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तन्त्र क्रिया से अकाल मृत्यु


ये उस समय की बात है जब हम किराये पर प्रेमनगर में रहते थे और मैं सम्भव है दसवी कक्षा में पढ़ता था तब मकान मालिक के बीच के लड़के शंकरलाल वर्मा कचहरी में बाबू लगे थे और इनका पहला विवाह अमरगढ़ से हुआ था हम सभी उसमें सम्मलित हुए थे इनकी पत्नी गर्भावस्था के सातवे माह में चल रही थी की एक दिन ये प्रातः उठी उन्होंने चौक में देखा की जहाँ शौचालय बना है उससे पहले छत पर जाने की सीढ़ियों से आगे एक हेण्डपंप लगा था उसके बिलकुल नीचे एक बड़ी सी अष्टदल त्रिकोण निर्मित आटे सिंदूर हल्दी आदि से रंगोली बनी है उसके बीच में एक बुझा आटे का दीपक जो रात्रि भर जला होगा वो नल की और मुख करे रखा है उन्होंने अपनी सांस जानकी देवी व् सुसर और पति आदि को बताया इतने वो उसका कुछ करते उन्होंने ही एक पानी की बाल्टी से इसे वहीं की नाली में बहा दिया झाड़ू मार साफ कर दिया बस उसके कुछ देर दोपहर के समय ही उनकी तबियत खराब हुयी और उन्हें यहां के अस्पताल में ले जाया गया पर यहां से उन्हें तुरन्त गम्भीर स्थिति में मेरठ मेडिकल में भेजने को कहा तब मेरी माता जी व् पास की चाची आदि एक कार से मेरठ रवाना हुए इस बीच गुलावठी के रास्ते में एक साईकिल वाले से कार टकराई उसकी साईकिल अगले शीशे को तोड़ती दूर जा गिरी अंदर बेठी स्त्रियों के शीशे के दुकडे लगे वो तो अच्छा था की जाड़े थे सबने जर्सी पहन रखी थी अन्यथा सब घायल होती और वो साईकिल वाला भी बच गया था तब सब वहां से मेरठ पहुँचे वहाँ खून चढ़ा चिकित्सा हुयी पर ये वहाँ बची नही जच्चा बच्चा दोनों ही समाप्त हो गए अब उस समय उस मकान में और आसपास ऐसा कोई परिवार नही था जो ऐसी तांत्रिक क्रिया पांच फुट ऊँची दीवार फांद कर करता कोई पता नही चला सबने संयोग मान लिया चलो ये संयोग था इसके अनेक वर्षों बाद मकान मालिक श्री रामप्रसाद वर्मा जी बैंक से सेवानिवर्त हो कर अपना समय गीता पाठ और शीर्षासन करते और परिचित लोगो में बैठकर व्यतीत करते तब इन्हीं भाई शंकरलाल वर्मा का दूसरा विवाह बुलन्दशहर के सूरजभान साउंड सर्विस वालों की बेटी से हो चूका व् संतान भी थी ठीक तभी पूर्व जैसी ही आटे,हल्दी आदि से निर्मित और दीपक रखी तांत्रिक रंगोली ठीक वहीं हेण्डपंप के सामने बनी रखी मिली अब की बार इन्हीं ताऊ रामप्रसाद जी ने उस को पानी और झाड़ू से साफ़ करते नाली में बहा दिया तब ये भी उसी दिन सिर की नस फटने से काले आम के पास बने एक प्राइवेट अस्पताल में मृत्यु को प्राप्त हुए अब इसे क्या कहेंगे एक संयोग या सत्यता? तब उन दिनों में हमारा परिवार आज के आश्रम में आ चूका था मेने कहीं भी आना जाना बंद कर दिया था तब ये परिवार के सदस्य मेरे पास मान्यता रखते हुए आते जाते थे इनके उस सम्बन्ध में पूछने पर की किसने ये किया था तब मेने बताया की वैसे तो पूर्वजन्म का कर्म फल होता है चाहे वो अल्पायु हो या दीर्घायु परंतु ये तांत्रिक क्रिया महोल्ले के ही एक प्रतिष्ठित परिवार ने अपनी कन्या और परिवारिक स्थिति की सुदृढ़ता को तांत्रिक द्धारा ऐसे स्थान पर ये करने को बताई थी जहाँ तीन परिवार और पृथ्वी से निकला जल का नल स्थान आदि हो ये यहीं था जहाँ एक और मकान मालिक और बीच में हम और तीसरी भाग में भी परिवार रहता था और नीम का पेड़ बड़ा चौक और वहाँ पुराना हेण्डपम्प था इसके बाद उनके यहाँ पूजापाठ आदि और यहाँ आश्रम के यज्ञानुष्ठानों में आने से फिर ऐसी कोई घटना नही हुयी।यो भक्तों इस कथा से ये ज्ञान मिलता है यदि ऐसी कोई तांत्रिक क्रिया को आप अपने घर में देखे चाहे वो दीवार पर छापे,खून के छींटें, आपके मुख्य दरवाजे पर रखा दीपक या चावल,रोली,सिंदूर आदि कुछ भी हो उसे तुरंत पानी झाड़ू से नही साफ करें बल्कि एक अख़बार को लपेट कर लम्बा सा बना कर उसमें आग लगा कर उस चिन्ह आदि पर अपना गुरु मंत्र या कोई भी भगवान का नाम जपते हुए जलते अख़बार से अपने घर से बहार की और को हवा में ही तीन या सात बार झड़ते हुए कहे की ये जो भी तांत्रिक क्रिया आदि है वो जिसने करी है उसी के घर जाये और तब शेष जलती अख़बार की आग उसके ऊपर डाल दे तब सारी आग बुझ जाने पर उस सबको साफ़ पानी में गंगा जल मिलाकर वहां से बाहर सफाई कर देने पर उस केसी भी तांत्रिक क्रिया हो सबका सब प्रभाव जिसने ये किया है उसी के घर पर चला जाता है और आप सुरक्षित हो जाते हो ये अनगिनत भक्तों द्धारा अनुभूत प्रयोग है आप भी करें।और जहाँ सदा गुरु नाम जप दान होता है वहाँ सब कल्याण होता है।
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