9 जुलाई गुरु पूर्णिमा पर्व पर भगवान विश्वामित्र और मेनका गंधर्व विवाह योगार्थ व् शकुंतला जन्मकथा प्रसंग:


विराटचित्र विश्वामित्र
सूर्यवंश अतुल गौरव।
इसी आर्य गंधर्व विवाहिता
गंधर्व मेनका कश्यप सौरव।।
आदिपुरुष कश्यप पुत्री
कन्या प्राधा प्राचेतस दक्ष।
सर्वश्रेष्ठ अप्सरा नारी
सर्वांग सम्पन्न गुण पक्ष।।
विश्वामित्र तपोभूमि तपे
तप तप बढ़ा उग्र।
उद्धेश्य राग वेराग्य नहीं
यूँ मन तन रहा उग्र।।
योग प्रकर्ति नियम परम्
पहुँचे योग पँच तत्व।
उष्णित नही हो जाये यो
शीतल करे प्रकर्ति सत्व।।
प्रकार चाहे कोई हो
सभी वासना मन विकार।
इन्हें ही संतुलित करती
प्रकति प्रति संग दे सुकार।।
मन देवत्त्व ज्यों ज्यों बने
तब सफल नही सहज नार।
इंगला पिंगला जीवंत हो
प्रत्यक्ष हो जाये स्वर नर नार।।
यहीं यहाँ है योग कथा
इसी घड़ी घटी फलस्वरुप।
मेनका वही अप्राकृतिक नार बन
संगत दी गन्धर्व निरूप।।
यहाँ ग्रहस्थ जीवन नही
नही गृहस्थी सदा अतरंग।
केवल संगत योग वश
यही घटित प्रेमित्व अरंग।।
ये न व्यभचार है
नाहीं आचरित संसार।
केवल वासना तिरोहित उर्ध्व दिशा
यहीं गंधर्व मेनका है व्यवहार।।
इसी तपोजनित विकार वश
जन्मी तपो पूण्य सुकन्या।
शकुन शुभ घड़ी पहर सब
जन्मी पूर्णिमा शकुंतला कन्या।।
माँ मेनका रूप ले
पिता विश्वरथ तेज।
आर्य वंशी क्षत्रिय गुणी
इसकी वन पर्ण लता सेज।।
दिव्य योग पुत्री प्राप्त कर
लिप्त होते दोनों ग्रहस्थ।
तब चैतन्य मेनका हुयी
न विश्वामित्र उद्धेश्य हो अस्त।।
यूँ ज्ञान भान हुआ ऋषि
और हुए घोर वैरागी।
मिटी वासना कामुक ह्रदय
मूलाधार उर्ध्व हुआ त्यागी।।
अब करूँ क्या प्रश्न हुआ
तब दोनों करें उपाय।
कण्व ऋषि को सोप कर
चले अपनी योगिक राह।।
मेनका का कर्तव्य यही
मिटाये योगी भोग।
मन का मैं मेनका अर्थ
अपूर्ण योग बने ना रोग।।
जो योग करें संसार परे
तब वासना रहे ना संग।
उनके पथ ये आये नही
ना विध्न डाले करें न तंग।।
यूँ ही मेनका मनन भोग
जब मन होता प्रत्यक्ष।
जीवित होती ये गंधर्व नार
उद्धेश्य कभी नही योग भक्ष।।
शेषांक…शकुंतला और दुष्यंत विवाह और चक्रवती भरत जन्मकथा…
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