सिद्धासिद्ध महामंत्र की दिव्य दीक्षा प्राप्ति

 

सिद्धासिद्ध महामंत्र सत्य ॐ सिद्धायै नमः तो इस घटना से बहुत वर्ष पहले ही मेरे ध्यान समाधि में अवतरित हो चूका था पर मुझे उसके निरंतर जप ध्यान से अनगिनत दिव्य दर्शनों और भक्तों को भी शक्तिदीक्षा और उनके भौतिक और आध्यात्मिम उन्नति लाभ उपरांत भी मेरे अंतर्मन में कही कुछ संशय रहता था की कहीं मेरे ही आध्यात्मिक चिंतन की उपज ही तो नही है? अनंत बार प्रमाणित होने पर की महामंत्र के भजनों का प्रत्येक गुरुवार की प्रातः अवतरण होने और सत्य ॐ चालिसा,गुरु चालीसा आदि सभी कुछ होने पर भी शांति नहीं थी लगता था की इस महामंत्र की मुझे दीक्षा नही हुयी है यो भी मैने अनेक तीर्थों पर वहां जाने वाले अपने दीक्षित भक्तों से भी वहाँ के पुजारियों से जप यज्ञ कराये तब भी आभाव सा ही लगा रहता था तब अनेक वर्षों बाद धन तेरस की रात्रि जप यज्ञ उपरांत मुझे प्रातः पहर में दिव्यदर्शन हुए की मैं अपनी ननसाल लोहलाडा में बैठक में बैठा हूँ और पास में एक पत्रिका कुछ खुली हुयी पड़ी है उसमें एक गैर्विक वस्त्र धारी सिर पर भी गुलाबी रंग का कपड़ा बंधा है मध्यमायु के तेजस्वी योगी मुस्कराते हुए आशीर्वाद मुद्रा में बैठे का चित्र है वे मुझे पहचाने से लगे पर स्मरण नही आ रहे कहा देखे है और तभी मेरे मामा के बेटे हमसे बड़े जयपाल भैया वहाँ आये उन्हें देख मेने उनसे पूंछा की ये योगी कौन है? वे बोले ये जलेसर के योगी है हमारे गांव में इनकी बड़ी मान्यता है मेने कहा अच्छा तब मैं बोला मुझे अपने मंत्र में सम्पूर्ण चैतन्यता के लिए गुरु दीक्षा शक्तिपात की आवश्यकता है वे बोले इसमें क्या परेशानी है मैं ही ऐसी दीक्षा दिए देता हूँ परन्तु उसके लिए जो भी पैसे तुम्हारे पास जेब में हो उनमे से एक रुपया छोड़कर सब दीक्षा उपरांत जो कन्या आएगी उसे दे देना वो ही सबको लेकर जलेसर में इन योगी के पास दे आती है मैं बोला ठीक है करो तब उन्होंने पूजा की थाली तैयार की उसमे आटा,घी का दीपक,हल्दी आदि और सामग्री रखी और मेरे ह्रदय पर एक बड़ी सी रुई रख उस पर एक काली टेप क्रॉस करती चिपका दी की इसे दोनों हाथों से पकड़ कर रखना हिलने नहीं देना मैं अभी मंत्र पढ़ता हूँ मेने वेसा ही किया तब वे यही सिद्धासिद्ध महामंत्र पढ़ने लगे और तब एक अद्धभुत श्वेत रंग की ऊर्जा शक्ति का अंधड़ मेरे चारों और सारी बैठक में उत्पन्न हुआ जिसमे भैया नही दिखें मैं अपनी सीने पर उस रुई और क्रास को कस कर पकड़े रहा और शीघ्र ही वह शक्ति बवंडर शांत हो गया तब वे मुझे दिखे और बोले हो गया अब मंत्र की दीक्षा पूर्ण हुयी ठीक तभी एक गुलाबी रंग का घागरा चोली पहने गौरवर्ण की कन्या वहाँ आती दिखी भैया बोले इन्हें अपनी जेब में एक रुपया छोड़ सब दे दो मेने यही कंजूसी की सारे पैसे जेब में अंदाजे से गिने उसमें से कुछ बचा लिए और बाकि सब उस दिव्य कन्या को दे दिए वो लेकर चली गयी तब मेने