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22 अप्रैल पृथ्वी दिवस पर्यावरण और जलवायु साक्षरता 2017 पर सत्यास्मि कविता संदेश:

?22 अप्रैल पृथ्वी दिवस पर्यावरण और जलवायु साक्षरता 2017 पर सत्यास्मि कविता संदेश????
बढ़ता चल रहा काल बन
मरुस्थल धरा पे दिन रात।
सटक जा रहा सभी कुछ
पी खाता हुआ दीखता जो ज्ञात।।
ये अंधकार है दीखता हुए भी
सभी की खुली आँखों में अंघवात।
पीतवर्ण सा श्वेत चमकता कणों युक्त
समा लेगा सभी को अपने ही साथ।।
जो रोक रहे थे वर्षो इसको
बन हमारी रक्षा की ढाल।
उन्हीं रक्षकों की कर हत्या
निज हाथों आहुति दे रहे उस काल।।
काट रहे हम अपने ही हाथों
अपने सुख शांति हरित वृक्ष।
जला रहे उन वृक्ष रूप में
चिता जीते जी अपने ही पक्ष।।
जो जीने का सबसे बड़ा साधन
वही करते हम नित व्यर्थ।
जब देखों वही बहा जा रहा
जल रूपी जीवंत प्राण हम अर्थ।।
बढ़ रही गर्मी की तपिश रात दिन
जल रहा है नभ् से आता प्रकाश।
जला रहा जल हरित धरा को
नही बचने की भविष्य में आश।।
बिगाड़ रहे हम निकाल निकाल कर
खनिज माटी समुंद्र से तेल।
बदले दे रहे अगलित प्लास्टिक
कैसे लेन देन धरा हम मेल।।
खुली आँखों पे पट्टी बांधे
हम बढ़ा रहे विकास की दर।
बस उन्नतिकारक चिंतन करते
नही चिंता करें बढ़ रही मृत्यु का डर।।
यही हाल रहा तो अति शीघ्र ही
सूर्य तोड़ देगा रक्षक धरा की सीमा।
और मिट जायेंगे यूँ घर बेठे ही
भून जायेंगे इस आग में धीमा धीमा।।
यूँ डरो इस आती मृत्यु से
जो तुमने ही अपने भोज बुलाई।
असमय इस मृत्यु दे निमंत्रण
जो बिन खाये ना वापस जाई।।
लगाओ एक वृक्ष नित माह
और जल करो उपाय निज संचित।
अभी समय है कुछ शेष धरा तुम
फिर नही समय मिलेगा किंचित।।
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आज ही आप भी एक वृक्ष अवश्य लगाये
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