य जीवन की अनसुलझी गुत्थियों को सहजता से सुलझाता है।जो लगभग सभी धर्मों में मान्य है।
आओ इस सबको संछिप्त में समझें..

सबसे पहले मनुष्य की ये विकृतियों को देखें

समलैंगिक दर्शन और उसका विकृति भरा जन्मगत दंड परिणाम:-

1-चहरे का मिलकर पैदा होना।
2-होठों का मिलकर पैदा होना।
3-मूत्र मार्ग का मिलकर पैदा होना।
4-पीठ का मिलकर पैदा होना।
5-पेट का मिलकर पैदा होना।
6-दिल का मिलकर पैदा होना।
7-पैरों का मिलकर पैदा होना।
8-उल्टी या सीधी बांह का मिलकर पैदा होना।
9-मस्तिष्क का मिलकर पैदा होना आदि।

कैसे मिलता है ये वासनायुक्त जीवन का अंगविकृति भरा भयंकर दुखमयी दंड:-

जब कोई मनुष्य यानी पुरुष पुरुष या स्त्री स्त्री या स्त्री पुरुष, अपने ओर दूसरे के जिस शारारिक अंग के मिलन के प्रति अत्याधिक वासनायुक्त कामुकता भरी भोगने की अति इच्छा में लिप्त रहने से भरी लालसा को लिए जीता है और उस कामुकता भरी लालसा की अधूरी प्यास को विभिन्न विकृति भरे तरीको से दिन ओर रात में अधिक समय तक दिवास्वप्नों से घिरा विचारों का संकल्प बनकर ही वो कामुक कर्म इन सभी या ओर अनेक तरीकों को उपयोग करता और विचार करता जीता है ओर इसी सबको अपना जीवन दर्शन मानता ओर इसे फैलता भी है कि इसमे अनन्त सुख आनन्द है यही सच्चा जीवन है,इसे ही प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य का जीवन कर्म है और इन्हीं कर्मों के कर्मफलों को भोगता हुआ आगामी ओर जाने कबतक के जन्मों तक जन्म लेकर बार बार पैदा होकर फिर इस विकट आकर्षण भरे वासना जीवन को जीता है,तब ठीक इसी विकट भोगवादी काम ऊर्जा से उत्पन्न दोनों मनुष्यों में स्थित दो X Y में से एक ऋण शक्ति और एक धन शक्ति कमजोर हो जाती है और दोनों के अंदर की एक एक आकर्षण शक्ति अति बढ़कर परस्पर आकर्षित होकर मानसिक से लेकर शारारिक स्तर पर जुड़ाव का निर्माण होता जाता है और इसी कर्म के चलते दोनों की आकर्षण शक्ति की अति व्रद्धि होने से ये विकट कष्ट दुखमयी जीवन जीनों का उनका खुद का कहो या ईश्वरी कमर्दण्ड उन्हें इस जीवन मे ओर भविष्य जीवन मे मिलता है और उसे ये सब तब तक भोगना पड़ता है,जब तक की उसकी वो पूर्वजन्म का विकृति भरा कामुक विचार का कर्म भोग संकल्प से तंग आकर ईश्वर से या किसी गुरु से ज्ञान समझ कर या स्वयं के इस दंडित जीवन को भोगने पर हुए अध्ययनों से समझकर फिर इसे काटने के लिए किये गए दृढ़ संकल्पों की दृढ़ शपथ ओर उसको तोड़ने का दृढ़ दंड निर्धारित करके उस पर चलता हुआ, फिर सहज प्रकार्तिक काम भाव के दिव्य प्रेमिक संकल्प को नहीं धारण करता है।तब जाकर इस दंडित जन्म में ही विज्ञान चिकित्सा हो या अन्य उपाय के हुए निदान ऑपरेशन आदी को पाकर कुछ सुखी जीवन जीता है।ओर अगले जन्म में उसे ओर स्वास्थ सुखों की प्राप्ति होती चलती है।

यो इसका वर्तमान जीवन मे ही ऐसा दंड नहीं मिले या मिला है तो वो सही हो जाये,वो सहज निदान उपाय क्या है?:-

वो है विश्व की सबसे प्राचीन विज्ञानमत सिद्धांत आधारित एक मात्र ध्यान विधि-रेहीक्रियायोग विधि से ब्रह्मचर्य अवस्था से लेकर गृहस्थी अवस्था तक ओर उसके उपरांत शेष जीवन में साधनारत रहने से सभी ऐसे या अन्य भोग कर्मफलों के विकृति भरें भयावह दंडों से सहज ही मुक्ति मिल दिव्य प्रेमिक गृहस्थी उच्चकोटि की सन्तान के सभी सुखों की प्राप्ति के साथ अंत मे आत्मसाक्षात्कार की जीते जी प्राप्ति होती है।
इस सम्बन्धित हमारी
वेबसाइट Swami Satyendra ji पर जाकर अध्ययन कर सकते है।

यो इस विषय पर कुतर्क बिना सुतर्क चिंतन के साथ विचार कर अपनाने से आप इसे 100% सत्य पाएंगे।

इस खोज के प्रति ओर भी सत्य तथ्यों की लेख में उजागर करूँगा इतने इस पर सुतर्क चिंतन कर अपनाये।

यो आज ही इस सब भोगवादी कुकर्म से सदा को दूर होकर रेहीक्रियायोग अभ्यास अपना कर वर्तमान से भविष्य जीवन सफल बनायें।

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
Www.satyasmeemission.org

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