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गुरु का वर्तमान अर्थ


गुरुदेव अर्थ वर्तमान है
जन सेवक का दास।
मनवांछित कार्य कर्म
गुरु बनाते निज आस।।
गुरु नाम कठपुतली बना
जिसकी शिष्य हाथ है डोर।
जब मन आये उपयोग करे
चलाये पंचम अंगुली पोर।।
पाँच मनोरथ सिद्ध करे
अर्थ धर्म काम विश्राम।।
और जगता गुरु रहे
दे पहरा शिष्य के धाम।।
जब मन आये जाये शिष्य
गुरु सुने दुखित शिष्य पुराण।
जप तप सिद्धि गुरु की
केवल शिष्य भौतिक कर्म त्राण।।
गुरु सुनाये धर्म ज्ञान
शिष्य करता मात्र हुंकार।
सही कहा गुरु देव तुम
पर कैसे करें हम निःसार।।
ये भी तुम ही शक्ति देना
जिसे समय निकाल सके हम।
कृपा गुरुदेव आप ही करना
अधिक नही तो कम।।
पर कहाँ से आयें समय नही
आपको ज्ञात है सब।
अंतर्यामी आप श्री
आएंगे जब समय मिलगा तब।।
चिंता मत करो गुरुदेव जी
मुझे धनी बना दो जग।
तब देखो क्या क्या करूँ
गर्व करोगे शिष्य पाया इस जग।।
बस इस बच्चे को शिक्षा दो
और इस पुत्री शुभ वर विवाह।
पति सही चले घर मार्ग पर
और धन तन चैन दो अथाह।।
तब मैं यही रहूँगी
और करूँगा सेवा दिन रात।
गुरु देव शक्ति लगाओ और
मेरे शत्रु मिटे अज्ञात।।
अरे क्या पता गुरु जी तुम्हें
हूँ कितना दुखी दरिद्र।
एक प्रश्न और शेष मुझ
शांति मिले मुझ कब निंद्र।।
भोंस भोंस गुरु चले गए
पर सेवा नही समाप्त।
पीढ़ी पर पीढ़ी बढ़ चढ़ी
शिष्य वंश चले मनोरथ व्याप्त।।
जिसे त्याग ब्रह्मचारी बने
और लिया भोग ना सुख।
सदा घिरे उसी पँच माया से
मोक्ष नाम मिला गुरु दुःख।।
गुरु पूर्णिमा एक दिन
और पुरे वर्ष अमावस मात्र।
सम्पूर्ण जीवन शिष्य दिवस
गुरु मुक्ति किस दिन रात्र।।
जय जय शिष्य तू महान है
तू उस माया का है रूप।
जिसे वशीभूत कर गुरु बने
गुरु नाम धर सेवक तुझ भूप।।

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