अपने को जलेसर में एक मकान की छत्त पे खड़े पाया और नीचे से गम्भीर आवाज आई की चमत्कार देखोगे मैं बोला हाँ तब नीचे से ॐ का नाँद हुआ और मेरे चारों और शहर की सभी लाईटे बुझती हुयी मैं जिस भवन पर खड़ा था वहीँ पर केवल प्रकाश शेष रह गया ये देख मैं गहरी रात्रि में एक दिव्य प्रकाशयुक्त भूमि पर अपने को खड़ा अनुभव करता हुआ अपनी इस अनुभूति से चैतन्य हुआ जाग्रत हुआ तब मेने विचार किया की जैपाल भैया कैसे दीक्षा दे सकते है? ये योगी कौन है और जलेसर कहाँ है? ये हमारी ननसाल के जोगियों की दिव्य कन्या कौन है?तब प्रातः होते ही मेने गांव में फोन किया भैया ने उठाया उन्हें सारी बात बताई वे सुनकर बोले की हमारे गांव में तो हम और जोगियों से लेकर बहुतों में तुम्हारी ही मान्यता है इसका अर्थ तो तुम्हीं लगाओ मेने फोन रख चाय बनाकर पी और यज्ञ किया तब मेरी समझ में आया की जोगियों में गुरु उपासना होती है उनका मंत्र ॐ सिद्धायै नमः है और उनके पूर्वज जो मेने भी बचपन में देखे थे उनके ऊपर गुरु शक्ति आती थी वे बड़े सिद्ध गृहस्थी थे और उनकी ये कन्या पवित्रता की बोधक शक्ति ये दिव्य कन्या तो पूर्णिमाँ देवी थी और ह्रदय चक्र पर ही जप और ध्यान और उसका फल इष्ट आदि दर्शन प्राप्त होते है यो अपने दोनो हाथ वहाँ रखने का अर्थ यही है की अपने पूर्व व वर्तमान कर्मों को यहाँ ध्यान करो और सफेद रुई स्वच्छता का प्रतीक है उसपर काले रंग का क्रॉस ऋण शक्ति का और रहस्यमय शक्ति का प्रतीक है तथा जयपाल भाई जीवन्त शनि राशि यानि भाग्य का फल प्राप्ति का प्रतीक है और जलेसर भी मकर राशि शनि यानि पूर्व और वर्तमान भाग्य का और उसके प्रत्यक्ष फल का प्रतीक है और वो योगी मेरी पहचान में आ गया था क्योकि वो मेरा ही कनिका द्धारा खींचकर जड़वाया एकलौता चित्र था जो आश्रम में लगा है और ॐ का उच्चारण और सारे शहर की जलती लाईट बुझती हुयी जहाँ मैं खड़ा हूँ वहीँ आकर मुझ तक एक हो जाना स्वयं ॐ स्त्री शक्ति का मेरे द्धारा आवाहन और आकर्षण और इस जगत में नवीन स्वरूप में अवतरण है और मेरे द्धारा दान में कमी करके देना भी इसी बात का प्रतीक है और प्रत्यक्ष बात थी की मैं ही दाता और मैं ही बचतकर्ता और प्राप्त करता हूँ और आगे चलकर उसी बचत स्वरूप धन से मेने ननसाल के लोगों के अनुरोध पर वहां एक भव्य मन्दिर स्वयं के ही भक्तों से आये धन से बनवाया जहाँ सबसे पहले शनिदेव की प्रतिमा ही स्थापित हुयी और फिर अभी देवो देवी और महामंत्र का पीठ और साई बाबा भवन बनकर पूजनीय है और उन्ही जोगियों के वंशज गोविंद गौड़ वहां पुजारी व् सेवक रहा तथा जयपाल भैया के पुत्र होरिश ने ये मंदिर अपनी देख रेख में बनवाया। यो इस सिद्धासिद्ध महामंत्र की दिव्य दीक्षा और दिव्य दर्शन का दिव्य परिणाम प्रत्यक्ष और सम्पूर्ण सफल हुआ।यो सदा दिव्य दर्शनों का परिणाम अवश्य शुभ और सफल रहता है।
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