ईश्वर से हो या नर नारी
या फिर हो अपना आपा।
इस प्यार यदि हो डर का मेल
ये सफल इश्क़ न आपा।।
यो एक प्यार ही रख्खो दिले में
दूजे डर को मारो लात।
ओर जीओ एक मंजिल बना
मिले इश्क़ कभी न घात।।
प्यार खुद में एक ख़ुदा है
फिर काहे का डर।
नहीं तोलो इश्क़ तराजू
नूर बरसे नूरी बन झर।।
प्यार देह तक सफ़र है
महोब्बत दिल की मंज़िल।
इश्क़ रूह है ख़ुद की
वही रूही बन मिलती खिल।।
यो इश्क़ यदि चाहिए
तो डर को मारो किक।
तन्हां घुट मत जीओ डर संग
इश्क़ भर प्याला पीओ झिक।।
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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