?सत्यास्मि शिष्य प्रज्ञेय उपदेश?
*गुरु ग्रहण कर नमित रहे
और सदा करे ज्ञान अभ्यास।
सर्वजन प्रेम मधुर आचरित रहे
गुरु आदेश सर्वोपरि शीष निवास।।
अन्यों गुरु वृद्धजन सम्मान करे
व्यर्थ वक्ता नही उपदेश।
भक्ति की व्रद्धि जिस मनुष्य हो
उसे सर्व देव देवी दे वर शेष।।*
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नित्य गुरु के दिए ज्ञान और ध्यान के अभ्यास को करने वाला हो और जब गुरु ने उसे विद्याध्यन में प्रिपवक्ता का अनुभव कर स्वयं उसे आगे विद्यादान करने सहित बोलने का अधिकार आदेश नही दिया हो तब तक स्वयं के अहंकार और अधिकार की उपस्थिति जिसमे ना हो,सदैव गुरु समान अन्य विद्याधर गुरुओं सहित व्रद्धावस्था प्राप्त जनों का सम्मान करने वाला ही योग्य शिष्य कहलाता है उसे उसकी इस गुरु भक्ति से सभी देव,देवी प्रसन्न होकर यथाचित्त मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद देते है यो हे-मनुष्य ऐसा आचरण करने वाला बनो..
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