शुभ सत्यास्मि प्रातः ज्ञान


सुख का सूत्र एक है
गुरु मंत्र गुरु ध्यान।
सत्य कहे परमानन्द जन
अद्धभुत दुख भंजन ज्ञान।।
सत्य ॐ सिद्धायै नमः मंत्र जपो
मन मनन कर गुंजार।
सत्य ॐ युगल नर नार मूरत
दर्शे ह्रदय आत्म अपार।।
जो भोग तुम भोग रहे
ये रटे रटाये अज्ञान।
सच जाने सम्बन्ध सुख
कैसे मिले दिव्य प्रेमरत भान।।
ये स्वस्थता के सम्बन्ध हैं
जिसमे दोनों बाटों बाट।
जिस दिन घेरे रोग तुम
कोई संग लेट सके ना खाट।।
यो इन भोगों का अर्थ क्या
जो जीवन सुख का सौदा।
जीते जी वो ज्ञान पा
इस जन्म लगा सुख पोधा।।
यो चलो आज ही गुरु पथ
और सीख गुरु मुख ज्ञान।
जप तप कर लगा समाधि
ले दिव्य प्रेम सुख ध्यान।।
भावार्थ:-हे शिष्य तुम जो ये जगत के सभी संसारी सम्बंध देख रहे हो वो सब के सब तुम्हारे स्वस्थ शरीर और तुम्हारे पास धन के आपस के एक दूसरे के साथ बाँट लेने के स्वार्थ भरे सम्बन्ध से अधिक नही है जिस दिन इस शरीर को कोई असाध्य रोग हो गया और उसके स्वस्थ करने में तब समस्त धन भी समाप्त हो गया और ऋण की आवशयकता पड़ने लगी तब देखना की वहीं तुम्हें अति प्रेम करने वाला या प्रेम करने वाली तुम्हारे निकट भी नहीं लेटेगी तब ये सब सम्बन्ध और उनसे प्राप्त रस और रास उस स्वप्न की भांति तुम्हें व्यर्थ ही लगेगा जो रंगीन तो है पर जीवन्त नही है तब ऐसे स्वप्न का क्या लाभ? यो केवल जो इस आत्मा के सच्चे रहस्यों को जानने वाला एक मात्र जीवन्त ईश्वर स्वरूप गुरु अर्थात जो ज्ञान है उसी के भावार्थ को प्रदान करने वाले स्वरूपी गुरु ज्ञान का ध्यान और मनन के साथ मन में जप करो यो वहीं से तुम्हें दिव्य प्रेम की अद्धभुत प्राप्ति होगी।यो उसी में डूबकर समाधि लगा और शाश्वत प्रेम को प्राप्त करो।यो सभी कुछ देने वाले उस दिव्य मंत्र को प्राप्त कर जपो।???
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