?चार्वाक दर्शन का सत्यार्थ?
खाओ पीयो आनंद करो
ये जीवन का है अर्थ।
इस जीवित जगत से और परे
ये चिंतन है व्यर्थ।।
एक स्त्री एक पुरुष है
और इनकी सभी अभिव्यक्ति।
यही बढ़ संसार ये
ये भोगवाद की शक्ति।।
सभी मान्यताएं बंधन है
यही बंधन मनुष्य क्रंदन है।
यो जो इच्छा है भोगो उसे
यही भोग भोग मुक्ति जग बंधन है।। ईश्वर,न्याय,ज्ञान,ध्यान
और प्रत्यक्ष परे का मान।
अद्रश्य तत्व परिकल्पना
मुर्ख मनुष्य ज्ञान अभिमान।।
निठल्ला सोचे यही सब
कर्मठ करता कर्म।
आलसी ही ध्यान ज्ञान नाम
अप्रत्यक्ष नाम फैलाये भ्रम।।
आस्तिक वाद के प्रश्न ये
हम मनुष्य मात पिता कोन।
कहाँ से आये और जाना कहाँ
इस जीवन अर्थ के पीछे कौन।।
भोग क्या योग क्या
और क्या है स्थूल सूक्ष्म।
तन प्राण मन आत्मा
इनका क्रम चक्र क्या सूक्ष्म।।
जो ये विषय चिंतन करे
वही प्रश्न और उत्तर कर्ता।
वही आत्मा एक अभिन्न सर्व
बन जीवंत परमात्मा विचरता।
भोग कहे कर्म को
और योग कहे व्यवहार।
कर्म और व्यवहार दोनों
यही कर्ता आत्म ज्ञान सार।।
पुरुष स्त्री और बीज
ये त्रिगुण सदा विद्यमान।
स्त्री पुरुष प्रत्यक्ष जग
यही बीज बन सूक्ष्म जान।।
ज्यों बीज में है वृक्ष फल
और प्रत्यक्ष फल में बीज।
बीज स्थाई सदैव रहे
यही ईश्वर नाम है बीज।।
यही ध्यान जो शेष बचे
वही आत्म ज्ञान विज्ञानं।
मिटे प्रश्न उत्तर द्धंद
यही अहम सत्यास्मि प्रज्ञान।।