गुरु पूर्णिमाँ


गुरु आदि गुरु अनादि
गुरु जप तप ध्यान समाधि।
गुरु सेवा मोक्ष मेवा
गुरु ही शांति जगत व्याधि।।
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु
गुरु ही सिद्ध महेश्वर।
गुरु त्रिदेव जीवंत स्वरूप
गुरु दत्तात्रेय गुरुवेश्वर।।
गुरु ही मंत्र गुरु ही तंत्र
गुरु ही परोक्ष अपरोक्ष।
गुरु सृष्टि गुरु अनंता
गुरु पाना ही है योक्ष्।।
गुरु ही संत गुरु ही तंत
गुरु प्रेम स्वरूप मूरत।
जिसने पाया गुरु देव
उसने पायी आत्मसुरत।।
गुरु सानिध्य ही विधि परम्
गुरु सेवा चतुर्थ कर्म।
गुरु दस विद्या प्राण दस
गुरु साक्षात् आत्म धर्म।।
गुरु सत्य ॐ गुरु
गुरु सिद्धायै सर्व सृष्टि।
एकमेव द्धितीयम गुरु नमः
गुरु नेत्र कृपा वर द्रष्टि।।
मात पिता प्रथम गुरु
ज्येष्ठ भाई बहिन द्धितीय।
अनुज परिजन तृतीय गुरु
चतुर्थ समाज गुरु आदित्य।।
इनकी उपेक्षा शाप गुरु
इनकी सेवा गुरु सेवा।
ये ही प्रत्यक्ष ब्रह्म गुरु
तभी मिले परम् गुरु खेवा।।
जय गुरु जय परब्रह्म गुरु
जय जीवंत परमेश्वर।
जयति जय गुरु देव तुम
सत्य ॐ सिद्धायै नमहेश्वर।।
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